सरकार की योजना 2019-20 तक देश में छतों पर लगे पैनल के जरिए 4200 मेगावाट बिजली बनाने की है। इसके तहत निजी, सरकारी तथा औद्योगिक भवनों की छतों का इस्तेमाल किया जाएगा। ताकि उस भवन में इस्तेमाल होने वाली बिजली की जरूरत उसी भवन की छत पर लगे सौर ऊर्जा पैनल से पूरी की जा सके। राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन के तहत सामान्य राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों को 30 फीसदी वित्तीय सहायता दी जाएगी। देश में विकास को गति देने के लिये बिजली,पानी और सड़क की बहुत जरूरत है। बिजली की कमी के कारण बहुत से काम नहीं हो पा रहे हैं। गाँवों में खेती के बिजली तो बहुत ही कम मिल पाती है। सौर ऊर्जा से इस समस्या का मुकाबला किया जा सकता है।
आज प्रदूषण विहीन ऊर्जा की बात की जा रही है। आणविक ऊर्जा और सौर ऊर्जा जैसे वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा देने की बात लम्बे समय से होती रही है। लेकिन बहुत दिनों से इस दिशा में कुछ ठोस काम नहीं हो सका। अब केन्द्र सरकार सौर ऊर्जा को गति देने के लिये ठोस कदम उठाई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सन 2020 तक देश में भवनों के छतों पर ग्रिड पैनल लगाकर 4200 मेगावाट सौर बिजली बनाने का लक्ष्य रखा है। केन्द्र सरकार ने इसका बजट बढ़ाकर पाँच हजार करोड़ करने का फैसला लिया है। पहले यह 600 करोड़ रुपए था। जब-जब गर्मी का पारा चढ़ता है तो बिजली का संकट पूरे देश में सुरसा के मुँह की तरह बढ़ता ही जाता है।
उधर बिजली कम्पनियाँ भी महंगाई के इस दौर में फिर-फिर दाम बढ़ाने की तैयारी करती दिखती हैं। सौर ऊर्जा इस सबसे निजात पाने का एक बढ़िया उपाय है। देश में सौर ऊर्जा को बिजली का विकल्प बनाने का प्रयास पहले भी होता रहा है। लेकिन सरकार इस दिशा में जो लक्ष्य रखी थी उस पाने में सफलता नहीं मिल सकी है।
केंद्र सरकार ने इसके पहले भी 2013 तक देश में 1000 मेगावाट सोलर पावर पैदा करने का गोल तय किया था। इसके लिये सरकार की तरफ से प्रोत्साहन के तौर पर सब्सिडी का लाभ भी दिया जा रहा था। लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी।
अब केन्द्र सरकार ने नए सिरे से सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये नई योजना शुरू की है। घरों एवं भवनों के छतों पर सौर पैनल लगाने के अभियान को बढ़ावा देने के लिये वित्तीय सहायता करीब 10 गुना बढ़ाकर पाँच हजार करोड़ रुपए करने का फैसला किया है। इससे छतों पर लगे सौर पैनलों को ग्रिड से जोड़ने की योजना और छोटे सौर बिजली संयंत्र कार्यक्रम के क्रियान्वयन पर खर्च किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन के तहत इस योजना की राशि को 600 करोड़ रुपए से बढ़ाकर पाँच हजार करोड़ रुपए करने का फैसला लिया गया।
सरकार की योजना 2019-20 तक देश में छतों पर लगे पैनल के जरिए 4200 मेगावाट बिजली बनाने की है। इसके तहत निजी, सरकारी तथा औद्योगिक भवनों की छतों का इस्तेमाल किया जाएगा। ताकि उस भवन में इस्तेमाल होने वाली बिजली की जरूरत उसी भवन की छत पर लगे सौर ऊर्जा पैनल से पूरी की जा सके।
राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन के तहत सामान्य राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों को 30 फीसदी वित्तीय सहायता दी जाएगी। जबकि विशेष श्रेणी के पूर्वोत्तर राज्यों, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप तथा अंडमान निकोबार द्वीप समूह को 70 फीसदी वित्तीय सहायता दी जाएगी।
निजी क्षेत्र में वाणिज्यिक और औद्योगिक प्रतिष्ठानों के लिये कोई सब्सिडी नहीं होगी। सौर ऊर्जा बिजली के एक बड़े विकल्प के रूप में उभरी है। इससे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन भी नहीं होता, जिसके लिये पूरी दुनिया चिन्तित है। भारत में इसके उत्पादन की काफी अनुकूल स्थितियाँ हैं।
आज पूरी दुनिया सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को लेकर गम्भीर है। तरह-तरह के प्रयोग हो रहे हैं। सौर ऊर्जा से बिजली बनाने के प्लांट लगाए जा रहे हैं। इसमें भारत भी किसी से पीछे नहीं है। भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक 20 हजार मेगावाट से 1 लाख मेगावाट सौर ऊर्जा बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
