Posted on 28 Oct, 2013 01:41 PMपहाड़ कैसे बनते हैं या ज्वालामुखी कैसे फटता है? डायनासोर कैसे विलुप्त हो गए? ग्लोबल वार्मिंग की वजहें क्या है या फिर धरती को कैसे बचाया जाए, अगर इस तरह के सवाल आपके मन उठते हैं तो जिओलॉजी आपके लिए बना हुआ विषय है।
Posted on 27 Oct, 2013 01:45 PMक्या आपकी भूगोल में दिलचस्पी है और क्या आप मानचित्र वगैरह में खुद को एक्सपर्ट मानते हैं। तो फिर आप ज्योग्राफर्स, ज्योलॉजिस्ट, हाईड्रोग्राफर एवं इंफॉरमेशन टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता हासिल कर एक अच्छा करिअर विकल्प पा सकते हैं। जी.आई.एस.
Posted on 19 Oct, 2013 04:17 PMजब मूर्ति नौवें दिन अपने अंतिम दिवस हवन के बाद स्थान से हटाई जाती है तो स्वतः ही देवी का परायण हो जाता है। इसके पश्चात वह मिट्टी है और यदि मिट्टी की वस्तु का मिट्टी में विसर्जन कर दिया जाए तो गलत क्या है? हिंदु धर्म में जल विसर्जन उनका किया जाता है जो अकाल मृत्यु मरे हों, जहरीले कीड़े ने काटा हो, जल कर मरा हो, अविवाहित हो, पाचक में मरा हो। मां दुर्गा और श्री गणेश महोत्सव में किया जाने वाला जल विसर्जन नदी की आस्था को प्रदूषित करने से अधिक कुछ भी नहीं है। बांदा। उच्च न्यायालय इलाहाबाद उत्तर प्रदेश के गंगा प्रदूषण बोर्ड की तरफ से दाखिल की गई जनहित याचिका संख्या 4003/2006 गंगा-यमुना में मूर्ति विसर्जन पर रोक से सकते में आई उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद जिला प्रशासन के लिए नदी में मूर्ति विसर्जन गले की फांस बन गया। एक वर्ष पूर्व उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने इसी याचिका पर आदेश पारित करते हुए इलाहाबाद जिला प्रशासन को जल विसर्जन के विकल्प तलाश करने की हिदायत दी थी। बावजूद इसके एक वर्ष तक ब्यूरोक्रेसी नींद में सोती रही और वर्ष 2013 के मां दुर्गा महोत्सव के बाद मूर्तियों के जल विसर्जन को लेकर न्यायालय में उसकी जवाबदेही को याचिका कर्ताओं ने कटघरे में खड़ा कर दिया।
उच्च न्यायालय ने सख्त लहजे में इलाहाबाद जिला प्रशासन से कहा कि आप एक वर्ष तक सोते रहे तो अब सजा भी भुगतिए। कोर्ट के ये शब्द सुनकर प्रशासन से लेकर प्रदेश सरकार तक के प्रमुख सचिव के लिए मूर्तियों का विसर्जन मुद्दा बन गया।
Posted on 18 Oct, 2013 03:49 PMकिसी भी दिशा में जाऊँ कोई न कोई नदी और कभी-कभी तो कई नदियाँ रास्ते में मिलती थीं
कितनी ही नदियां थीं जिन्हें मैं उनके पानी के रंग से घाट के पत्थरों से, अगल-बगल के पेड़ों से और उनके नाम से जानता था उनके जन्म लेने की और बाद में जीवन की हजारों कहानियाँ थीं
उनके जीवन में भी हमारी ही तरह दुःख थे पहाड़ों की ओट होकर वे भी कई बार रोती थीं
Posted on 18 Oct, 2013 03:46 PMलोग जो अपनी चिंताओं से छूटने आए थे वहां एक शाम उन सबने कहा पानी बढ़ रहा है नदी अपनी बगल में फैले जंगल जैसी प्रलापों से भरी नींद जैसी नदी में पेड़ों से गिरता अँधेरा बहता था किनारे पर औरतें शोकगीत गाती खड़ी रहीं बूढ़े खाँसते रहे तेज हवा में नौजवानों के चेहरों पर कितनी धूल कितने पैवंद लहूलुहान देहों पर स्याह पानी भरता हुआ उनकी आत्मा के खोखल में