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सुप्रीम कोर्ट हवाओं में जहर फैलाने वाले पटाखों पर लगाया रोक
Posted on 01 Jan, 2017 11:36 AM
एक तरफ देश के पर्यावरण को बचाने और प्रदूषण को दूर करने का आदर
fireworks
जलवायु परिवर्तन और परचून की दुकानें
Posted on 01 Jan, 2017 11:25 AM

जलवायु परिवर्तन की सालाना बैठक हमारे सिर आ खड़ी हुई है। भारत सरकार ने पेरिस संधि की पुष्टि

कावेरी - बैर मिट पाएगा
Posted on 31 Dec, 2016 10:54 AM
अनुपम मिश्र लेखक, सम्पादक, फोटोग्राफर। पर अनुपम जी को तो देश गाँधीवादी और पानी-पर्यावरण के जानकार के तौर पर ही पहचानता है। 1948 में महाराष्ट्र के वर्धा में प्रसिद्ध जनकवि भवानी प्रसाद मिश्र और सरला मिश्र के घर अनुपम जी का जन्म हुआ था। 1968 में गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली, के प्रकाशन विभाग में सामाजिक काम और पर्यावरण पर लेखन कार्य से जुड़े। तब से ही गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान की पत्रिका गाँधी मार्ग पत्रिका का सम्पादन करते रहे। कुछ जबरदस्त लेख, कई कालजयी किताबें, उनकी रचना संसार का हिस्सा बनीं। उनकी कालजयी पुस्तक 'आज भी खरे हैं तालाब' को खूब प्यार मिला, मेरी जानकारी में हिन्द स्वराज के बाद इसी पुस्तक ने कार्यकर्ताओं की रचना की, सैंकड़ों पानी के कार्यकर्ता। पानी-पर्यावरण के कार्यकर्ताओं ने अनुपम जी का लेखन और विचार का खूब उपयोग किया अपने काम के लिये। आज वो हमारे बीच नहीं हैं, पर उनके विचार हमारे बीच हैं, हम उनके सभी लेख धीरे-धीरे पोर्टल पर लाएँगे, ताकि विचार यात्रा निरन्तर जारी रहे। - कार्यकारी संपादक

कावेरी नदीकावेरी नदीकावेरी की गिनती हमारे देश की उन सात नदियों में की जाती है, जिनका नाम देश भर में सुबह स्नान के समय या किसी भी मांगलिक कार्य से पहले लिया जाता है। इस तरह पूरे देश में अपनी मानी गई यह नदी आज प्रमुख रूप से दो राज्यों के बीच में ‘मेरी है या तेरी’ जैसे विवाद में फँस गई है। इसमें दो प्रदेश- कर्नाटक और तमिलनाडु के अलावा थोड़ा विवाद केरल व पुदुचेरी का भी है। कुल मिलाकर नदी एक है। उसमें बहने वाला पानी सीमित है या असीमित है, यह लालच तो उसका है, जो इसमें से ज्यादा-से-ज्यादा पानी अपने खेतों में बहता देखना चाहता है।

सत्रह साल विवाद में फँसे रहने के बाद जब पंचाट का फैसला आया तो शायद ही कुछ क्षणों के लिये ऐसी स्थिति बनी होगी कि अब यह विवाद सुलझ गया है। घोषणा होते ही एक पक्ष का सन्तोष और दूसरे पक्ष का असन्तोष सड़कों पर आ गया।
Kaveri
भारतीय वन सेवा (Indian Forest Service)
Posted on 30 Dec, 2016 12:19 PM
भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा के साथ भारतीय वन सेवा (आई.एफ.एस.) तीन अखिल भारतीय सेवाओं में एक है। भारतीय वन सेवा ‘अखिल भारतीय सेवा अधिनियम 1951’ के अंतर्गत 1966 में अस्तित्व में आई। हालाँकि, यह 1865-1935 में ब्रटिश राज के दौरान अस्तित्व में रही एक सुसंगठित भारतीय वन सेवा का केवल एक पुनरुद्धार था। इस सेवा का मुख्य उद्देश्य वनों का वैज्ञानिक प्रबंधन था जिसका लाभ प्रधानतः का
भूख घट तो रही है, मगर...
Posted on 30 Dec, 2016 11:40 AM
सन 2010 में आये तूफान ने हैती द्वारा अब तक किये गए विकास को त
cyclone
पानी की अनुपम कहानी
Posted on 30 Dec, 2016 10:43 AM
‘भाषा, लोगों को तो आपस में जोड़ती ही है, यह किसी व्यक्ति को उसके परिवेश से भी जोड़ती है। अपनी भाषा से लबालब भरे समाज में पानी की कमी नहीं हो सकती और न ही ऐसा समाज पर्यावरण को लेकर निष्ठुर हो सकता है। इसलिये पर्यावरण की बेहतरी के लिये काम करने वाले लोगों को अपनी भाषाओं के प्रति संंजीदा होना पड़ेगा। अपनी भाषाओं को बचाए रखने, मान-सम्मान बख्शने के लिये आगे आना होगा। यदि भाषाएँ बची रहेंगी, तो हम अपने परिवेश से जुड़े रहेंगे और पर्यावरण के संरक्षण का काम अपने आप आगे बढ़ेगा।’

