उत्तर प्रदेश

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‘अमेठी’ में पानी पर ‘रेल नीर’ का राज है
Posted on 21 Sep, 2014 11:00 AM मालती नदी का तल खोदकर इतना ढालू बना दिया गया है कि अब इसमें पानी रु
Rail neer
यमुना प्रदूषण की मुख्य वजह शहर की गंदगी
Posted on 15 Sep, 2014 09:07 AM

मसानी नाले का ओवर फ्लो रोकना जरूरी

Yamuna Pollution
कैसे लौटेगा वो सावन
Posted on 07 Sep, 2014 04:17 PM जैसे योगेश्वर श्रीकृष्ण लोक कल्याण हेतु ब्रज तज कर चले गए, वैसे ही श्रीकृष्ण का आनंद पर्व कहा जाने वाला सावन आज ब्रजवासियों और उनके भक्तों की उपेक्षा के चलते कृष्ण की तरह ही अन्यत्र चला गया है। आज ब्रजवासी और उनके भक्त श्रीकृष्ण की तरह सावन के मेघों की बाट जोह रहे हैं। प्रकृति विरोधी आधुनिकता से पैदा हुई इस बेचैनी और व्याकुलता पर गंभीर चिंतन करने की जरूरत है। प्रकृति का महोत्सव कहा जाने वाला सा
अपने पर रोता दादरी का श्यामसर तालाब
Posted on 21 Aug, 2014 11:02 AM
श्यामसर तालाबसेठों-साहूकारों के कस्बे चरखी दादरी में अपने
निकालनी पड़ेगी मृत संजीवनी
Posted on 03 Aug, 2014 11:47 AM जल सृष्टि की उत्पत्ति, पालन व संहार का मूल आधार है। जब भी धरती पर ‘आदिम मानव’ की सृष्टि हुई, उसके जन्म के साथ जल जुड़ा रहा। जब भी उसे भूख महसूस हुई तो इसी जल ने वनस्पतियों को उगाया, जिससे उसने पेट भरा और जमकर पानी पिया। जब भी प्रलय अथवा कयामत की कल्पना की गई तो उसका आधार बना भूकंप या जलजला। सारी धरती प्रलय काल में जलमग्न हो जाएगी।
गंगा बनेगी साबरमती
Posted on 02 Aug, 2014 03:45 PM बनारस आते-आते गंगा में दूसरी बड़ी दूषित नदी यमुना भी विलीन हो जाती
Ganga
गोमती को एक जन आंदोलन की दरकार
Posted on 29 Jul, 2014 11:42 AM

अफसोस कि सबसे सहज जो कदम सरकार को उठाना चाहिए था, वह अब तक नहीं हुआ। वह ये कि पीलीभीत, सीतापुर, हरदोई, खीरी, संडीला के उद्योगों का रासायनिक कचरा नदी में डालने से रोका जाए। साथ ही इन उद्योगों में शोधन संयंत्र लगें तथा उनके द्वारा शोधित जल ही नदी में डालने की अनुमति हो। सभी औद्योगिक इकाइयां अपना जहरीला रासायनिक कचरा नदी में सीधे डाल रही हैं। सभी नाले नदी में सीधे गिर रहे हैं। पंपिंग स्टेशन खराब पड़े हैं, लक्ष्मण मेला मैदान वाले पंप से नाले का जल पंप नहीं हो रहा है, वह नाला नदी में सीधे जा रहा है।

बहुत दिनों से कई संगठनों द्वारा गोमती नदी को स्वच्छ व निर्मल बनाने के लिए प्राय: आवाज उठती रही है। कई संगठनों ने तो अवकाश प्राप्त वैज्ञानिकों व अभियंताओं की टोली बनाकर नदी में ऑक्सीजन व कचरे की मात्रा का निर्धारण करके प्रदूषण की स्थिति से अवगत कराया।
काशी कुंभ
Posted on 24 Jul, 2014 11:12 AM वाराणसी 20 जुलाई 2014, काशी कुंभ में आज नौवें एवं आखिरी दिन महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के राजर्षि पुरूषोत्तमदास टण्डन सभागार में शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, बुद्धजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विषय विशेषज्ञों, नदी प्रेमियों, सैन्य अधिकारियों एवं राजनेताओं के भारी जमावड़े के बीच काशी कुंभ 2014 संकल्प पत्र पर सर्वसम्मति के साथ सम्पन्न हुआ।
जलवायु परिवर्तन की चुनौती एवं गंगा के संदर्भ में इलाहाबाद में सेमिनार
Posted on 22 Jul, 2014 03:46 PM तारिख : 26 जुलाई 2014
स्थान : उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, इलाहाबाद


जलवायु परिवर्तन की चुनौती एवं समाधान गंगा के विशेष संदर्भ के विषय पर एडवोकेसी वर्कशॉप एवं सेमिनार का आयोजन ऑल इंडिया वूमेंस कॉन्फ्रेंस द्वारा एवं संयोजन ग्लोबल ग्रींस द्वारा किया जा रहा है। कार्यक्रम 26 जुलाई 2014 को उ.म.क्षे.सां.के. इलाहाबाद के प्रेक्षागृह में किया जा रहा है।

सेमिनार में शोध छात्रों द्वारा जलवायु परिवर्तन एवं गंगा के संदर्भ में पेपर प्रस्तुत किया जाएगा साथ ही प्रजेंटेशन भी किया जाएगा। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता विषय विशेषज्ञ के रूप में जलवायु परिवर्तन पर बी.आर. अम्बेडकर वि.वि. लखनऊ के पर्यावरण वैज्ञानिक डाॅ. वेंकटेश दत्ता एवं गंगा पर उत्तरकाशी के पर्यावरणविद सुरेश भाई रहेंगे।
गंगा संवर्धन हेतु काशी कुंभ का निमंत्रण
Posted on 05 Jul, 2014 03:03 PM तारिख : 12-20 जुलाई 2014 तक।
स्थान : काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू)


कुम्भ तो बिना बुलाए आयोजित होते थे। इनमें शामिल होने वाले लोग गंगा को और अधिक गंदा करके जाते हैं। कुम्भ का भावार्थ ही बदल दिया है। पहले कुम्भ में राजा, प्रजा, संत ये सब मिलकर देवता और राक्षस के रूप में वैचारिक मंथन करते थे। इस मंथन में समाज की बुराइयों का जहर और समाज की अच्छाइयों के अमृत को अलग-अलग रखने की विधि पर विचार करके निर्णय होता था। निर्णयों को कुम्भ का निर्णय मानकर राजा, प्रजा और संत सब अपने जीवन में पालना करते थे।

आप जानते हैं, गंगा के विषय में सरकार बहुत चिंतित है और गंगा मंथन कर रही है। समाज को भी सरकार के इस मंथन में साथ रहना चाहिए। गंगा की पवित्रता की रक्षा करने का काम गंगा किनारे के घाटों पर रहने वाले पुजारी और संतजन ही करते थे। राजनैतिक उथल-पुथल, गुलामी और समाज के आर्थिक लोभ लालच ने गंगा सेवा का रूप बदल दिया है।
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