Posted on 08 Oct, 2012 06:01 PMकेंद्रीय ग्रामीण विकास, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री जयराम रमेश गांवों को स्वच्छ बनाने के अभियान में जोर-शोर से जुटे हैं। वे लगातार लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जब तक लोग खुले में शौच करते रहेंगे, देश कुपोषण और दूसरी बड़ी बीमारियों से मुक्त नहीं हो पायेगा। इस संदर्भ में 3 अक्टूबर को वर्धा से निर्मल भारत यात्रा का शुभारंभ किया गया है। पेश है अंजनी कुमार सिंह से उनकी बातचीत के मुख्य अंश
Posted on 08 Oct, 2012 05:30 PMसुलभ शौचालय के रूप में देश के शहरों और कस्बों को सार्वजनिक शौचालय का बेहतरीन विकल्प पेश करने वाले बिंदेश्वशर पाठक किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्हें इस जनकल्याणकारी योजना को व्यवसाय का रूप दे दिया है। पेश है ग्राणीण स्वच्छता के मुद्दे पर उनसे विशेष बातचीत
एक स्वच्छ शौचालय का मानव जीवन में कितना महत्व है? स्वच्छ भोजन जीवन के लिए जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी स्वच्छ शौच की व्यवस्था भी है। मल त्याग की अव्यवस्थित व्यवस्था कई तरह की बीमारियों को जन्म देती है। बीमारियों की वजह से न सिर्फ दैहिक नुकसान होता है, बल्कि आर्थिक हानि भी होती है। शौचालय की व्यवस्था होने पर सामाजिक, शारीरिक और आर्थिक तीनों ही रूप में सशक्त होते हैं। इसके साथ ही यह प्रदूषण मुक्ति में भी सहयोगी है। मानव मल खाद बन कर जहां खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में मददगार होता है, वहीं इससे बायोगैस का निर्माण भी होता है।
Posted on 08 Oct, 2012 01:07 PMखजूर की पत्तियों से अस्पतालों से निकलने वाले गंदे पानी से औषधीय रसायन निकाला जा सकता है। यह नया शोध ओमान के वैज्ञानिकों ने किया है। ‘गल्फ न्यूज’ समाचार पत्र के मुताबिक मस्कट के ‘सुल्तान काबूज यूनिवर्सिटी’ के रसायन विभाग की एक परियोजना के मुख्य अनुसंधानकर्ता अल सईद अल शाफी ने अस्पतालों के गंदे पानी की सफाई के लिए रासायनिक ईकाई की स्थापना के उद्देश्य से यह शोध शुरू किया। अल शाफी का कहना है कि खजूर क
Posted on 06 Oct, 2012 03:08 PMबिजली उत्पादन के अनेकानेक तरीकों से प्रयास किया जा रहा है। ‘थर्मल पॉवर सिस्टम, हाइडिल सिस्टम, न्यूक्लियर सिस्टम’ इन सभी से ही ज्यादातर बिजली हमें प्राप्त होती है। पर इन तीनों के सीमाएं और दिक्कतें हमारे सामने हैं। जरूरी हो गया है कि इन तीनों से बाहर जाकर ऊर्जा जरूरतों के लिए बिजली को पहचाना जाए। पवनचक्की, सौर ऊर्जा, ज्वार-भाटा ऊर्जा तथा गोबर गैस आदि तरीकों को मजबूत करना होगा। हर हाल में हमें बि
Posted on 03 Oct, 2012 04:43 PM लेकिन इसी महाराष्ट्र में एक ऐसा भी इलाका है जो अकाल को अपने गांव की सीमा के बाहर ही रखता है। पानी सहेजने की एक लंबी सामाजिक परंपरा निभाते हुए यह अपनी गुमनामी में भी मस्त रहता है।अकाल की पदचाप सुनाई देने लगी है। पानी के अकाल के साथ-साथ इंसानियत के अकाल की खबरें भी अखबारों में आने लगी हैं। इस अकाल को और ज्यादा भयानक बनाने के लिए महाराष्ट्र राज्य की सरकार ने पहले से ही कमर कस ली थी! सन् 2003 में महाराष्ट्र राज्य की जलनीति तैयार हुई थी। इस नीति में पानी के इस्तेमाल का क्रम बदल डाला था। केंद्र सरकार की नीति में पहली प्राथमिकता पीने के पानी की, दूसरी खेती की और उसके बाद उद्योगों की रखी गई है। पर महाराष्ट्र सरकार ने इस क्रम को बदल कर पहली प्राथमिकता पीने के पानी को दी, दूसरी उद्योगों को और उसके बाद अंतिम खेती को।
बात यहीं तक सीमित नहीं थी। महाराष्ट्र जल क्षेत्र सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत सन् 2005 में दो कानून बहुत आनन फानन में बना दिए गए थे। पहला था महाराष्ट्र जल नियामक प्राधिकरण अधिनियम और दूसरा सिंचाई में किसानों की सहभागिता अधिनियम। पहले कानून का आधार लेकर महाराष्ट्र में जल नियामक प्राधिकरण की स्थापना की गई। प्राधिकरण पानी की दरों को तय करेगा, जल वितरण करेगा और जल संबंधी विवादों का निपटारा भी वही करेगा अब। ये सारे काम अब तक शासन करता था। अब तीन लोगों का प्राधिकरण इन कामों को करेगा। प्राधिकरण ने पहले काम की शुरूआत भी बड़ी जल्दी कर दी यानी पानी के दरें तय करना। बड़े पैमाने पर पानी के इस्तेमाल के लिए किस तरीके से दरें तय हों यह बताने के लिए ए.बी.पी. इन्फ्रास्ट्रकचर प्रा. लि. नामक कंपनी को टेंडर निकाल
Posted on 30 Sep, 2012 02:24 PM28 सितंबर 2012, दिल्ली। वॉश युनाइटेड, क्विकसैंड, गेट्स फाउंडेशन, डब्ल्यूएसएससीसी, अर्घ्यम, हिन्दी वाटर पोर्टल, वाटर ऐड और भारत सरकार के निर्मल भारत अभियान सहित कई संगठन मिलकर निर्मल भारत यात्रा निकाल रहे हैं। खुले में शौच को रोकने, ‘हैंड वॉशिंग’ और औरतों में माहवारी संबंधी स्वच्छता की जागरूकता के लिए निर्मल भारत यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। भारत सरकार के निर्मल भारत अभियान की अबेंसडर विद्या बालन भी इस अभियान में जोर-शोर से शिरकत कर रही हैं।