उत्तराखंड

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स्वैट मॉडल के शोध कार्यों में प्रयोग पर एक तुलनात्मक समीक्षा
Posted on 22 Dec, 2011 05:02 PM कृषि एवं अन्य शोध कार्यों में मृदा एवं जल मूल्यांकन टूल (SWAT) का प्रयोग लगभग तीस वर्षों से अधिक समय से विभिन्न देशों में हो रहा है। मृदा एवं जल मूल्यांकन टूल बहुविषयीय जल विभाजक मॉडलिंग टूल के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार कर लिया गया है तथा इसकी प्रमाणिकता विभिन्न स्वैट संगोष्ठियों, सौ से ज्यादा मृदा एवं जल मूल्यांकन टूल से संबंधित लेख एवं दर्जनों प्रख्यात पत्रों में प्रकाशित लेखों से स
महानदी बेसिन में बाढ़ प्रबंधन
Posted on 22 Dec, 2011 04:34 PM

भारत के मुख्य बेसिन में से एक महानदी बेसिन पूर्वी भारत में स्थित है। इस बेसिन का कुल अपवाह क्षेत्र 141569 वर्ग कि.मी. है। इसमें छत्तीसगढ़ व उड़ीसा राज्य के बड़े भाग सम्मिलित हैं। यह बेसिन पूर्वी देशान्तर के 80.30। से 86.50। और उत्तरी अक्षांश के 19.20। से 23.35। तक के बीच स्थित है। महानदी बेसिन के मध्य भाग में एक बड़ा जलाशय हीराकुंड स्थित है। इस जलाशय का कुल अपवाह क्षेत्र 83400 वर्ग कि.मी.

महानदी
लघु सिंचाई कमान क्षेत्र का नियोजन
Posted on 22 Dec, 2011 03:52 PM लघु सिंचाई परियोजनाएं आज के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण होती जा रही हैं। क्योंकि बढ़ती जनसंख्या व बड़े बांधों जैसे नर्मदा सागर, सरदार सरोवर एवं टिहरी बांध परियोजना के कारण बड़ी संख्या में लोगों का विस्थापन व एक बड़े भू-भाग का डूब में आना, आज की परिस्थिति में लाभकारी सिद्ध नहीं हो रहा है।
जल विभाजक के लिए अभिकल्प अपवाह वक्र संख्या का निर्धारण
Posted on 22 Dec, 2011 01:29 PM
अनगेज्ड लघु जल विभाजकों के लिए वृष्टि घटक अपवाह का आंकलन जलविज्ञान की प्रमुख गतिविधियों में से एक है। जल संसाधन एवं सिंचाई अभियांत्रिकी के क्षेत्र में अनगिनत संगणक निदर्श उपलब्ध हैं तथा इनमें से अधिकांश वृहत एवं लोकप्रिय निदर्श वर्षा घटक से अतिरिक्त वर्षा निर्धारण के लिए मृदा संरक्षण सेवा वक्र संख्या प्रौद्योगिकी (SCS - CN) का प्रयोग करते हैं। इन समस्याओं के सरलतम समाधान के लिए अधिकांशतः उपय
फसलों के लिए जल की आवश्यकता एवं प्रबंधन
Posted on 22 Dec, 2011 01:04 PM
भागीरथ द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाये जाने की पौराणिक कथा है, जो सिंचाई के लिए जल प्रभाव द्वारा सिंचाई की व्यवस्था की सफलता का इतिहास है। इससे यह स्पष्ट है कि भारत में प्राचीनकाल से ही सिंचाई पर जोर दिया जाता रहा है। वर्षा से प्राप्त जल-संसाधनों के पूरक के रूप में जल-संग्रह की स्थानीय सुविधाओं नहरों, सामुदायिक तालाबों और अन्य साधनों को न केवल प्राचीन काल के बडे़-बडे़ राजाओं द्वारा, बल्कि मध्य
गंगोत्री हिमनद के गलित अपवाह के विलम्बित अभिलक्षण
Posted on 22 Dec, 2011 11:17 AM हिमालय के अधिकांश बेसिनों के काफी क्षेत्रों में हिम एवं हिमनदों से आच्छादित क्षेत्र होता है। इनसे निकलने वाली नदियों में, मौसम के अनुसार, मई के महीने में हिमनदों के पिघलने से अपवाह का प्रारम्भ होता है। हिमनदों से गलित अपवाह उस समय अपवाह को बढ़ाता है जब नदियों में अपवाह कम होता है इस प्रकार यह जल उपलब्धता में आने वाली कमी की पूर्ति करता है। हिमनद से पिघलता हुआ पानी पिघलने के कुछ अन्तराल बाद हिमनद क
रेगिस्तान में जल और जन सहभागिता
Posted on 22 Dec, 2011 10:50 AM रेगिस्तान का नाम आते ही जन साधारण के मन में स्वतः एक ऐसा दृश्य उत्पन्न होता है जहां दूर-दूर तक रेत ही रेत है, भीषण गर्मी है और जहां का वातावरण शुष्क है और पानी का भारी अभाव है। जबकि स्थिति भिन्न है। उपयुक्त स्थितियां अनेक स्थानों पर हो सकती हैं किंतु संसार के रेगिस्तानों में विभिन्नता होती है जैसे कि रेगिस्तान में कहीं रेतीली समतल भूमि तो कहीं चट्टानों के दृश्य तो कहीं पर नमक की झीलों की भरमार है।
थार रेगिस्तान
मृदाओं में अन्तःस्यन्दन दरों का मापन
Posted on 22 Dec, 2011 10:31 AM जलविज्ञानीय अध्ययनों के लिए विभिन्न प्रकार की मृदाओं एवं भूमि उपयोगों की स्थिति में अन्तःस्यन्दन ज्ञान जरूरी है। अन्तःस्यन्दन दर मृदा में जल के प्रवेश कर सकने की अधिकतम दर को निर्धारित करती है। अन्तःस्यन्दन दर प्रारंभ में बहुत तेजी से कम होती है फिर कुछ समय के पश्चात यह एक स्थिर दर पर पहुंच जाती है। यह दर पूर्वगामी मृदा नमी एवं प्रपुण्ज घनत्व में परिर्वतन से
‘‘हिम-ब्रह्मसागर योजना‘‘ जल और विद्युत ऊर्जा का अविरल स्रोत
Posted on 22 Dec, 2011 09:58 AM
भारतीय उपखंड पर एक वर्ष के भीतर जलचक्र के माध्यम से करीब 4000 घन किमी.
स्वाभाविक रचना एवं जल स्रोत और जल विभाजन की स्थितियाँ
वनों से ग्लेशियर तक फैला प्रदूषण का प्रभाव
Posted on 07 Dec, 2011 03:55 PM

अवैध खनन की मार प्रदेश की नदियों पर ऐसी पड़ी है कि गंगा, यमुना, टोंस, कोसी, रामगंगा आदि नदियों

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