उत्तर प्रदेश

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कृत्रिम न्यूरल तंत्र
Posted on 06 Dec, 2016 04:45 PM
कृत्रिम न्यूरल तंत्रों का विकास लगभग 70 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ। इनका प्रयोग प्रथम बार 1943 में मुक्क्ल्लोच और पिट्स ने किया था किंतु संगणक सुविधाओं के न होने कि वजह से उनका प्रयोग 20वीं सदी के अंतिम वर्ष तक न के बराबर था। इसकी अभिप्रेरणा वैज्ञानिकों की उस सोच का परिणाम थी जिसमें कृत्रिम बुद्धि के विकास का विचार था। उन्हें यह जानने की उत्सुकता थी कि एक मानव मस्तिष्क भले ही एक संगणक से गति मे
अनुमान मौसम का : घाघ और भड्डरी की कहावतें
Posted on 05 Dec, 2016 04:16 PM
विक्रम की 18वीं शताब्दी के प्राय: अंतिम भाग में कन्नौज के निकट निवासी घाघ कवि एक अनुभवी किसान हो गये, इनको खगोल का अच्छा ज्ञान था। उनकी प्रत्येक कविता उनके गुरुज्ञान और अपूर्व अनुभव की उदाहरण हैं। परंतु खेद का विषय है कि आज के विकास युग में हमें ऐसे अनुभवी पुरुष की न तो पूरी जीवनी मिलती है और न ही उनके सिद्धांतों पर वैज्ञानिक अध्ययन हुआ है। घाघ की कहावतें उत्तर प्रदेश व बिहार में प्रचलित हैं
हिमालयी प्राकृतिक संपदा एवं जैवविविधता संरक्षण में सहायक हैं स्थानीय पारंपरिक ज्ञान
Posted on 05 Dec, 2016 04:09 PM
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ‘पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान’ द्वारा राजीव गांधी दक्षिणी परिसर, मिर्जापुर में ‘‘जलवायु परिवर्तन के युग में धारणीय जल संसांधन प्रबंधन’’ विषयक दो दिवसीय (10-11 जनवरी, 2014) राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया।
हरित नैनोकम्पोजिट : भविष्य के पदार्थ
Posted on 05 Dec, 2016 04:05 PM

मानवीय स्वभाव है कि एक बार समस्या एवं उसका कारण स्पष्ट हो जाये तो उसके निदान के लिये नूतन

साइटोनेमीन : बहुउद्देश्यीय वाह्यकोशिकीय रंगद्रव्य
Posted on 05 Dec, 2016 12:22 PM
पृथ्वी की उत्पत्ति 3.5 खराब वर्ष पूर्व हुई थी। शुरुआती वातावरण आॅक्सीजनरहित था एवं वायुमंडल भी मौजूद नहीं था। अत: धरा लगातार पराबैंगनी विकिरण के संपर्क में थी। 2.2 खरब वर्ष पूर्व नील-हरित शैवालों का पदार्पण हुआ और उन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम प्रकाशसंश्लेशण की शुरुआत हुई। पराबैंगनी विकिरण से बचाव हेतु एवं अपने उत्तरजीविता के लिये नील-हरित शैवालों ने अनेक प्रकार के बचाव पद्धतियों को विकसित किया
वृक्ष विछोह : एक सामाजिक समस्या
Posted on 05 Dec, 2016 12:15 PM
आमने-सामने दो बड़े-बड़े बंगले हैं। लेकिन मुझे इन्हें 'घर' कहना अच्छा लगता है। मेरी समझ से घरौंदे से ही घर का स्वरूप आया होगा। 'घर' दो शब्द है 'घ' और 'र'। उसी तरह पति-पत्नी एक पुरुष, एक नारी, दोनों होते हैं एक। दोनों के सहयोग से ही बनता है एक घर। और इसी श्रेणी में आमने-सामने के दोनों 'घर' आते हैं। दोनों परिवारों ने बड़े प्रेम-सहयोग से एक साथ आमने-सामने घर बनवाया था। बीच में मात्र सड़क, आपस में अच
मृदा का धात्विक प्रदूषण और उपचार (Metallic pollution and treatment)
Posted on 05 Dec, 2016 12:09 PM

वाहित मल जल को कृत्रिम जलाशयों में रोककर उसमें शैवालों और जलकुम्भी जैसे जलीय पौधों को उगा

भारतीय कृषि में सोयाबीन
Posted on 05 Dec, 2016 11:58 AM
सोयाबीन एक दलहनी फसल है। इसे जादुई फसल भी कहते हैं। यह बहुत ही पुरानी फसलों में से एक है। इसके खेती का प्रमाण कई सौ साल पहले चीन में हुआ था। ऐसा लोगों का विश्वास है कि समुद्र और भूमि विस्तार के साथ सोयाबीन का आगमन, चीन के पड़ोसी देशों एवं भारत में हुआ था। आज के वर्तमान समय में सोयाबीन चीन, मन्चुरिया, जापान, कोरिया और मलेशिया का महत्त्वपूर्ण फसल हो गया है।
भारत में मलेरिया नियंत्रण : चुनौतियाँ एवं संभावनाएं
Posted on 04 Dec, 2016 04:52 PM
मलेरिया मानव सभ्यता के प्राचीनतम रोगों में से एक है जिसका उल्लेख 1600 ईसा पूर्व वैदिक लेखों में भी किया गया है। हिप्पोक्रेट्स द्वारा 2500 वर्ष पूर्व एवं 500 ईसा पूर्व आर्यन सर्जरी के संस्थापक चरक एवं सुश्रुत द्वारा भी इसका उल्लेख किया गया है। ऐतिहासिक दृष्टि से मलेरिया द्वारा युद्ध एवं शांति में भी अहम भूमिका निभाई गई है। मलेरिया के द्वारा ग्रीस की वैभवता, रोमन साम्राज्य का पतन, इजिप्शियन सभ
प्रोटिओमिक्स : प्रोटीन अध्ययन के परिपेक्ष्य में एक महत्त्वपूर्ण तकनीक
Posted on 04 Dec, 2016 03:24 PM
मानव समाज में सदैव से प्रकृति के रहस्यों को जानने एवं समझने की इच्छा रही है और मानव की इसी रुचि ने विज्ञान के नये-नये आयाम खोले हैं। मानव, विज्ञान के माध्यम से सदैव सूक्ष्म से लेकर दीर्घाकाय तथा जटिल जीवों के आंतरिक तथा बाहरी संरचनात्मक गुणों को जानने की कोशिश करता आ रहा है। मानव के इन जिज्ञासु गुणों के कारण विज्ञान की विभिन्न शाखाओं का जन्म हुआ। विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में एक शाखा प्रोटिओ
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