उत्तराखंड

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नैनीताल भू-स्खलन: विशेष सिविल अधिकारी की रिपोर्ट
जानिए वर्ष में 1880 में नैनीताल में आये भू-स्खलन की विशेष सिविल अधिकारी की रिपोर्ट में क्या विशेष है Posted on 02 Mar, 2024 03:24 PM

शेर-का-डांडा पहाड़ी के 18 सितंबर, 1880 के भू-स्खलन के बाद इस क्षेत्र में तैनात विशेष सिविल अधिकारी मिस्टर एच. सी. कोनीबीयरे, ( ई.एस.क्यू.सी. एस.) ने 11 अक्टूबर, 1880 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के सचिव को भू-स्खलन के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी। इस रिपोर्ट का हिन्दी भावार्थ निम्न प्रकार थाः-

नैनीताल भू-स्खलन विशेष सिविल अधिकारी की रिपोर्ट
नैनीताल उत्तराखण्ड के लिए एक धरोहर के रूप में
जाने उत्तराखण्ड का खूबसूरत शहर नैनीताल के भूगोल, पेड़-पौधे ,वनस्पति और वन्य जीव एवं जंतु के बारे में
Posted on 01 Mar, 2024 12:16 PM

नैनीताल की झील बाहरी हिमालय में मेन बाउन्ड्री थ्रस्ट के करीब स्थित प्रकृति की दुर्लभ रचना है। सात ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे नैनीताल की भू-आकृति कटोरानुमा है। नैनीताल, पट्टी / परगना छःखाता के अन्तर्गत आता है। छःखाता शब्द संस्कृत का अपभ्रंश है। छःखाता का भावार्थ है- 60 झीलों वाला क्षेत्र। जिसमें से नैनीताल, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, मलुवाताल, खुर्पाताल, सरियाताल और बरसाती झील सूखाताल आदि श

नैनीताल उत्तराखण्ड के लिए एक धरोहर के रूप में
गंगा में उड़ेली जा रही गंदगी पर एनजीटी सख्त
जानिये एनजीटी ने उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जिम्मेदार सरकारी अधिकारियों और विभाग प्रमुखों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करके दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया निस्तारण क्षमता कमी Posted on 27 Feb, 2024 01:23 PM

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) भारत में एक स्वतंत्र न्यायिक निकाय है जिसे विशेष रूप से पर्यावरणीय मुद्दों और विवादों को संबोधित करने के लिए स्थापित किया गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तराखंड समेत कई राज्यों में गंगा नदी के प्रदूषण को लेकर चिंता जताई है। विशेष रूप से, एनजीटी ने गंगा में अनुपचारित सीवेज के निर्वहन को रोकने में निष्क्रियता के लिए उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्

नदियों में गंदगी का निरंतर प्रवाह
वृक्षों के आक्रामक प्रजातियों से मानव और वन को खतरा
उत्तराखंड जो अपनी प्राकृतिक सुन्दरता से सभी को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. विगत कई वर्षो से वृक्षों की आक्रामक प्रजातियों की बढ़ती संख्या को अनदेखा करता रहा, परंतु अब यही आज राज्य के लिए चिन्ता का विषय बनते जा रहे हैं. इन प्रजातियों से न केवल राज्य में वनों को वरन् वन्य जीवों को भी नुकसान हो रहा है. राज्य में वनों का अस्तित्व देखा जाए तो 40-50 वर्ष पूर्व राज्य में बाज, उतीस, खड़िग, भीमल, क्वैराल, पदम, काफल, बेडू जैसी प्रजातियों के जंगल हुआ करते थे, Posted on 22 Dec, 2023 02:23 PM

उत्तराखंड जो अपनी प्राकृतिक सुन्दरता से सभी को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. विगत कई वर्षो से वृक्षों की आक्रामक प्रजातियों की बढ़ती संख्या को अनदेखा करता रहा, परंतु अब यही आज राज्य के लिए चिन्ता का विषय बनते जा रहे हैं. इन प्रजातियों से न केवल राज्य में वनों को वरन् वन्य जीवों को भी नुकसान हो रहा है.

वृक्षों के आक्रामक प्रजातियों से मानव और वन को खतरा,Pc-चरखा फीचर
कृषि के माध्यम से सशक्त होती ग्रामीण महिलाएं
उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्र चौरसों की महिला किसान भी महिला सशक्तिकरण की बेजोड़ मिसाल हैं। राज्य के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक के इस गाँव की अधिकतर महिलाएं घर के साथ साथ कृषि संबंधी कार्यों को भी बखूबी अंजाम देती हैं। Posted on 10 Nov, 2023 03:39 PM

देश में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई स्तरों पर काम किए जाते हैं। इसके लिए केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकार विभिन्न योजनाएं भी संचालित कर रही हैं। लेकिन हमारे देश में कृषि एक ऐसा सेक्टर है जहां महिला सशक्तिकरण सबसे अधिक देखी जाती है। बल्कि यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारे देश की कृषि व्यवस्था पुरुषों से कहीं अधिक महिलाओं के कंधे पर है, जिसे उन्होंने कामयाबी के साथ संभाल रखा है। पुरुष जहां अधिकतर

