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भूमिका
आतुर जल बोला माटी से
मैं प्रकृति का वीर्य तत्व हूँ,
तुम प्रकृति की कोख हो न्यारी।
मैं प्रथम पुरुष हूँ इस जगती का,
तुम हो प्रथम जगत की नारी।
नर-नारी सम भोग विदित जस,
तुम रंग बनो, मैं बनूँ बिहारी।
आतुर जल बोला माटी से....
न स्वाद गंध, न रंग तत्व,
पर बोध तत्व है अनुपम मेरा।
भूरा पीला लाल रंग सुन्दर,