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समानता और एक वैश्विक जलवायु समझौता
Posted on 16 Jan, 2016 03:46 PM

विकासशील देशों में समानता के सिद्धान्त का उपयोग रक्षात्मक अंदाज में करने की प्रवृत्ति रही

जलवायु परिवर्तन और संपोषणीय विकास
Posted on 16 Jan, 2016 03:00 PM

जलवायु परिवर्तन संपोषणीय विकास के विविध आयामों में से एक है। सभी की इच्छा है कि जलवायु पर

प्रदूषण विहीन ऊर्जा, सौर ऊर्जा मिशन के बढ़ते कदम
Posted on 16 Jan, 2016 11:26 AM सरकार की योजना 2019-20 तक देश में छतों पर लगे पैनल के जरिए 4200 मेग
अमीरीः पीर पराई न जाने रे
Posted on 16 Jan, 2016 11:20 AM
जैसे-जैसे धन-दौलत और शिक्षा का व्यापार बढ़ता है, सफल लोगों में करुणा और संवेदना कम होती जातीहै। यह किसी धार्मिक गीत या गाँधीजी की कही हुई बात भर नहीं है। अब इसके सबूत आधुनिक मनोविज्ञानसे आ रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन : सूचना व जनसंचार तंत्र की भूमिका
Posted on 16 Jan, 2016 10:10 AM


विदित हो कि गत दो माह के दौरान जलवायु परिवर्तन के भिन्न पहलुओं पर मैंने कुछ अध्ययन, मनन और लेखन किया है, किन्तु मौसम विभाग के महानिदेशक डाॅ. लक्ष्मण सिंह राठौर एवं भारतीय कृषि अनुसन्धान केन्द्र के वैज्ञानिक डाॅ. एस. नरेश कुमार से हुई आकाशवाणी चर्चा के बाद मन बहुत उद्वेलित भी है और उत्साहित भी। इन्हीं भावों में विचरते रात भर नींद नहीं आई।

बड़ा है कुछ तो गड़बड़ है
Posted on 16 Jan, 2016 09:48 AM

आजकल अखबारों में, टेलिविजन में भोजन विशेषकर सब्जियों में बहुत ही भयानक कीटनाशकों की, जहरी

विशेष सूचना : ‘स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद’ शृंखला का शुभारम्भ
Posted on 15 Jan, 2016 03:32 PM


.सन्यासी बाना धारण कर प्रो. जीडी अग्रवाल से स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद का नामकरण हासिल गंगापुत्र का संकल्प किसी परिचय का मोहताज नहीं।

जानने वाले, गंगापुत्र स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद को ज्ञान, विज्ञान और संकल्प के एक ऐसे ही संगम की तरह जानते हैं, जैसा कि हम तीरथपति प्रयाग को जानते हैं; विज्ञान और आध्यात्म, विचार और कर्म और सच कहें, तो धर्म और उसके मर्म का संगम रहे हमारे प्रयाग, माघ मेला और कुम्भ को जानते हैं।

माँ गंगा के सम्बन्ध में अपनी माँगों को लेकर स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद द्वारा किये कठिन अनशन को करीब सवा दो वर्ष हो चुके हैं और ‘नमामि गंगे’ की घोषणा हुए करीब डेढ़ बरस, किन्तु माँगों को अभी भी पूर्ति का इन्तजार है।

जैव ईंधन : जलवायु परिवर्तन का झूठा समाधान
Posted on 15 Jan, 2016 12:43 PM भूमि हड़पने के अलावा ये कम्पनियाँ भूमि और पानी पर नियंत्रण के माध्य
जैविक खेती का रासायनिक किसान
Posted on 15 Jan, 2016 10:51 AM
ज्यादा पुरानी बात नहीं है। देश में खाने की किल्लत थी और सीमा पर हमले का डर था। तब जय जवान, जय किसान का नारा लगा। देश को किसानों की जरूरत थी, इसलिये प्रगति के नाम पर उनसे अपने पुराने तरीके छोड़ आधुनिक खेती करने को कहा गया।

कई इलाकों के किसानों को जोर डाल कर कहा गया कि उत्पादन बढ़ाएँ। इसके लिये उन्हें कई तरह के उन्नत कहे जाने वाले बीज और नई तरह के कीटनाशक और खाद दिये गए।

उत्पादन बढ़ा भी। गोदाम भर गए। हमारे समाज के सत्तासीन लोग जो लोग अपना भोजन नहीं उगाते, उनकी चिन्ता दूर हुई। किसान का महत्त्व स्वतः ही कम हो गया। कई इलाकों में भुखमरी फिर भी दूर नहीं हुई।
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