इसके साथ ही सरकार की योजना है कि छतों पर लगने वाले ग्रिड पैनल से 40 हजार मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादित किया जाये। भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों में एक है, जहाँ औसतन 1700 किलोवॉट सौर ऊर्जा प्रति वर्ग मीटर की दर से गिरती है। सूर्य की यह तेजी ज्यादातर इलाकों में लगभग पूरे साल रहती है।
राजस्थान में करीब 300 दिन धूप रहती है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में आठ माह धूप रहती है, इसलिये भारत को दुनिया के उच्च स्तर के सौर ऊर्जा की क्षमता वाले देशों में शामिल किया जाता है। सौर ऊर्जा के महत्त्व को समझते हुए केन्द्र के साथ कई राज्य सरकारें भी सक्रिय हुई हैं।
राज्यों की बात की जाये तो सौर ऊर्जा के उत्पादन में गुजरात सबसे आगे है। गुजरात ने मिसाल पेश करते हुए 600 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना की है। इस वक्त देश में सौर ऊर्जा का कुल उत्पादन करीब 950 मेगावाट है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी ऊसर और बंजर ज़मीन का भूमि बैंक बनाकर सौर ऊर्जा प्लांट लगाने की पहल की है।
यूपी सहित देश के तमाम बड़े राज्य बिजली संकट से जुझ रहे हैं। कमी की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में सिर्फ कुछ घंटे की बिजली की आपूर्ति की जाती है। सौर ऊर्जा के जरिए राज्य सरकारें इस समस्या का सामना आसानी से कर सकती हैं। सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से एक और बड़ा फायदा यह है कि इसमें ताप ऊर्जा की तरह कोयले का इस्तेमाल नहीं होता।
ऐसे में प्रदूषण नहीं फैलता और हम कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी ला सकते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते उत्सर्जन को लेकर पूरी दुनिया चिन्तित है, क्योंकि इससे पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ रहा है। पर सौर ऊर्जा के बड़े पैमाने पर उत्पादन और इस्तेमाल में अभी तक यह समस्या आ रही थी कि इसकी लागत काफी अधिक है।
इसलिये सौर ऊर्जा के इस्तेमाल पर केन्द्र और राज्य सरकार सब्सिडी मुहैया करा रही हैं, ताकि सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा सके। सरकारी योजनाओं की बात पर जाएँ तो बिजली की अनुपलब्धता में गाँव गिराँव में सोलर लालटेन की बहुत माँग है।
दस वाट के सोलर पैनल का प्रयोग कर बैटरी चार्ज की जाती है व रात्रि में प्रकाश की व्यवस्था सीएफएल के माध्यम से की जाती है।
सौर ऊर्जा सूर्य से प्राप्त शक्ति को कहते हैं। इस ऊर्जा को ऊष्मा या विद्युत में बदलकर अन्य प्रयोगों में लाया जाता है। सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को प्रयोग में लाने के लिये सोलर पैनलों की आवश्यकता होती है। सोलर पैनलों में सोलर सेल होते हैं, जो ऊर्जा को प्रयोग करने लायक बनाते हैं।
भारतीय भू-भाग पर पाँच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है। साफ धूप वाले दिनों में सौर ऊर्जा का औसत पाँच किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर होता है। एक मेगावाट सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिये लगभग तीन हेक्टेयर समतल भूमि की जरूरत होती है।
सौर ऊर्जा के निर्माण में कई तरीकों का प्रयोग किया जाता है। जिसमें पहला, सौर तापीय विधि में सूर्य की ऊर्जा से हवा या तरल पदार्थ को गर्म किया जाता है। इसका उपयोग घरेलू काम में किया जाता है। दूसरा, प्रकाश विद्युत विधि में सौर ऊर्जा को विद्युत में बदलने के लिये फोटोवॉल्टेक सेलों का इस्तेमाल किया जाता है।
लैम्प, लालटेन, पंखे, टार्च, होम लाइट, स्ट्रीट लाइट, सोलर वाटर पम्पिंग सिस्टम, सोलर वाटर हीटिंग सिस्टम आदि सौर ऊर्जा से आसानी से चलते हैं।
आज के दौर में ऐसे विकास को प्राथमिकता दी जा रही है जिससे कम-से-कम प्रदूषण फैले। अपने देश में बिजली की भारी कमी है। सुदूर गाँवों में को सौर ऊर्जा देकर बिजली और पानी की कमी पूरी की जा सकती है।
ऊर्जा की कमी और महंगाई का मुकाबला सौर शक्ति से की जाती है। लेकिन सौर ऊर्जा से कुछ हानियाँ भी है। जिसके प्रति हम सचेत नहीं हैं। सौर ऊर्जा के लिये बनने वाली प्लेटें सिलिकान धातु से बनती हैं।
