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तेरा पानी, मेरा पानी!
Posted on 10 Nov, 2010 10:07 AM

सागर में गागर

खबर है कि भविष्य में पानी पेट्रोल के भाव बिकेगा। आज भी पानी की बोतल दस से बीस रुपए लिटर के बीच बिक ही रही है। बस अड्डों और स्टेशनों पर एकाध नल को छोड़कर बाकी खराब रहते हैं या खराब कर दिए जाते हैं। इधर गाड़ी या बस आती है, उधर प्यासों का लम्बी क्यू लग जाता है। लम्बा क्यू और गाड़ी छूटने के भय से लोगों को मजबूरन बच्चों की प्यास बुझाने के लिए हॉकर से पानी की बोतल खरीदनी ही पड़ती ह
मनरेगा- कहीं नरम , कहीं गरम
Posted on 10 Nov, 2010 09:48 AM महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना(मनरेगा) के बारे में ज्यादातर खबरें या तो उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार की होती हैं या फिर योजना की कारआमली में हो रही ढिलाई की। सरकार ने इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा पर कुल 40 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं लेकिन शहराती मध्यवर्ग का एक बड़ा तबका और जनमत-निर्माता इसी पसोपेस में हैं कि आखिर इन रुपयों से कुछ सार्थक हो भी रहा है या नहीं। नुक्ताचीनी की बातों क
जल में घुली राजनीति
Posted on 10 Nov, 2010 09:06 AM

पानी हवा जितनी मयस्सर नहीं, इसका प्रयोग तो नियमों के अधीन ही होगा


पानी का असमान वितरण, बाँधों के लिये विस्थापितों को अपर्याप्त मुआवज़ा, आर्थिक रूप से संपन्न और विपन्न उपभोक्ताओं में भेद-भाव। यह भारत में जल से जुड़ी आम बातें हैं। पत्रकार दिलीप डिसूजा इस पर गौर कर रहे हैं और सुझाव दे रहे हैं कि राजनीति के द्वारा ही स्थिति में बदलाव लाया जा सकता है।

इस लेख की शुरुआत होती है मुम्बई पूना राजमार्ग पर, कामशेत के निकट बने पावना बाँध के नेपथ्य में उभरी झील के किनारे बसे गाँव, ठाकुर शाही में। गाँव का एक युवक राजू बताता है की उसका परिवार बाँध कि वजह से विस्थापित हुआ। उनकी उपजाऊ कृषि भूमि इस झील ने लील ली।

क्या आप बेस्ट वाटर एनजीओ हैं
Posted on 09 Nov, 2010 06:24 PM

जल संरक्षण के लिए विभिन्न कंपनियों द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्य के सम्मान के लिए वाटर डाइजेस्ट वाटर पुरस्कार, 2006 में स्थापित किए गए थे। यह पुरस्कार यूनेस्को और भारत के जल संसाधन मंत्रालय द्वारा समर्थित है। पुरस्कार का मुख्य फोकस लोग, नवीनता और वह प्रक्रिया है जिसका जल संसाधनों के स्थायित्व या अविरलता के लिये महत्वपूर्ण योगदान है, इसका मुख्य फोकस वें गैर सरकारी संगठन और कॉर्पोरेट भी हैं जो लोग

वाटर डाइजेस्ट वाटर अवार्ड
पानी का अभाव – धारणाएँ, समस्याएँ और समाधान
Posted on 09 Nov, 2010 10:42 AM

2025 तक विश्व की आधी आबादी भीषण जलसंकट झेलने पर विवश होगी। क्या है इस संकट की जड़?

जैव विविधता की रीढ़ को खतरा
Posted on 06 Nov, 2010 08:47 AM [img_assist|nid=25855|title=|desc=|link=none|align=left|width=199|height=88]गत 19 से 29 अक्टूबर को आयोजित संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन में 192 देशों ने भाग लिया।

सम्मेलन में प्रजाति जीव आयोग के अध्यक्ष साइमन स्टुअर्ट ने अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ के माध्यम से जानकारी दी कि रीढ़ की हड्डी वाले जीवों पर किये गये अनुसंधानों से पता चलता है कि प्रकृति की रीढ़ खतरे में है। आज दुनिया में अनेक स्तनधारी, पक्षी, उभयचर, सरीसृप और मछलियां समाप्ति के कगार पर हैं। इस संबंध में दुनिया के तीन हजार वैज्ञानिकों ने लाल सूची तैयार की है।
इंसान का 20 फीसदी दम घोंट रहा है मलत्याग
Posted on 06 Nov, 2010 08:40 AM
क्या आपको पता है कि प्रत्येक इंसान मल त्यागने के दौरान साल भर में करीब दो टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस उत्सर्जित करता है? जी हां, स्पेन के शोधकर्ताओं ने एक शोध में बताया है कि खाने के बाद मनुष्यों द्वारा मल त्यागने के कारण 20 फीसदी से भी अधिक कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस उत्सर्जित होती है। मनुष्यों के मल त्यागने के कारण कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस के उत्सर्जन का तथ्य पहली बार सामने आया है।

प्रमुख शोधकर्ता इवान मुनोज ने बताया कि मनुष्यों के मल से प्रत्येक साल 20 फीसदी से भी अधिक कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है,
परमाणु ऊर्जा से पीछा छुड़ा रहा है अमेरिका
Posted on 04 Nov, 2010 09:41 AM

भारत को देने पर तुला 40 परमाणु संयंत्र

नदियों की प्रदूषण मुक्ति का हो संकल्प
Posted on 04 Nov, 2010 09:34 AM

हवा-पानी व खाद्य पदार्थों में घुल-मिल रहे प्रदूषण से हम ही नहीं, बल्कि दुनिया के अधिसंख्य देश जूझ रहे हैं।



दुनिया का सबसे शक्तिशाली अमेरिका भी इससे अछूता नहीं है। मिसीसिपी अमेरिका की सबसे लंबी नदी है। 'गल्फ ऑफ मैक्सिको' व उसके आसपास के इलाके में आयल इंडस्ट्री, मेडिसिन व अन्य उद्योगों के खतरनाक रासायनिक उत्प्रवाह ने मिसीसिपी को जहरीला बना दिया है और इसके आसपास की बड़ी आबादी कैंसर जैसे घातक रोग की गिरफ्त में है। यही स्थिति अमेरिका की एक अन्य नदी कलोराडो की भी है। अमेरिका के सोसल सांइटिस्ट मानते हैं कि जल प्रदूषण को खत्म करने के लिए मौजूदा समय में किए जा रहे उपाय नाकाफी हैं।

गर्त में जाती 'अर्थ'
Posted on 03 Nov, 2010 11:00 AM जीवेम शरद: शतम् गाने वाला भारत लंबे अर्से तक ज्ञान और पूंजी दोनों का सिरमौर रहा। वक्त बीतने के साथ यह विकासशील देशों की श्रेणी में निचली पायदान पर खड़ा नजर आया। एक बार फिर बीतते वक्त के साथ भारत पूंजी के पैमाने पर मजबूत हो उभर रहा है। इसके साथ ही पर्यावरण को लेकर इसकी चिंताओं को भी तवज्जो मिलनी शुरू हो गई है। दिसंबर में कोपेनहेगेन में होने वाली पर्यावरण के मसलों से जुड़ी वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस क
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