जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से पहाड़ों का अस्तित्व खतरे में

 जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

जलवायु परिवर्तन का मतलब है कि पृथ्वी की जलवायु में लंबे समय तक स्थायी या अस्थायी बदलाव होते हैं। ये बदलाव प्राकृतिक कारणों से भी हो सकते हैं, लेकिन मुख्य रूप से मानव की गतिविधियों के कारण होते हैं। मानव जीवाश्म ईंधनों का अधिक उपयोग करते हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड वायुमंडल में छोड़ी जाती हैं। ये गैसें सूर्य की किरणों को वापस भेजने में रुकावट डालती हैं, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ता है। इसे ग्रीनहाउस प्रभाव कहते हैं।

जलवायु परिवर्तन के कई प्रभाव हैं, जो आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से नुकसानदायक हैं। विश्व आर्थिक मंच (WEF) की वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2020 के अनुसार, अगले 10 वर्षों में सबसे बड़े जोखिमों में से पांच जलवायु संबंधी हैं। ये हैं:

चरम मौसमी घटनाएं: 
जैसे बाढ़, तूफान, सूखा, आग आदि, जो जीवन, संपत्ति और खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालती हैं।

  • जलवायु कार्रवाई विफलता: जैसे कि जलवायु परिवर्तन को कम करने और उसके प्रभावों से निपटने के लिए पर्याप्त नीतियां, निवेश और तकनीक नहीं होना।
  • प्राकृतिक आपदाएं: जैसे भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी विस्फोट और भू-चुंबकीय तूफान, जो अकस्मात और तबाही लाने वाली होती हैं।
  • जैव विविधता हानि: जैसे कि वन्य जीवों, पौधों और जीवन-रूपियों के लुप्त होने का खतरा, जो पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं, जैसे ऑक्सीजन उत्पादन, प्रदूषण नियंत्रण, जल संरक्षण और खाद्य उत्पादन को प्रभावित करता है।
  • मानव निर्मित पर्यावरणीय क्षति और आपदाएं: जैसे कि तेल छलनी, रेडियोधर्मी सामग्री का रिसाव, नाले का पानी, खनिज खनन, वनोन्मूलन और शहरीकरण, जो पर्यावरण को बिगाड़ते हैं और जीवन की गुणवत्ता को घटाते हैं।

इन जोखिमों से निपटने के लिए, हमें प्रकृति और मानव के बीच का संतुलन बनाए रखना होगा। प्रकृति और मानव एक दूसरे के पूरक हैं, जो एक दूसरे को पोषित और संरक्षित करते हैं। प्रकृति हमें जल, वायु, भोजन, आश्रय, औषधि और अन्य संसाधन प्रदान करती है, जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक हैं। मानव प्रकृति की रक्षा और संवर्धन कर सकते हैं, जो उसकी स्वास्थ्य और समृद्धि को बढ़ाता है

पद्मश्री अनूप साह, एक प्रसिद्ध फोटोग्राफर और पर्यावरणविद, ने बताया कि उन्होंने जो ज्योलीकोट और सातताल के सुंदर जंगल और वन्य जीवों की तस्वीरें खींची थीं, वे आज विकास और प्रदूषण के कारण नष्ट हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर समस्या है, जिसका समाधान करने के लिए सरकार और जनता को मिलकर काम करना होगा। उन्होंने कहा कि प्रकृति के दोहन से वन्य जीवों का आश्रय स्थान खत्म हो रहा है और उनकी प्रजातियां विलुप्त होने का खतरा है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार द्वारा रोपित कुछ पौधे इकोलॉजी को बिगाड़ रहे हैं। मानव और वन्य जीवों के बीच का संघर्ष एक ऐसी समस्या है जिसका असर हमारे पर्यावरण, जैव विविधता और स्वास्थ्य पर पड़ता है। मानव ने अपनी लोभ और लालच के कारण जंगलों को नष्ट करके वन्य जीवों का निवास स्थान छीन लिया है।

