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नागपुर जिला
जीव गुदमरतोय गंगेचा, श्वास घेवू द्या तिला
Posted on 03 Dec, 2015 09:57 AMकसे वाटते हे वाचायला आणि ऐकायला ! हे विचित्र जरी वाटत असले तरी हे सत्य आहे.
जागतिक जलदिन व आपली ढासळती साक्षरता
Posted on 03 Dec, 2015 09:42 AMजागतिक जल दिन सन 1993 पासून, 22 मार्च ला, वेगवेगळ्या घोषवाक्यांनी, पाण्याचे आपल्या जीवनात
जलश्री : मूळजी जेठा महाविद्यालय जळगाव
Posted on 02 Oct, 2015 09:57 AMदुर्मिळ पशू, पक्षी, वनस्पती, कीटक यांचे संवर्धन करण्याच्या हेतूने जळगाव जिल्ह्यातील जंगले व जै
मधुमेही महाराष्ट्र
Posted on 02 Oct, 2015 09:35 AMभारतात दोन राज्ये अशी आहेत जी साखर उत्पादनात अग्रेसर आहे, आणि ती महमारा फार्मूला चल गया तो सारी व्यवस्था बदल जाएगी
Posted on 31 Aug, 2011 10:03 AMयोगेश अनेजा से साक्षात्कार
हमने तरक्की की नई राह ढूंढ ली है....
Posted on 31 Aug, 2011 09:30 AMकेशव डम्भारे से साक्षात्कार
केशव डम्भारे अभी 54-55 के हैं। 24 साल पहले जब नौसेना की नौकरी छोड़कर वे अपने गाँव पहुंचे तो पानी की विकराल समस्या से उनका आमना-सामना हुआ। तबसे वे लगातार अपने साथियों के साथ मिलकर ग्राम-जल के पुनर्जीवन के लिये लड़ रहे हैं। वे विज्ञान में किसी कारण डिग्री पूरी नहीं कर पाए, पर ग्रामजीवन का विज्ञान उन्हें खूब आता है। उन्हें मालूम है कि किस रसायन में किस तत्त्व के मिलन से ऊर्जा निकलेगी और किस तत्त्व को मिलाने से विस्फोट होगा। वे फ़िलहाल वलनी गाँव के उपसरपंच हैं और राजनितिक-समाजकर्मी ही उनकी जिंदगी का प्रमुख उद्देश्य है।
एक माह में बन गए 120 शौचालय
Posted on 30 Aug, 2011 04:30 PMबीडीओ और अन्य अफसर आए तो अचरज से भर गए। लेकिन, योगेश और केशव निर्मल ग्राम पुरस्कार लेने नहीं गए। उस सरपंच को भेजा, जो राजनीतिक रंजिश में सारे कामों में पलीता लगाए हुए था। वह लौटा तो इस टीम का फैन बन गया। वह दिन था और आज का दिन है, गाँव में कोई गुट नहीं बचा।
किसी भी गाँव की साफ-सफाई में शौचालय का होना बेहद महत्त्वपूर्ण है। अगर गाँव वाले खुले में शौच करें तो गंदगी घर, शरीर और दिमाग में कब्ज़ा कर लेती है। वलनी तो आदर्श गाँव योजना में शामिल था। लेकिन, उसकी हालत भी दूसरे गाँव की तरह थी। लोग खुले में शौच करते। हमेशा बदबू आना गाँव का अभिशाप था। लेकिन, क्या हो सकता था? सब चाहते थे कि घर में ही शौचालय हो, पर सबसे बड़ी समस्या थी पानी का अभाव।
बरास्ता गाँधी, जीवन बदलता एक पानीदार गाँव
Posted on 30 Aug, 2011 02:52 PMरहिमन कह गए हैं, बिन पानी सब सून...., नागपुर से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर एक गाँव ने पानी की महत्ता को कैसे समझा और स्वीकारा बता रहे हैं ….। इस बार वलनी के ग्राम तालाब की पार पर खड़ा हुआ तो दिल भर आया। हरे, मटमैले पानी पर हवा लहरें बनाती और इस किनारे से उस किनारे तक ले जाती। लगता दिल में भी हिलोरें उठ रही है। कहाँ था ऐसा तालाब ? जो था, वो सपनो में हीं था। सपने अगर सच हो जाएं तो दुनिया, दुनिया ना रह जाए।
दक्षिण भारतः शिलालेखों पर सबूत
Posted on 30 Jul, 2010 10:05 AM सरकारी प्रयासों से सिंचाई के लिए नहरों के अलावा कुएं और तालाब भी बनवाए जाते थे। महाभारत में युधिष्ठिर को शासन के सिद्धांतों के बारे में सलाह देते हुए नारद ने विशाल जलप्लावित झीलें खुदवाने पर जोर दिया है ताकि खेती के लिए वर्षा पर निर्भर न होना पड़े। प्राचीन भारतीय शासकों ने सार्वजनिक हित के लिए सिंचाई सुविधाओं के विकास जैसे जो कार्य किए उनके पुरालेखी प्रमाण हाथी गुंफा के शिलालेखों (ई.पू. दूसरी शताब्दी) से मिलते हैं। इनमें कहा गया है कि मगध में नंद वंश के संस्थापक प्रथम नंदराजा महापद्म (ई.पू. 343-321) के काल में राजधानी कलिंग के पास तोसली डिवीजन में एक नहर खोदी गई थी (पूर्व-मध्य भारत का वह क्षेत्र जिसमें अब का उड़ीसा, आंधप्रदेश का उत्तरी हिस्सा और मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा जुड़ा था)। नहरों की खुदाई से सरकार पर उनके रखरखाव की जिम्मेदारी स्वाभाविक तौर पर आ गई। आर्य शासकों के काल में नदियों पर निगरानी, भूमि के नाप-जोख (मिस्र की तरह) और मुख्य नहर से फूटने वाली दूसरी नहरों के लिए पानी के बहाव को रोकने वाले कपाटों की निगरानी के लिए बाकायदा अधिकारीवलनीः छब्बीस बरस की गवाही
Posted on 21 Mar, 2010 08:06 PMयह कहानी है नागपुर तालुका के गांव वलनी के लोगों की। वलनी में उन्नीस एकड़ का एक तालाब है। वलनीवासी 1983 से आज तक वे अपने एक तालाब को बचाने के लिए अहिंसक आंदोलन चला रहे हैं। छब्बीस वर्ष गवाह हैं इसके। न कोई कोर्ट कचहरी, न तोड़ फोड़, न कोई नारेबाजी। तालाब की गाद-साद सब खुद ही साफ करना और तालाब को गांव-समाज को सौंपने की मांग। हर सरकारी दरवाजे पर अपनी मांगों के साथ कर्तव्य भी बखूबी निभा रहा है यह छोटा-सा गांव। योगेश अनेजा, जो अब इस गांव के सुख-दुख से जुड़ गये हैं, वे 26 वर्ष के इस लम्बे दांस्तान को बयान कर रहे हैंहम सब कलेक्टर के पास अर्जी लेकर गए थे। उन्होंने कहा कि मैं तो यहां नया ही आया हूं। मैं देखता हूं कि मामला क्या है। अर्जी के हाशिए में कोई टिप्पणी लिखकर उसे एस.डी.ओ.