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चंपावत जिला
सीमान्त में पर्यटन उपेक्षित व असन्तुलित
Posted on 18 Mar, 2019 01:52 PMकैलास-मानस के बाद पिथौरारगढ़-चम्पावत के साहसिक यात्रा परिपथों के चिन्हीकरण का काम वर्षों से हो रहा है। अब इनमें
जंगल पंचायत
Posted on 16 Mar, 2019 02:00 PMमानव सभ्यता के प्रारम्भ से ही मनुष्य का जंगल से गहरा रिश्ता रहा है। हवा, पानी तथा भोजन जंगलों से जुटाए जाते रहे हैं।
शीतकालीन भाबर प्रवास: घमतप्पा
Posted on 16 Mar, 2019 11:08 AMकाली कुमाऊँ के दो क्षेत्रों-सिप्टी एवं तल्लादेश-के लोग विशिष्ट समूह थे। ये लोग भाबर को विस्थापित होने के बजाय अप
मन्दिर और मूर्तियाँ
Posted on 14 Mar, 2019 12:22 PMउत्तराखण्ड के पूर्वी सीमान्त जिलों- पिथौरागढ़ एवं चम्पावत, जो संयुक्त रूप से काली नदी के जलागम क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं, का विविध संस्कृतियों एवं पुरा मानव समूहों की विचरण व निवास स्थलों के रूप में विशिष्ट स्थान रहा है। इन जनपदों मेें पुराकालीन मानव-संस्कृति के अस्तित्व को पुरातात्विक स्रोत प्रमाणित कर चुके हैं, यथा-देवीधुरा (चम्पावत) व विशाड़ (पिथौराग
पिथौरागढ़ की भवन निर्माण तकनीकी
Posted on 20 Feb, 2019 01:13 PMइस आलेख का सम्बन्ध मुख्यतः पर्वतीय जिले पिथौरागढ़ के दूरस्थ ग्राम्यांचलों में निवास करने वाले लोगों व समुदायों के जन-जीवन से है। मैं 1940 के दशक में पिथौरागढ़ कस्बे के समीप रहता था। तब इस पूरे इलाके में मोटर सड़क नहीं थी। दूर-दराज में बिखरे पर्वतीय गाँव सँकरी पगडंडियों से जुड़े थे। नदी घाटी के मुहानों से अजपथ पहाड़ियों की पीठ पर रेंगते चढ़ते और पर्वतशीर्षोंजोहार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
Posted on 12 Feb, 2019 05:48 PMवर्तमान का अतीत में समाहित होकर भविष्य में उजागर होना ही इतिहास है। यह आलेख, शिलालेख, गुहा चित्र, ताम्र पत्र, धातु या मृदा भांड, मूर्ति अथवा जीवाश्म के रूप में प्राप्त वस्तुओं के सूक्ष्म अध्ययन के पश्चात निर्धारित किया जाता है। जब आज भी इतिहासकार आर्यों के मूल स्थान तथा उनके भारत आगमन के सम्बन्ध में एक मत नहीं हैं तो हिमालय के सुदूर दुर्गम जोहार घाटी जैसे एक बहुत छोटे क्षेत्र और इस क्षेत्र का