विनोद भारद्वाज

विनोद भारद्वाज
चंबा जेल के सामने
Posted on 28 Oct, 2013 03:55 PM
साफ-सुथरे सुंदर कमरों की
कतारें
रावी के किनारे देखकर
तुमने कहा
कितनी सुंदर है यह इमारत

तुम नहीं जानती
कि यह एक जेल है
यह बनी है एक ऐसी जगह पर
जहाँ बहुत कम होते हैं अपराध

बहुत थोड़े से पत्तों में
पीपल का नंगा सुंदर पेड़
ठीक बीच में
उम्र कैद झेल रहा है।

कहां से आती हैं ये त्रासदियां
Posted on 07 Jul, 2013 02:27 PM
प्राकृतिक संसाधनों की खपत का बेकाबू दैत्य पूरी पृथ्वी के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। विश्व भर में आवाज उठने लगी है कि विकास के नाम पर अनियंत्रित दोहन पर रोक लगनी ही चाहिए। खतरे की इस इबारत को देखने और समझने का सिलसिला अभी शुरू हुआ हो, ऐसा भी नहीं है। 1704 में न्यूटन ने यह जता दिया था कि पृथ्वी 2060 तक नष्ट हो जाएगी। न्यूटन के इस विचार का आधार क्या था? प्रकृति का नैसर्गिक सौंदर्य आदिकाल से मनुष्य को लुभाता रहा है। सौंदर्य के अलावा हमारे जीवन का स्पंदन भी इस प्रकृति के कारण ही संभव है, पर क्या हम इससे जितना लेते हैं उसका कोई अंश वापस देने की भी कोशिश करते हैं? शायद भूलकर भी नहीं, बल्कि सच तो यह है कि हम अपनी जरूरतों की सीमा-रेखा का भरपूर उल्लंघन कर रहे हैं। जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो यह बहस जरूर शुरू हो जाती है कि यह आपदा वाकई प्रकृति के कारण आई अथवा इसे प्रकृति से की जा रही छेड़छाड़ का नतीजा माना जाए। उत्तराखंड की इस बेहद विनाशकारी त्रासदी पर भी बहसों का बाजार गर्म है, लेकिन इसी के बरअक्स गांधी के एक ऐसे विचार की याद आ रही है, जिस पर कभी भी इतना ध्यान नहीं दिया गया, जितना अपेक्षित था।
पहाड़ों के साथ एक सफरनामा
Posted on 15 Feb, 2011 12:13 PM

मैं पर्यावरण मामलों का विशेषज्ञ नहीं हूं। क्या वाकई कोई भी पर्योवरण मामलों का विशेषज्ञ हो सकता है? लेकिन मुझे लगता है पूरी धरती ही पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील है। वह हज़ारों वर्षों से मानव सभ्यता के अभियानों की साक्षी जो रही है।

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