पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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बूढ़ा बैल बेसाहै झीना कपड़ा लेय
Posted on 25 Mar, 2010 11:35 AM
बूढ़ा बैल बेसाहै झीना कपड़ा लेय।
आपन करै नसौनी देवै दूषन देय।।


भावार्थ- घाघ का कहना है कि जो गृहस्थ बूढ़ा बैल खरीदता है, पतला कपड़ा पहनता है, वह नाश तो अपना करता है लेकिन दोष ईश्वर को देता है।

बैल बगौधा निरघिन जोय
Posted on 25 Mar, 2010 11:27 AM
बैल बगौधा निरघिन जोय।
वा घर ओरहन कबहुँ न होय।।


भावार्थ- जिस किसान के पास बगौधा (घन का पाला) बैल हो और फूहड़-घिनौनी सुशीला पत्नी हो, उसके घर उलाहना कभी नहीं आता।

बैल मरकहा चमकुल जोय
Posted on 25 Mar, 2010 10:38 AM
बैल मरकहा चमकुल जोय।
वा घर ओरहन नित उठि होय।।


भावार्थ- जिस किसान का बैल मारने वाला हो और स्त्री चटक-मटक वाली चंचलहो, उसे सदैव उलाहना मिलता है।

बगड़ बिराने जो रहे मानै त्रिया की सीख
Posted on 25 Mar, 2010 10:35 AM
बगड़ बिराने जो रहे मानै त्रिया की सीख।
तीनों यों हीं जायँगे पाही बोवै ईख।।


शब्दार्थ- बगड़-घर।
भावार्थ- घाघ का कहना है कि दूसरे के घर में रहने वाला, स्त्री के कहने पर चलने वाला और दूसरे गाँव में ईख बोने वाला, तीनों ही व्यक्ति सदैव नुकसान ही उठाते हैं।

फूटे से बहि जातु है
Posted on 25 Mar, 2010 10:33 AM
फूटे से बहि जातु है, ढोल, गँवार, अँगार।
फूटे से बनि जातु हैं, फूट, कपास, अनार।।


शब्दार्थ- बहि-नष्ट होना।

भावार्थ- ढोल, गंवार और अंगार ये तीनों फूटने से नष्ट हो जाते हैं, लेकिन फूट, (भदईं ककड़ी) कपास और अनार फूटने से बन जाते हैं अर्थात् उनकी कीमत फूटने के बाद ही अच्छी होती है।

पहिले छावै तीन घरा
Posted on 25 Mar, 2010 10:31 AM
पहिले छावै तीन घरा।
सार भुसौला औ बड़हरा।।


भावार्थ- वर्षा होने के पहले पशुओं के रहने, भूसा रखने, और कंडे रखने वाला घर छा लेना चाहिए।

पाहिनि खड़ाऊँ खेतु निरावै
Posted on 25 Mar, 2010 10:30 AM
पाहिनि खड़ाऊँ खेतु निरावै, ओढ़ि रजाई झोंकैं।

घाघ कहै ई तीनों भकुआ, बेमतलब की भौंकैं।।


भावार्थ- घाघ का मानना है कि खड़ाऊँ पहन कर खेत की निराई करने वाला और रजाई ओढ़-कर भाड़ झोंकने वाला, निरुद्देश्य बोलने वाला, ये तीनों ही मूर्ख हैं।

परहथ बनिज, सँदेसे खेती
Posted on 25 Mar, 2010 10:28 AM
परहथ बनिज, सँदेसे खेती, बिन बर देखे ब्याहै बेटी।
द्वार पराये गाड़ै थाती, ये चारों मिलि पीटैं छाती।।


शब्दार्थ- परहथ-दूसरे के हाथ या भरोसे। थाती-धन। बनिज-व्यापार।
पूत ना माने आपने डाँट
Posted on 25 Mar, 2010 10:25 AM
पूत ना माने आपने डाँट, भाई लड़ै चहै नित बाँट।
तिरिया कलही करकस होइ, नियरा बसल दुष्ट सब कोइ
मालिक नाहिंन करै विचार, घाघ कहै ई विपत्ति अपार।।

ना अति बरखा ना अति धूप
Posted on 25 Mar, 2010 10:23 AM
ना अति बरखा ना अति धूप।
ना अति बकता ना अति चूप।।


भावार्थ- अत्यधिक वर्षा अच्छी नहीं होती, बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं होती, इसी प्रकारच अत्यधिक बोलना और अत्यन्त चुप रहना भी अच्छा नहीं होता।

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