तारिख : 12-20 जुलाई 2014 तक।
स्थान : काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू)
कई संत महात्मा गंगा की सेवा के लिए मर मिटने को तैयार हैं। परंतु वो अब सत्ता के केंद्र नहीं हैं, इसलिए समाज उनकी सुनता नहीं है। आज सत्ता के सबसे बड़े केंद्र विश्वविद्यालय एवं शिक्षण संस्थान हैं। जब पुजारी और संतों ने गंगा का काम छोड़ दिया था, तो गंगा के किनारे स्थित शिक्षण संस्थान एवं विश्वविद्यालयों को यह कार्य अपना मानकर उठा लेना था। अब इस दिशा में आईआईटी, बीएचयू एवं आईआईटी कानपुर कुछ पहल करते हुए दिखाई दिए हैं।
नदी पुनर्जीवन के आंदोलन से जुड़े जल-जन जोड़ों अभियान, गंगा जल बिरादरी एवं राष्ट्रीय जल बिरादरी ने दोनों संस्थानों को साथ लेकर वाराणसी में गुरु पूर्णिमा के दिन 12 जुलाई से 20 जुलाई 2014 तक काशी कुम्भ आयोजित करने की योजना बनाई है। इसमें हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई गंगा मैया की सभी संतानें शामिल हों। इस कुम्भ में गंगा से जुड़े सभी विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधियों एवं सामाजिक, राजनैतिक कार्यकर्ताओं के साथ संत महात्माओं को भी बुलाया है। आपसे प्रार्थना है कि आप इस गंगा संवर्धन हेतु काशी कुम्भ में पधारें।
कुम्भ तो बिना बुलाए आयोजित होते थे। इनमें शामिल होने वाले लोग गंगा को और अधिक गंदा करके जाते हैं। कुम्भ का भावार्थ ही बदल दिया है। पहले कुम्भ में राजा, प्रजा, संत ये सब मिलकर देवता और राक्षस के रूप में वैचारिक मंथन करते थे। इस मंथन में समाज की बुराइयों का जहर और समाज की अच्छाइयों के अमृत को अलग-अलग रखने की विधि पर विचार करके निर्णय होता था।
निर्णयों को कुम्भ का निर्णय मानकर राजा, प्रजा और संत सब अपने जीवन में पालना करते थे। इसी कारण भारतीय समाज और गंगा दोनों लंबे समय तक शोषण और प्रदूषण और अतिक्रमण से बचे रहे, लेकिन आज कल जीडीपी की मार ने हमारे जीवन और गंगा दोनों को प्रदूषित कर दिया है। हम लोग गंगा मां की सेवा और स्वास्थ्य रक्षा की जिम्मेदारी भूल गए हैं। हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और नासिक में आयोजित होने वाले कुम्भ में करोड़ों लोग बिना बुलाए इकट्ठे होकर गंगा में स्नान करके अपने मन को शुद्ध करके का एहसास करते हैं। अब गंगा स्नान केवल पाप धोने के लिए हैं। जो हमारे पाप धोती है उसकी शक्ति संरक्षण हेतु हमें भी कुछ करना है? मां के प्रति जिम्मेदारी का एहसास और आभास हमें नहीं है?
जब गंगा जी अविरल और निर्मल थी तो गंगा जल में गंगत्व शेष था। गंगत्व सबको स्वस्थ्य रखता था। तब गंगा स्नान से पुण्य अर्जित होता था। पुण्य साझा शुभ है। पाप निजी लाभ के लिए होता है। गंगा जल में विलक्षण प्रदूषण नाशनी शक्ति थी। मरते समय प्रत्येक भारतीय की अंतिम इच्छा दो बूंद गंगा जल अपने कंठ में पीने की होती थी। अब वह इच्छा नष्ट हो गई है। हमें उस इच्छा को वापस लाना है। गंगा मैया का गंगत्व गंगा को सुरक्षित करना है।
12 जुलाई 2014 को गुरूपूर्णिमा के दिन गंगा जी की सेवा करने का निजी संकल्प होगा। हम सभी गंगा भक्त गुरू के समक्ष मां गंगा की सेवा का संकल्प लेंगे। इसी दिन शाम को 6.00 बजे से गंगा के पुत्र मछुआरे, नाविक, पुजारी, व्यापारी और वैज्ञानिक सब मिलकर मां गंगा को स्वस्थ्य बनाने का काम शुरू करेंगे। इस दिन से लेकर 17 जुलाई तक अपने आस-पास गंगा मैया की प्रत्यक्ष सेवा का कार्य करेंगे, और 17 जुलाई की शाम को गंगा के संकट समाधान की व्यापक योजना बनाने हेतु आईआईटी बीएचयू काशी में इकट्ठे होंगे।
