पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

Term Path Alias

/sub-categories/books-and-book-reviews

ढीठ पतोहु धिया गरियार
Posted on 25 Mar, 2010 09:53 AM
ढीठ पतोहु धिया गरियार, खसम बेपीर न करै बिचार।
घरे जलावन अन्न न होई, घाघ कहैं सो अभागी जोई।।


शब्दार्थ- ढीठ-जबर, धृष्ट। धिया-लड़की।

भावार्थ- यदि बहू धृष्ट हो, बेटी आलसी हो, पति दुख-सुख का ध्यान न देने वाला हो और घर में चूल्हा जलने की लकड़ी और अन्न न हो तो इससे बढ़कर दयनीय स्थिति क्या हो सकती है। ऐसे परिवार को अभागा ही कहा जाएगा।

झिलँगा खटिया बातल देह
Posted on 25 Mar, 2010 09:51 AM
झिलँगा खटिया बातल देह, तिरिया लम्पट हाटे गेह।
भाई बिगरि मुद्दई मिलंत, घाघ कहै ई विपत्ति क अंत।।


शब्दार्थ- झिलँगा-ढीली-ढाली। हाटे-बाजार। बिगरी-नाराज। मुद्दई-बैरी।
जेहि घर साला सारथी
Posted on 25 Mar, 2010 09:49 AM
जेहि घर साला सारथी, औ तिरिया की सीख।
सावन में हर बैल बिन, तीनों माँगैं भीख।।


भावार्थ- जिस घर में साले का हुक्म चलता हो, आदमी अपनी पत्नी के बताये रास्ते पर चलता हो और जिस किसान के घर में सावन में हल बैल का प्रबन्ध न हो तो निश्चित है कि इन तीनों घरों में भीख माँगने की स्थिति आ जाती है।

जिसकी छाती एक न बार
Posted on 25 Mar, 2010 09:43 AM
जिसकी छाती एक न बार।
उससे सब रहियौ हुसियार।।


भावार्थ- जिस व्यक्ति के छाती में एक भी बाल न हो, उससे सभी को सावधान रहना चाहिए।

जेहि का ऊँचा बैठना
Posted on 25 Mar, 2010 09:38 AM
जेहि का ऊँचा बैठना, जेहि का खेतु निचान।
तेहि का बैरी का करै, जेहि कै मीत देवान।।


भावार्थ- जिसकी संगत बड़े लोगों से हो, जिसका खेत नीचे ढलान पर हो जहाँ पानी स्वयं बह जाता है, जिसकी दोस्ती राजा के दीवान या मंत्री से हो, उसको अपने दुश्मन से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

जोइगर, बँसगर बुझगर भाय
Posted on 25 Mar, 2010 09:36 AM
जोइगर, बँसगर बुझगर भाय, तिरिया सतवँती नीक सुभाय।
धनुपत हो मन होइ बिचार, कहैं घाघ ई सुक्ख अपार।।


शब्दार्थ- जोइगर-बलवान। बसगर-वंशवाला। बुझगर-समझदार।
छज्जे की बैठक बुरी
Posted on 25 Mar, 2010 09:34 AM
छज्जे की बैठक बुरी, परछाई की छाँह।
द्वारे का रसिया बुरा, नित उठि पकरै बाँह।।


भावार्थ- छत के छज्जे पर बैठना बुरा होता है। परछाई की छाया भी अच्छी नहीं होती। इसी तरह दरवाजे का (निकट में रहने वाला) प्रेमी भी अच्छा नहीं होता, जो रोज उठकर प्रेमिका की बाँहें पकड़ता रहता है।

चार छावैं
Posted on 25 Mar, 2010 09:32 AM
चार छावैं, छः निरावै।
तीन खाट, दो बाट।।


भावार्थ- छप्पर छाने के लिए चार व्यक्ति, निराई के लिए छः व्यक्ति, चारपाई बुनने के लिए तीन व्यक्ति एवं राह पर चलने के लिए दो व्यक्ति होने चाहिए।

चना क खेती चिक्कधन
Posted on 25 Mar, 2010 09:30 AM
चना क खेती चिक्कधन। बिटिअन कै बढ़वारि।।
यतनेहु पर धन ना घटै तो करै बड़े से रारि।।


शब्दार्थ- चिक्क-कसाई। रारि-लड़ाई।

भावार्थ- चने की खेती, बकरी का व्यापार, लड़कियों की बढ़वार, यदि इन सब से धन की समाप्ति न हो, तो किसी बड़े आदमी से लड़ाई कर लो।

चाकर चोर राज बेपीर
Posted on 25 Mar, 2010 09:28 AM
चाकर चोर राज बेपीर।
कहै घाघ का धारी धीर।।


शब्दार्थ- चाकर-नौकर।

भावार्थ- यदि नौकर चोर हो और राजा निर्दयी हो, तो घाघ कहते हैं कि ऐसी स्थिति में धीरज धारण करना कठिन है।

×