सिलिकान धातु सिल्कोसिस रोग का कारण है। आने वाले दिनों में जब पूरे देश में हर छत पर सौर ऊर्जा के लिये सिलिकान की प्लेटें लगेंगी तो वे कुछ दिनों बाद खराब भी होंगी। सरकार ने इसके निपटान के लिये अभी कोई ठोस उपाय नहीं किया है।
आज प्रदूषण विहीन ऊर्जा की बात की जा रही है। आणविक ऊर्जा और सौर ऊर्जा जैसे वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा देने की बात लम्बे समय से होती रही है। लेकिन बहुत दिनों से इस दिशा में कुछ ठोस काम नहीं हो सका। अब केन्द्र सरकार सौर ऊर्जा को गति देने के लिये ठोस कदम उठाई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सन 2020 तक देश में भवनों के छतों पर ग्रिड पैनल लगाकर 4200 मेगावाट सौर बिजली बनाने का लक्ष्य रखा है। केन्द्र सरकार ने इसका बजट बढ़ाकर पाँच हजार करोड़ करने का फैसला लिया है। पहले यह 600 करोड़ रुपए था। जब-जब गर्मी का पारा चढ़ता है तो बिजली का संकट पूरे देश में सुरसा के मुँह की तरह बढ़ता ही जाता है।
उधर बिजली कम्पनियाँ भी महंगाई के इस दौर में फिर-फिर दाम बढ़ाने की तैयारी करती दिखती हैं। सौर ऊर्जा इस सबसे निजात पाने का एक बढ़िया उपाय है। देश में सौर ऊर्जा को बिजली का विकल्प बनाने का प्रयास पहले भी होता रहा है। लेकिन सरकार इस दिशा में जो लक्ष्य रखी थी उस पाने में सफलता नहीं मिल सकी है।
केंद्र सरकार ने इसके पहले भी 2013 तक देश में 1000 मेगावाट सोलर पावर पैदा करने का गोल तय किया था। इसके लिये सरकार की तरफ से प्रोत्साहन के तौर पर सब्सिडी का लाभ भी दिया जा रहा था। लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी।
अब केन्द्र सरकार ने नए सिरे से सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये नई योजना शुरू की है। घरों एवं भवनों के छतों पर सौर पैनल लगाने के अभियान को बढ़ावा देने के लिये वित्तीय सहायता करीब 10 गुना बढ़ाकर पाँच हजार करोड़ रुपए करने का फैसला किया है। इससे छतों पर लगे सौर पैनलों को ग्रिड से जोड़ने की योजना और छोटे सौर बिजली संयंत्र कार्यक्रम के क्रियान्वयन पर खर्च किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन के तहत इस योजना की राशि को 600 करोड़ रुपए से बढ़ाकर पाँच हजार करोड़ रुपए करने का फैसला लिया गया।
सरकार की योजना 2019-20 तक देश में छतों पर लगे पैनल के जरिए 4200 मेगावाट बिजली बनाने की है। इसके तहत निजी, सरकारी तथा औद्योगिक भवनों की छतों का इस्तेमाल किया जाएगा। ताकि उस भवन में इस्तेमाल होने वाली बिजली की जरूरत उसी भवन की छत पर लगे सौर ऊर्जा पैनल से पूरी की जा सके।
राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन के तहत सामान्य राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों को 30 फीसदी वित्तीय सहायता दी जाएगी। जबकि विशेष श्रेणी के पूर्वोत्तर राज्यों, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप तथा अंडमान निकोबार द्वीप समूह को 70 फीसदी वित्तीय सहायता दी जाएगी।
निजी क्षेत्र में वाणिज्यिक और औद्योगिक प्रतिष्ठानों के लिये कोई सब्सिडी नहीं होगी। सौर ऊर्जा बिजली के एक बड़े विकल्प के रूप में उभरी है। इससे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन भी नहीं होता, जिसके लिये पूरी दुनिया चिन्तित है। भारत में इसके उत्पादन की काफी अनुकूल स्थितियाँ हैं।
आज पूरी दुनिया सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को लेकर गम्भीर है। तरह-तरह के प्रयोग हो रहे हैं। सौर ऊर्जा से बिजली बनाने के प्लांट लगाए जा रहे हैं। इसमें भारत भी किसी से पीछे नहीं है। भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक 20 हजार मेगावाट से 1 लाख मेगावाट सौर ऊर्जा बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
इसके साथ ही सरकार की योजना है कि छतों पर लगने वाले ग्रिड पैनल से 40 हजार मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादित किया जाये। भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों में एक है, जहाँ औसतन 1700 किलोवॉट सौर ऊर्जा प्रति वर्ग मीटर की दर से गिरती है। सूर्य की यह तेजी ज्यादातर इलाकों में लगभग पूरे साल रहती है।