18 जुलाई को गंगा के किनारे पूरी काशी की कई टोलियों में यात्रा होगी, जिसे गंगा चिकित्सक, वैज्ञानिक, इंजीनियर, पुजारी, व्यापारी और गंगा भक्त साथ-साथ मिलकर सभी वाराणसी जल शोधन संयंत्रों की स्थिति जानेंगे।
19 जुलाई को प्रातः आईआईटी, बीएचयू में गंगा संवर्धन संवाद में शामिल वैज्ञानिक और विषय विशेषज्ञ तथा गंगा भक्त, संत और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होंगे। ये दिन गंगा की चिकित्सा हेतु उपचार की विधियों पर बातचीत करेंगे।
20 जुलाई को गंगा की चिकित्सा के लिए जिम्मेदारियों और संकल्पों की रूपरेखा तय होगी। इसी दिन शाम को गंगा तट पर गंगा संवर्धन हेतु काशी कुंभ में लिए गए निर्णय काशी की जनता के साथ बांटे जाएंगे।
कुंभ में अपने को गंगा का बेटा मानकर शामिल होवें। आपके आवास और भोजन की व्यवस्था मांगने पर आईआईटी, बीएचयू में होगी । हम सब गंगा के बेटे-बेटियां अपनी मां गंगा का घर काशी में मानकर पहुंचे।
नोट – अपने पहुंचने की सूचना प्रो. प्रभात कुमार सिंह आईआईटी, बीएचयू को उनके ईमेल- dr_pksingh@rediffmail.com या उनके फोन नं. (09450547143) पर सूचित करें।
स्थान : काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू)
कुम्भ तो बिना बुलाए आयोजित होते थे। इनमें शामिल होने वाले लोग गंगा को और अधिक गंदा करके जाते हैं। कुम्भ का भावार्थ ही बदल दिया है। पहले कुम्भ में राजा, प्रजा, संत ये सब मिलकर देवता और राक्षस के रूप में वैचारिक मंथन करते थे। इस मंथन में समाज की बुराइयों का जहर और समाज की अच्छाइयों के अमृत को अलग-अलग रखने की विधि पर विचार करके निर्णय होता था। निर्णयों को कुम्भ का निर्णय मानकर राजा, प्रजा और संत सब अपने जीवन में पालना करते थे।
आप जानते हैं, गंगा के विषय में सरकार बहुत चिंतित है और गंगा मंथन कर रही है। समाज को भी सरकार के इस मंथन में साथ रहना चाहिए। गंगा की पवित्रता की रक्षा करने का काम गंगा किनारे के घाटों पर रहने वाले पुजारी और संतजन ही करते थे। राजनैतिक उथल-पुथल, गुलामी और समाज के आर्थिक लोभ लालच ने गंगा सेवा का रूप बदल दिया है।कई संत महात्मा गंगा की सेवा के लिए मर मिटने को तैयार हैं। परंतु वो अब सत्ता के केंद्र नहीं हैं, इसलिए समाज उनकी सुनता नहीं है। आज सत्ता के सबसे बड़े केंद्र विश्वविद्यालय एवं शिक्षण संस्थान हैं। जब पुजारी और संतों ने गंगा का काम छोड़ दिया था, तो गंगा के किनारे स्थित शिक्षण संस्थान एवं विश्वविद्यालयों को यह कार्य अपना मानकर उठा लेना था। अब इस दिशा में आईआईटी, बीएचयू एवं आईआईटी कानपुर कुछ पहल करते हुए दिखाई दिए हैं।
नदी पुनर्जीवन के आंदोलन से जुड़े जल-जन जोड़ों अभियान, गंगा जल बिरादरी एवं राष्ट्रीय जल बिरादरी ने दोनों संस्थानों को साथ लेकर वाराणसी में गुरु पूर्णिमा के दिन 12 जुलाई से 20 जुलाई 2014 तक काशी कुम्भ आयोजित करने की योजना बनाई है। इसमें हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई गंगा मैया की सभी संतानें शामिल हों। इस कुम्भ में गंगा से जुड़े सभी विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधियों एवं सामाजिक, राजनैतिक कार्यकर्ताओं के साथ संत महात्माओं को भी बुलाया है। आपसे प्रार्थना है कि आप इस गंगा संवर्धन हेतु काशी कुम्भ में पधारें।