इससे वन्य जीवों को अपने आहार और आश्रय की कमी का सामना करना पड़ता है। वे अक्सर मानव बस्तियों में घुस आते हैं और मानवों को चोट पहुंचाते हैं। इससे मानव और वन्य जीवों के बीच दुश्मनी बढ़ती है।उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जहां विशाल हिमालयी पर्वतों के बीच अनेक प्रकार के वन्य जीवों का वास है। इस राज्य में भारत की कुल 1300 पक्षी प्रजातियों में से 700 से ज्यादा पक्षी पाए जाते हैं। लेकिन प्रकृति दोहन के कारण इन पक्षियों का संख्या में लगातार गिरावट हो रही है। कठफोड़वा और गौरैया जैसे पक्षी जो कभी इस राज्य की शान थे, आज विलुप्त होने की कगार पर हैं। यदि मानव ने अपने प्रकृति में हस्तक्षेप को रोका नहीं तो जल्द ही कई पशुओं और पक्षियों की प्रजातियां धरती से मिट जाएंगी।

इसलिए हमें इस समस्या को हल करने के लिए कुछ उपाय करने होंगे। हमें जंगलों की कटाई और आग लगाने से बचना होगा। हमें वन्य जीवों के शिकार और अत्याचार से दूर रहना होगा। हमें वन्य जीवों के निवास स्थानों का सम्मान करना होगा और उन्हें अवैध रूप से घुसने या उन्हें परेशान करने से बचना होगा। हमें वन्य जीवों के संरक्षण और संवर्धन के लिए वन विभाग और अन्य संगठनों का सहयोग करना होगा। हमें वन्य जीवों के बारे में जागरूकता फैलाना होगा और उनके साथ सहयोगी और समझदारी से पेश आना होगा।यदि हम इन उपायों को अपनाएंगे तो हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ और स्वस्थ रख सकेंगे। हम अपने वन्य जीवों के सौंदर्य और विविधता को बचा सकेंगे। हम अपने और वन्य जीवों के बीच का संघर्ष कम कर सकेंगे। हम अपने और वन्य जीवों के बीच का सम्बन्ध सुधार सकेंगे। हम अपने और वन्य जीवों के बीच का समानता और सहयोग का भाव जगा सकेंगे।

पर्वतीय क्षेत्रों में वनों के दोहन का चलन बढ़ रहा है। ओखलकांडा के पर्यावरणविद् चन्दन नयाल के अनुसार, इससे वहाँ की पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव आ रहा है। वनों के कटान से विभिन्न प्रजातियों का नाश हो रहा है। इसके अलावा, लोग आरामदायक जीवन जीने के लिए पहाड़ों पर घर बना रहे हैं। इसके लिए उन्हें बहुत सारे पेड़ काटने पड़ते हैं। एक अनुमान के अनुसार, एक नाली में 40 पेड़ होते हैं। यदि कोई एक नाली में घर बनाता है, तो उसे 40 पेड़ काटने होंगे। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो पहाड़ों का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। इससे वन्य जीवों के साथ-साथ पर्वतीय क्षेत्र की महिलाओं को भी नुकसान होगा। वे प्रतिदिन जंगल से लकड़ी लाकर अपने घर का चूल्हा जलाती हैं। यदि पेड़ कम हो गए, तो उन्हें और ज्यादा दूर जाकर लकड़ी ढूँढनी होगी। इससे उनका समय और सेहत दोनों पर असर पड़ेगा।

यह राज्य अनेक औषधीय पौधों के लिए भी प्रसिद्ध है, लेकिन इनका अनियंत्रित दोहन न केवल इनकी उपलब्धता पर असर डाल रहा है, बल्कि इनसे जुड़ी आजीविका को भी खतरे में डाल रहा है। इसलिए, वनस्पति और वन्य जीवों के संरक्षण का उद्देश्य रखने वाला वन्य जीव सप्ताह केवल प्रतीकात्मक नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे व्यावहारिक रूप से भी अमल में लाना चाहिए। समाज को पर्यावरण के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाने की जरूरत है। इसके लिए, नवीन पीढ़ी को ईको सिस्टम के बारे में शिक्षित करना होगा और इसे पाठ्यक्रम के हिस्से के साथ-साथ जन साधारण के साथ भी जोड़ना होगा। इससे लोगों को प्रकृति की रक्षा के लिए सही जानकारी और सक्रिय सहयोग मिल सकेगा। पहाड़ों को बचाने के लिए, सबसे पहले तो इनके अंधेरे दोहन को रोकना होगा, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब धरती पर केवल कंक्रीट के मकान ही बचेंगे और वन्य जीव और मानव का नामो-निशान मिट जाएगा।

स्रोत -चरखा फीचर 

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Post By: Shivendra
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