मध्य प्रदेश

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एक किसान 52 बोरिंग
Posted on 30 Sep, 2018 06:23 PM

यह कहानी एक ऐसे गाँव की है, जहाँ पाँच हजार की आबादी में एक हजार से ज्यादा बोरवेल हैं। अब समय के साथ ये सब सूख चुके हैं। यह उस गाँव के एक किसान की कहानी भी है, जिसने अपने खेतों को पानी देने के लिये सब कुछ दाँव पर लगा दिया लेकिन जितनी ही कोशिश की गई, जमीन का पानी उतना ही गहरा धँस गया।

लोगों को पीने का पानी ढोकर लाना पड़ता है
मालवा में कैंसर का कहर
Posted on 25 Aug, 2018 02:34 PM

'डग-डग रोटी, पग-पग नीर' और अपने स्वच्छ पर्यावरण के लिये पहचाना जाने वाला मध्य प्रदेश का मालवा इलाका इन दिनों एक बड़ी त्रासदी के खौफनाक कहर से रूबरू हो रहा है। यहाँ के गाँव-गाँव में कैंसर की जानलेवा बीमारी इन दिनों किसी महामारी की तरह फैलती जा रही है। कुछ गाँवों में घर-घर इसका आतंक है। तम्बाकू और बीड़ी पीने वालों को यह बीमारी आम है लेकिन यहाँ कई ऐसे लोग भी इस लाइलाज बीमारी के चंगुल में फँस

कैंसर से मौत के बाद गमजदा परिवार
बरसाती पानी में छुपा है बीहड़ों का इलाज
Posted on 23 Aug, 2018 03:26 PM

बीहड़ में तब्दील होती उपजाऊ जमीन (फोटो साभार - आईएएस अभियान)मिट्टी के कटाव का सबसे बदनुमा चेहरा यदि कहीं दिखता है तो वह बीहड़ में दिखाई देता है। बरसाती पानी से कटी-पिटी धरती ऊबड़-खाबड़ तथा पूरी तरह उद्योग, बसाहट या खेती के लिये अनुपयुक्त होती है। दूर से ही पहचान में आ जाती है। भारत में उन्हें उत्तर प

बीहड़ में तब्दील होती उपजाऊ जमीन
समझें नदियों की भाषा
Posted on 04 May, 2018 06:24 PM

जंगल ही वास्तव में नदियों को बचाने के यंत्र हैं। वृक्षारोपण करते समय बहुत सावधानी से प्रजातियों का चयन किया जाना

बेतवा नदी
पानी ने लौटाई खुशहाली
Posted on 03 May, 2018 06:57 PM

 

बालौदा लक्खा गाँव को अब जलतीर्थ कहा जाता है। इस साल इलाके में बहुत कम बारिश हुई है। 45 डिग्री पारे के साथ चिलचिलाती धूप में भी गाँव के करीब 90 फीसदी खेतों में हरियाली देखकर मन को सुकून मिलता है। पर्याप्त पानी होने से किसान साल में दूसरी और तीसरी फसल भी आसानी से ले रहे हैं। लगभग एक हजार से ज्यादा किसान सोयाबीन, प्याज, मटर, गेहूँ और चने की तीन फसलें लेते हैं। गाँव की खेती लायक कुल 965 हेक्टेयर जमीन के 90 फीसदी खेतों में पर्याप्त सिंचाई हो रही है।

वो कहते हैं न कि आदमी के हौसले अगर फौलादी हो तो क्या नहीं कर सकता। और जब ऐसे लोगों का कारवाँ बन जाये तो असम्भव भी सम्भव हो जाता है। हम बात कर रहे हैं उज्जैन जिले के एक छोटे से गाँव बालौदा लक्खा और उसके बाशिन्दों की। लोगों की एकजुटता और उनके प्रयास ने इस बेपानी गाँव को पानीदार बना डाला।

बीस साल पहले तक यह गाँव बूँद-बूँद पानी को मोहताज था। पानी की कमी के कारण खेती दगा दे गई थी। युवा रोजगार की तलाश में उज्जैन और इन्दौर पलायन करने को मजबूर थे। महिलाएँ पानी की व्यवस्था करने में ही परेशान रहती थीं। बच्चे स्कूल जाने के बजाय हाथों में खाली बर्तन उठाए कुआँ-दर-कुआँ घूमते रहते।

पानी से हरा-भार हुआ बालौदा लक्खा गाँव
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