कुम्भ तो बिना बुलाए आयोजित होते थे। इनमें शामिल होने वाले लोग गंगा को और अधिक गंदा करके जाते हैं। कुम्भ का भावार्थ ही बदल दिया है। पहले कुम्भ में राजा, प्रजा, संत ये सब मिलकर देवता और राक्षस के रूप में वैचारिक मंथन करते थे। इस मंथन में समाज की बुराइयों का जहर और समाज की अच्छाइयों के अमृत को अलग-अलग रखने की विधि पर विचार करके निर्णय होता था।
निर्णयों को कुम्भ का निर्णय मानकर राजा, प्रजा और संत सब अपने जीवन में पालना करते थे। इसी कारण भारतीय समाज और गंगा दोनों लंबे समय तक शोषण और प्रदूषण और अतिक्रमण से बचे रहे, लेकिन आज कल जीडीपी की मार ने हमारे जीवन और गंगा दोनों को प्रदूषित कर दिया है। हम लोग गंगा मां की सेवा और स्वास्थ्य रक्षा की जिम्मेदारी भूल गए हैं। हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और नासिक में आयोजित होने वाले कुम्भ में करोड़ों लोग बिना बुलाए इकट्ठे होकर गंगा में स्नान करके अपने मन को शुद्ध करके का एहसास करते हैं। अब गंगा स्नान केवल पाप धोने के लिए हैं। जो हमारे पाप धोती है उसकी शक्ति संरक्षण हेतु हमें भी कुछ करना है? मां के प्रति जिम्मेदारी का एहसास और आभास हमें नहीं है?
जब गंगा जी अविरल और निर्मल थी तो गंगा जल में गंगत्व शेष था। गंगत्व सबको स्वस्थ्य रखता था। तब गंगा स्नान से पुण्य अर्जित होता था। पुण्य साझा शुभ है। पाप निजी लाभ के लिए होता है। गंगा जल में विलक्षण प्रदूषण नाशनी शक्ति थी। मरते समय प्रत्येक भारतीय की अंतिम इच्छा दो बूंद गंगा जल अपने कंठ में पीने की होती थी। अब वह इच्छा नष्ट हो गई है। हमें उस इच्छा को वापस लाना है। गंगा मैया का गंगत्व गंगा को सुरक्षित करना है।
कुंभ की रूपरेखा
12 जुलाई 2014 को गुरूपूर्णिमा के दिन गंगा जी की सेवा करने का निजी संकल्प होगा। हम सभी गंगा भक्त गुरू के समक्ष मां गंगा की सेवा का संकल्प लेंगे। इसी दिन शाम को 6.00 बजे से गंगा के पुत्र मछुआरे, नाविक, पुजारी, व्यापारी और वैज्ञानिक सब मिलकर मां गंगा को स्वस्थ्य बनाने का काम शुरू करेंगे। इस दिन से लेकर 17 जुलाई तक अपने आस-पास गंगा मैया की प्रत्यक्ष सेवा का कार्य करेंगे, और 17 जुलाई की शाम को गंगा के संकट समाधान की व्यापक योजना बनाने हेतु आईआईटी बीएचयू काशी में इकट्ठे होंगे।
18 जुलाई को गंगा के किनारे पूरी काशी की कई टोलियों में यात्रा होगी, जिसे गंगा चिकित्सक, वैज्ञानिक, इंजीनियर, पुजारी, व्यापारी और गंगा भक्त साथ-साथ मिलकर सभी वाराणसी जल शोधन संयंत्रों की स्थिति जानेंगे।
19 जुलाई को प्रातः आईआईटी, बीएचयू में गंगा संवर्धन संवाद में शामिल वैज्ञानिक और विषय विशेषज्ञ तथा गंगा भक्त, संत और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होंगे। ये दिन गंगा की चिकित्सा हेतु उपचार की विधियों पर बातचीत करेंगे।
20 जुलाई को गंगा की चिकित्सा के लिए जिम्मेदारियों और संकल्पों की रूपरेखा तय होगी। इसी दिन शाम को गंगा तट पर गंगा संवर्धन हेतु काशी कुंभ में लिए गए निर्णय काशी की जनता के साथ बांटे जाएंगे।
कुंभ में अपने को गंगा का बेटा मानकर शामिल होवें। आपके आवास और भोजन की व्यवस्था मांगने पर आईआईटी, बीएचयू में होगी । हम सब गंगा के बेटे-बेटियां अपनी मां गंगा का घर काशी में मानकर पहुंचे।
नोट – अपने पहुंचने की सूचना प्रो. प्रभात कुमार सिंह आईआईटी, बीएचयू को उनके ईमेल- dr_pksingh@rediffmail.com या उनके फोन नं. (09450547143) पर सूचित करें।
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