चंडीगढ़ जिला

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पुस्तक परिचय - नरक जीते देवसर
Posted on 05 Jan, 2017 10:34 AM


तालाब, कुएँ, पोखर और जलाशयों का भारतीय संस्कृति में बहुत महत्त्व है। इसका कारण तालाबों का हमारे रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़ा होना है। एक समय तालाब और पोखर बनवाना पुण्य का काम समझा जाता था। लेकिन आधुनिकता और विकास के इस दौर में तालाब हमारे जीवन से बाहर हो गए हैं। पीने के लिये नल और सिचाईं के लिये नहर और ट्यूबवेल का उपयोग होने लगा।

नरक जीते देवसर
Water Crisis in Punjab
Posted on 21 Apr, 2016 10:02 AM


Punjab – the name itself is explanatory and stands for abundance of water. But it is ironic that the land, which is named after five rivers: Ravi, Chenab, Jhelam, Satluj and Beas is endangered to become the land without water that is “Be-Aab” which means without water.

पानी-हवा के मोह में जुटा व्यावहारिक सन्त बाबा सीचेवाल
Posted on 08 Jan, 2016 01:48 PM
सन्त बलबीर सिंह सीचेवाल की शख्सियत अब किसी पहचान की मोहताज नहीं रही। देसी-विदेशी मीडिया ने सन्त बलबीर सिंह सीचेवाल की सोच व कारगुजारी को पूरा सम्मान दिया है। देश के पूर्व राष्ट्रपति ने पर्यावरण सम्बन्धित एक संदेश में बाबा सीचेवाल का खासतौर पर जिक्र करके उनके काम को मान्यता दी है। गुरुनानक देव जी के काल की काली बेई नदी को पुनर्जीवित करने की राह पर चल रहे बाबा सीचेवाल की कार्यप्रणाली व किए
हरित क्रान्ति के जख्म
Posted on 19 Oct, 2015 10:39 AM

पिछले सवा-एक साल में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी और उनके मन्त्री कुछ अवसरों पर देश में दूसरी हरि

Pesticide spraying
भूजल निकालने के लिए ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट न दें : हाईकोर्ट
Posted on 17 Jan, 2015 11:03 AM चण्डीगढ़ हाईकोर्टचण्डीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने गुड़गाँव में कम्पनियों की ओर से प्रोजेक्ट के लिए अवैध रूप से भूजल के इस्तेमाल पर रोक लगाने वाली याचिका पर सुनवाई
. . . और अब मुसीबत बनी नहरें
Posted on 08 Jul, 2014 09:57 AM जिन गांवों में पानी की कमी का संकट है, में तकरीबन हर गांव में ऐसे स
. . . और टूट गया पानी का गढ़
Posted on 25 May, 2014 09:13 AM

एक जमाना था जब पानी की गुणवत्ता के चलते यहां पैदा होने वाले गन्ने, गाजर और प्याज की दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी में सर्वाधिक मांग होती थी। मंडी के व्यापारी गांव में आकर खेत में खड़ी फसल का सौदा कर लेते थे। उधर, गांव की थली से भरत के लिए उठाए जा रहे रेत से थली में खेत 50-50 फुट के गड्ढे हो गए हैं। परिणामत: थली में पानी का चोआ एकदम ऊपर आ गया है। गांव मार में है, पानी की कमी गांव को मार रही है तो थली में रेत उठाने से निकलने वाला पानी वहां खेती को चौपट कर रहा है।

अप्रैल 2014 में पूज्य पिताजी श्री गणपत राय भारद्वाज का निधन हुआ तो तकरीबन डेढ़ दशक बाद अपने घर, गांव में लगातार 13 दिन रहने का अवसर मिला। पिछले एक दशक में गांव जब भी गया तो एक- दो दिन रुककर वापस आ जाता था। गांव काफी बदल गया है, इस बात का अहसास इतने लंबे समय तक गांव में रहने के बाद हुआ। खुद पर थोड़ी शर्म भी आई कि गांव, गंवई पर नियमित लेखन करता हूं, और बहुत वाचालता से जगह-जगह गांव के मुद्दों पर बात करता हूं, लेकिन अपने ही गांव के सवालों को नहीं जानता।

शिक्षा संस्थानों के लिए हरियाणा भर में विख्यात मेरे ऐतिहासिक गांव हसनगढ़ में अब बर्गर, पेट्टीज, अंडा, चाउमिन, मोमोज और मांसाहार की दुकान खुली हैं। एक दुकान पर पेस्ट्री भी रखी दिखाई दी। पहले बर्फी, जलेबी, घेवर और समोसा बनाने वाली हलवाइयों की तीन-चार परंपरागत दुकानें थी। पहले दिन लगा कि मेरा गांव भी हरियाणा के दूसरे हजारों गांवों जैसा हो रहा है।
ਬੀਜ ਵਿਰਾਸਤ ਆਪਣੀ ਯਾਰੋ, ਕੰਪਨੀਆਂ ਨੂੰ ਧੱਕਾ ਮਾਰੋ!
Posted on 08 Nov, 2013 01:16 PM ਉਹ ਤਾਂ ਭਲਾ ਹੋਵੇ ਕੁੱਝ ਭਲੇਮਾਣਸ ਵਿਗਿਆਨੀਆਂ ਦਾ ਜਿੰਨ੍ਹਾ ਨੇ ਇਹਨਾਂ ਕੰਪਨੀਆਂ
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