कृषि के माध्यम से सशक्त होती ग्रामीण महिलाएं
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से पहाड़ों का अस्तित्व खतरे में
हमें प्रकृति और मानव के बीच का संतुलन बनाए रखना होगा। प्रकृति और मानव एक दूसरे के पूरक हैं, जो एक दूसरे को पोषित और संरक्षित करते हैं। प्रकृति हमें जल, वायु, भोजन, आश्रय, औषधि और अन्य संसाधन प्रदान करती है, जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक हैं। मानव प्रकृति की रक्षा और संवर्धन कर सकते हैं, जो उसकी स्वास्थ्य और समृद्धि को बढ़ाता है Posted on 10 Nov, 2023 02:33 PM

जलवायु परिवर्तन का मतलब है कि पृथ्वी की जलवायु में लंबे समय तक स्थायी या अस्थायी बदलाव होते हैं। ये बदलाव प्राकृतिक कारणों से भी हो सकते हैं, लेकिन मुख्य रूप से मानव की गतिविधियों के कारण होते हैं। मानव जीवाश्म ईंधनों का अधिक उपयोग करते हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड वायुमंडल में छोड़ी जाती हैं। ये गैसें सूर्य की किरणों को वापस भेजने में रुकावट डालती

 जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
दिनांक 5 नवंबर 2023 को एम.सी.मेहता एन्वायरनमेंट फाउंडेशन द्वारा-'बायोडायवर्सिटी कैम्पेन' कार्यक्रम का आयोजन
प्रेस नोट-दिनांक 5 नवंबर 2023 को एम. सी. मेहता एन्वायरनमेट फाउंडेशन, द्वारा मीडावाला, थानों में स्थित ईकोआश्रम में "बायोडायवर्सिटी कैम्पेन " कार्यक्रम का आयोजन किया गया
Posted on 06 Nov, 2023 11:52 AM

एम.सी. मेहता एन्वायरनमेंट फाउंडेशन द्वारा- 'बायोडायवर्सिटी कैम्पेन' कार्यक्रम का आयोजन

आज दिनांक 5 नवंबर 2023 को एम. सी. मेहता एन्वायरनमेट फाउंडेशन, द्वारा मीडावाला, थानों में स्थित ईकोआश्रम में "बायोडायवर्सिटी कैम्पेन " कार्यक्रम का आयोजन किया गया। 

बायोडायवर्सिटी कैम्पेन " कार्यक्रम का आयोजन"
चिपको आन्दोलन के पचास साल : एक थीं गौरा देवी (भाग 2)
गौरा देवी चिपको आन्दोलन की सर्वाधिक सुपरिचित महिला रहीं। इस पर भी उनकी पारिवारिक या गाँव की दिक्कतें घटी नहीं। चिपको को महिलाओं का आन्दोलन बताया गया पर यह केवल महिलाओं का कितना था ? अपनी ही संपदा से वंचित लोगों ने अपना प्राकृतिक अधिकार पाने के लिए चिपको आन्दोलन शुरू किया था। Posted on 02 Nov, 2023 05:06 PM

(पिछले भागों में आपने पढ़ा कि किस प्रकार शेखर पाठक जी अपने साथियों के साथ गौरा देवी से मिले और कैसे हुई चिपको की शुरुआत। आज जानिये चिपको आंदोलन के बाद के परिदृश्य के बारे में।)

अस्कोट-आराकोट अभियान 1984,फोटो साभार:-शेखर पाठक
नौले-धारों और नदियों को 'सारा' से मिलेगा नया जीवन
वर्षा जल संरक्षण के लिए राज्य में सभी नौले, धारे और नदियों का मानचित्र बनाकर मास्टर प्लान तैयार किया जाएगा। नदियों की शुरुआत से अंत तक के पानी को संग्रहित करने के उपायों में हजारों चेकडैम और जल संरक्षण के पौधे शामिल होंगे Posted on 31 Oct, 2023 02:49 PM

केंद्र सरकार ने ‘कैच द रेन कार्यक्रम’ के जरिए जलस्रोतों को सुधारने का प्रयास किया है। इसी प्रकार, उत्तराखंड में भी धामी सरकार वर्षा के पानी को संचय करके नौले-धारे और नदियों को संरक्षित और संवारने का प्रोजेक्ट आरंभ करने की योजना बना रही है। सोमवार को हुई कैबिनेट मीटिंग में, स्प्रिंग एंड रिवर रिज्यूविनेशन अथॉरिटी (सारा) की स्थापना को मंजूरी मिली, जो जलागम निदेशालय के तहत सोसायटी के रूप में पंजीकृ

नौले-धारे और नदियाँ
ग्लोबल वार्मिंग के कारण 14 से 22 मी. तक छोटा हुआ देवदार का कद 
ग्लोबल वार्मिंग के कारण  14 से 22 मी. तक छोटा हुआ देवदार का कद जीबी पंत हिमालय संस्थान के वैज्ञानिकों का शोध Posted on 28 Oct, 2023 03:17 PM

ग्लोबल वार्मिंग हिमालय पर गहरा असर डाल रही है। ताजा शोध बताता है कि मौसम ने अब धार्मिक, व्यापारिक और औषधीय रूप से महत्त्वपूर्ण देवदार के पेड़ों को दुष्प्रभावित करना शुरू कर दिया है। लगातार बदलते मौसम के कारण देवदार की लंबाई में 37 से 47% तक की कमी आई है। यह असर हिमालय के 2500 मीटर से ऊपर उगने वाले देवदारों पर देखा गया है। हालांकि निचले क्षेत्रों में अध्ययन होना अभी बाकी है। उत्तराखंड, हिमाचल प्

ग्लोबल वार्मिंग के कारण 14 से 22 मी. तक छोटा हुआ देवदार का कद 
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