राजस्थान में करीब 300 दिन धूप रहती है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में आठ माह धूप रहती है, इसलिये भारत को दुनिया के उच्च स्तर के सौर ऊर्जा की क्षमता वाले देशों में शामिल किया जाता है। सौर ऊर्जा के महत्त्व को समझते हुए केन्द्र के साथ कई राज्य सरकारें भी सक्रिय हुई हैं।
राज्यों की बात की जाये तो सौर ऊर्जा के उत्पादन में गुजरात सबसे आगे है। गुजरात ने मिसाल पेश करते हुए 600 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना की है। इस वक्त देश में सौर ऊर्जा का कुल उत्पादन करीब 950 मेगावाट है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी ऊसर और बंजर ज़मीन का भूमि बैंक बनाकर सौर ऊर्जा प्लांट लगाने की पहल की है।
यूपी सहित देश के तमाम बड़े राज्य बिजली संकट से जुझ रहे हैं। कमी की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में सिर्फ कुछ घंटे की बिजली की आपूर्ति की जाती है। सौर ऊर्जा के जरिए राज्य सरकारें इस समस्या का सामना आसानी से कर सकती हैं। सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से एक और बड़ा फायदा यह है कि इसमें ताप ऊर्जा की तरह कोयले का इस्तेमाल नहीं होता।
ऐसे में प्रदूषण नहीं फैलता और हम कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी ला सकते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते उत्सर्जन को लेकर पूरी दुनिया चिन्तित है, क्योंकि इससे पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ रहा है। पर सौर ऊर्जा के बड़े पैमाने पर उत्पादन और इस्तेमाल में अभी तक यह समस्या आ रही थी कि इसकी लागत काफी अधिक है।
इसलिये सौर ऊर्जा के इस्तेमाल पर केन्द्र और राज्य सरकार सब्सिडी मुहैया करा रही हैं, ताकि सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा सके। सरकारी योजनाओं की बात पर जाएँ तो बिजली की अनुपलब्धता में गाँव गिराँव में सोलर लालटेन की बहुत माँग है।
दस वाट के सोलर पैनल का प्रयोग कर बैटरी चार्ज की जाती है व रात्रि में प्रकाश की व्यवस्था सीएफएल के माध्यम से की जाती है।
क्या है सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा सूर्य से प्राप्त शक्ति को कहते हैं। इस ऊर्जा को ऊष्मा या विद्युत में बदलकर अन्य प्रयोगों में लाया जाता है। सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को प्रयोग में लाने के लिये सोलर पैनलों की आवश्यकता होती है। सोलर पैनलों में सोलर सेल होते हैं, जो ऊर्जा को प्रयोग करने लायक बनाते हैं।
भारतीय भू-भाग पर पाँच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है। साफ धूप वाले दिनों में सौर ऊर्जा का औसत पाँच किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर होता है। एक मेगावाट सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिये लगभग तीन हेक्टेयर समतल भूमि की जरूरत होती है।
सौर ऊर्जा के निर्माण में कई तरीकों का प्रयोग किया जाता है। जिसमें पहला, सौर तापीय विधि में सूर्य की ऊर्जा से हवा या तरल पदार्थ को गर्म किया जाता है। इसका उपयोग घरेलू काम में किया जाता है। दूसरा, प्रकाश विद्युत विधि में सौर ऊर्जा को विद्युत में बदलने के लिये फोटोवॉल्टेक सेलों का इस्तेमाल किया जाता है।
लैम्प, लालटेन, पंखे, टार्च, होम लाइट, स्ट्रीट लाइट, सोलर वाटर पम्पिंग सिस्टम, सोलर वाटर हीटिंग सिस्टम आदि सौर ऊर्जा से आसानी से चलते हैं।
सौर ऊर्जा उपकरणों से हानियाँ
आज के दौर में ऐसे विकास को प्राथमिकता दी जा रही है जिससे कम-से-कम प्रदूषण फैले। अपने देश में बिजली की भारी कमी है। सुदूर गाँवों में को सौर ऊर्जा देकर बिजली और पानी की कमी पूरी की जा सकती है।
ऊर्जा की कमी और महंगाई का मुकाबला सौर शक्ति से की जाती है। लेकिन सौर ऊर्जा से कुछ हानियाँ भी है। जिसके प्रति हम सचेत नहीं हैं। सौर ऊर्जा के लिये बनने वाली प्लेटें सिलिकान धातु से बनती हैं।
सिलिकान धातु सिल्कोसिस रोग का कारण है। आने वाले दिनों में जब पूरे देश में हर छत पर सौर ऊर्जा के लिये सिलिकान की प्लेटें लगेंगी तो वे कुछ दिनों बाद खराब भी होंगी। सरकार ने इसके निपटान के लिये अभी कोई ठोस उपाय नहीं किया है।
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