अनुपम जी की भाव धारा और भाषा धारा, मीडिया चौपाल में शिरकत करने वाले युवा पत्रकारों को सम्मोहित जैसे किये हुए थी। सैकड़ों युवा पत्रकारों के जमावड़े वाले किसी भी कार्यक्रम में इस तरह की शान्ति एक अपवाद ही मानी जाएगी। वह ‘मीडिया चौपाल’ द्वारा आईआईएमसी में आयोजित एक संगोष्ठी में बोल रहे थे। नदियों के संरक्षण पर केन्द्रित इस संगोष्ठी में ही उनसे अन्तिम बार मिलना हुआ।
अनुपम मिश्र
दुनिया में घटती शहरी आबादी, भारत में उलटी तस्वीर
Posted on 29 Dec, 2016 03:38 PM
भारत को आरण्यक संस्कृति का देश भी कहा जाता है। अरण्य यानी जंग
कृषि और आठवीं पंचवर्षीय योजना
Posted on 29 Dec, 2016 11:50 AM
लेखक का कहना है कि आठवीं पंचवर्षीय योजना का लक्ष्य खेती की पैदावार संबंधी प्रौद्योगिकी के लाभागों को स्थायी व सुदृढ़ करना है ताकि न केवल बढ़ती हुई घरेलू माँगों को पूरा किया जा सके अपितु निर्यात के लिये अतिरिक्त पैदावार की जा सके। काम कठिन है, परन्तु वर्षा सिंचित इलाकों के विकास, सिंचाई-सुविधाओं के कुशल उपयोग और आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक खेती की उन्नत तकनीकों की निरंतर सुलभता से हम अप
परती भूमि का विकास
Posted on 29 Dec, 2016 11:39 AM
देश में परती भूमि के फैलाव के कारण उत्पादक संसाधनों के आधार तथा जीवनदायी प्रणालियों के लिये भारी खतरा पैदा हो गया है। लेखक का कहना है कि उत्पादकता बढ़ाने, भूमि की उर्वरता बहाल करने तथा रोजगार के अवसर बढ़ाने के उद्देश्य से भूमि प्रबंध की समन्वित प्रणाली विकसित करके इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है।
वे नदी थे
Posted on 29 Dec, 2016 11:24 AM
सिरी फोर्ट के उस कमरे में गंगा समग्र की नेता उमा भारती, पर्यावरणविद अनुपम मिश्र और इन पंक्तियों के लेखक के अलावा कुछ लोग और भी मौजूद थे। उमा भारती ने अनुपम जी से कहा कि कार्यक्रम के अन्तिम सत्र में मुझे जनता के सामने एक संकल्प रखना है जिसके आधार पर गंगा सफाई की रूपरेखा तैयार की जाएगी, आप सुझाव दें कि मैं क्या संकल्प लूँ।

अनुपम जी ने कहा कि आप अच्छा काम कर रही है और ऐसे ही करते रहिए कोई संकल्प मत लीजिए क्योंकि कल को आपका कोई नेता आएगा और कहेगा कि मैं तो विकास पुरुष हूँ, आस्था और पर्यावरण के नाम पर विकास नहीं रोका जा सकता इसलिये बाँध बनना जरूरी है, उस समय आप उसका विरोध नहीं कर पाएँगी और पार्टी लाइन के नाम पर आपको गंगा की बर्बादी का समर्थन करना होगा।
अनुपम मिश्र
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