भारत

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कृषि को समेटता जलवायु परिवर्तन
Posted on 27 Jun, 2016 12:41 PM
औद्योगिकरण एवं वर्तमान में जीवाश्म ईंधनों का अधिकाधिक उपयोग स
सूखे का असर : अपराधियों के हवाले बुन्देलखण्ड
Posted on 27 Jun, 2016 11:38 AM
पिछले साल जनवरी से अक्टूबर 2015 के बीच दस माह में 729 चोरिया
ये तो गंगा के व्यापारी निकले
Posted on 26 Jun, 2016 12:48 PM


उन्होंने कहा- “मैं आया नहीं हूँ, माँ गंगा ने बुलाया है।’’ लोगों ने समझा कि वह गंगा की सेवा करेंगे। बनारसी बाबू लोगों ने उन्हें बनारस का घाट दे दिया; शेष ने देश का राज-पाट दे दिया। उन्होंने ‘नमामि गंगे’ कहा; जल मंत्रालय के साथ ‘गंगा पुनर्जीवन’ शब्द जोड़ा; एक गेरुआ वस्त्र धारिणी को गंगा की मंत्री बनाया। पाँच साल के लिये 20 हजार करोड़ रुपए का बजट तय किया। अनिवासी भारतीयों से आह्वान किया। नमामि गंगे कोष बनाया। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की स्थापना की।

राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का पुनर्गठन किया। बनारस के अस्सी घाट पर उन्होंने स्वयं श्रमदान किया। गंगा ने समझा कि यह उसके प्रति भारतीय संस्कृति की पोषक पार्टी के प्रतिनिधि और देश के प्रधानमंत्री की आस्था है।

खुलने लगा है गंगा का बाजार
Posted on 26 Jun, 2016 12:16 PM


डाक द्वारा गंगाजल आपके द्वार पर भेजने की ‘सुविधा’ सरकार शुरू करने जा रही है और इस सुविधा की आड़ में गंगा को बेचने की पहली कोशिश को साकार किया जा रहा है। साधु सन्तों ने इस सरकारी कोशिश के खिलाफ बिगुल बजा दिया है जिससे ये भ्रम पैदा होता है कि गंगा को अर्थ स्वरूप में बदले जाने की सबसे ज्यादा चिन्ता इन्हें ही है।

बहरहाल जो डाक घर चिट्ठी ठीक से नहीं पहुँचा सकते वे आपके घर गंगाजल पहुँचाएँगे इसमें सन्देह है। एक काँच की बोतल जो विशेष तौर पर डाक विभाग गंगाजल के लिये डिजाइन करवाएगा (प्लास्टिक की बोतल या पानी का पाउच जैसी पैकिंग से पर्यावरणविदों को एकदम नया कष्ट होगा।) इस बोतल के खर्चे के अलावा गंगाजल स्टोरेज का खर्चा आदि मिलाकर 251 रुपए से कम में गंगाजल आपके घर तक नहीं पहुँचेगा।

दलहन वर्ष में थाली से गायब दाल
Posted on 26 Jun, 2016 12:11 PM
दक्षिण भारत में दलहन की खेती कम पानी में और बंजर-असिंचित भूम
नगरीय व राजमार्गों के लिये उपयोगी वृक्ष (Importance of Trees on Roadside)
Posted on 25 Jun, 2016 10:44 AM
मार्गों पर वृक्ष लगाने की परम्परा भारत में प्राचीन काल से ही चली आ रही है। भारतीय जन-मानस ने वनों व वृक्षों का महत्व हजारों वर्ष पूर्व ही समझ लिया था। सम्पूर्ण विश्व में आज वृक्षों और वनों के संरक्षण की बात हो रही है परंतु हम भारतीय तो प्राचीन काल से ही इनके महत्व को समझते थे। वृक्षों के महत्व को प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से सामान्य जन को समझाने के लिये या
वैज्ञानिक फसलोत्पादन में मटका खाद की उपयोगिता एवं महत्व (Importance of Mutka Composed in Scientific Crop Production)
Posted on 25 Jun, 2016 10:02 AM
भारत वर्ष एक कृषि प्रधान देश है। प्रथम हरित-क्रान्ति के पश्चात फसलों के उत्पादन में जो महत्त्वपूर्ण वृद्धि देखने को मिली है, इसमें प्रमाणीकृत बीजों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अच्छी गुणवत्ता का बीज किसी भी फसलोत्पादन के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है। खराब गुणवत्ता के बीज का प्रयोग करने के पश्चात उत्पादन के कारकों जैसे खाद, पानी, कीटनाशी रसायनों कृत्य क्रियायें आदि का कितना भी प्रयोग क्यों न क
वन एवं आदिवासी
Posted on 24 Jun, 2016 01:55 PM
इस लेख में भारत की प्रमुख जनजातियों एवं आदिम जातियों के सम्बंध में सामान्य जानकारी दी गई है। आदिवासियों का वनों से सम्बंध एवं वन क्षेत्रों के साथ आदिवासियों के विकास के सम्बंध में विचार किया गया है। वर्तमान समय में वन विकास की वही अवधारणा ग्राह्य हो सकती है जिसमें आदिवासियों का हित सुरक्षित रहे। राष्ट्रीय वन नीति-1894 एवं 1952 द्वारा आदिवासियों को वनो
आओ संवारे जैवविविधता
Posted on 24 Jun, 2016 01:32 PM
जैवविविधता और इसके अन्य अंग मानव के अस्तित्व के आधार हैं। इस जैवविविधता के कारण ही हमें भोजन, ऊर्जा, दवाएं, परितांत्रित स्रोत, वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी और छह अरब से अधिक लोगों को सांस्कृतिक आधार मिलता है। जैवविविधता नष्ट होने से हमारे समाज या आर्थिक तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके सैंकड़ों उदाहरण उपस्थित हैं, कितने विस्थापन हो रहें हैं, कितने बीमार पड़ रहे हैं, कितनी भुखमरी बढ़ रही है। सं
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