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बिन पानी जीवन कहाँ
Posted on 09 May, 2016 04:19 PM
यह निर्णय सरल नहीं कि वर्तमान जल संकट के विश्लेषण की प्रक्रिया का विषय प्रवेश किस बिन्दु से करें। जल संकट का मुद्दा जितना विकट, विकराल और संवेदनशील है उससे सैकड़ों गुना जटिल है। यह पतंग के माँझे की तरह उलझा हुआ विषय है। जितना सुलझाओ उतना और उलझ जाता है।

देश भर में सरकारी प्रयासों के अलावा, चार-पाँच हजार गैर-सरकारी संस्थाएँ तो अवश्य संलग्न हैं जो जल संकट के निराकरण का सतत अभ्यास कर रही हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पहले दो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे राष्ट्रीय नेता रहे हैं जिन्होंने ‘जी जान’ लगाकर इस समस्या के ‘निराकरण’ का हर सम्भव प्रयास किया था।
त्रासदी में परम्परा
Posted on 08 May, 2016 04:46 PM
हम सब तालाबों को पीते जा रहे हैं, लिहाजा आज पीने के लिये पानी को तरस रहे हैं। मिटते-सिमटते तालाब मौजूदा चल संकट की बड़ी वजह है। दैनिक जागरण अपने जल संरक्षण सरोकार के तहत सोमवार (नौ मई से) ‘तलाश तालाबों की’ नामक देशव्यापी समाचारीय शुरू कर रहा है। मकसद सिर्फ इतना है कि समाज और सरकार तालाबों की महत्ता समझें और अपने दायित्वों के निर्वहन द्वारा इनका मिटना-सिमटना रोकें।
स्वामी सानंद : नौकरियाँ छोड़ी, पर दायित्वबोध नहीं
Posted on 08 May, 2016 03:54 PM

स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - 17वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:

मन का मैल धो शुरू किया यमुना सफाई का काम
Posted on 08 May, 2016 01:50 PM
यह स्कीमर आईटीओ पुल व मेट्रो पुल के बीच चार पाँच दिन तक कचरा
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