उमेश चतुर्वेदी

उमेश चतुर्वेदी
दुनिया में घटती शहरी आबादी, भारत में उलटी तस्वीर
Posted on 29 Dec, 2016 03:38 PM

भारत को आरण्यक संस्कृति का देश भी कहा जाता है। अरण्य यानी जंग
विकास की मौजूदा अवधारणा में पिछड़ते गाँव
Posted on 29 Dec, 2016 10:37 AM

भारत के बारे में पुरातन अवधारणा है कि यह गाँवों का देश है। आज भी देश में तकरीबन छह लाख गा

कृषि और अर्थव्यवस्था जरूरत नए नजरिए की
Posted on 06 Sep, 2016 11:37 AM

आजादी मिलते वक्त तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में
विकास की मौजूदा अवधारणा और हमारे गाँव
Posted on 06 Sep, 2016 10:49 AM

पिछली सदी के पचास के दशक के आखिरी दिनों गाँधी जी के राजनीतिक उत्तराधिकारी और आजाद भारत के

कृषि और अर्थव्यवस्था - जरूरत नए नजरिए की
Posted on 29 Jul, 2016 12:48 PM

2009-10 के जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान 7,19,975 करोड
कैसे रुके बाढ़
Posted on 28 Jul, 2016 12:11 PM

जल भोजन है और अग्नि भोजन का भक्षक है!
अग्नि जल में और जल अग्नि में विद्यमान है।


.तैत्तरीय उपनिषद की इन पंक्तियों का अर्थ समझने के लिये हमें 2008 में बिहार की कोसी में आई बाढ़ और जुलाई 2005 में मुम्बई में हुई मूसलधार बारिश के बाद मची तबाही को देखना होगा।

पानी शीतलता का प्रतीक होता है, लेकिन हाल के दिनों में हुई बाढ़ की तबाही की ये घटनाएँ हमारी स्मृतियों में अब भी चुभन पैदा कर देती है। इस चुभन को इस साल भी महसूस किया जा रहा है, जब देश के अधिकांश हिस्से अब भी मानसूनी बारिश की बाट जोह रहे हैं, असम के तेजपुर जिले के कुछ हिस्से बाढ़ जून की तपती दोपहरी में डूबने के लिये मजबूर हो गए।
मौसम क्यों हुआ बेईमान
Posted on 26 Jul, 2016 12:52 PM

गर्मी और ग्रीनहाउस गैसों पर लगाम लगाने के नाम दुनिया भर की सर
हरित जीडीपी - संपोषणीय विकास का मार्ग
Posted on 25 Jan, 2016 01:40 PM

हरित जीडीपी से ही सामने आया है कि तेज और गहन पूँजी निवेश बुनियादी सुविधाओं, सड़कों, रेलवे,

अपनी मुक्ति की राह देखती गंगा
Posted on 08 Sep, 2014 03:17 PM

नव उदार आर्थिक नीतियों और तंत्र के सहारे गंगा की सफाई की चाहे जितनी भी योजनाएं चलाई जाएंगी, उसक

रिफ़ाइनरी चाहिए तो पर्यावरण का भी रहे ध्यान
Posted on 30 Aug, 2013 10:41 AM
गुजरात की रिफ़ाइनरी में रोज़ाना पांच से छह मिलियन गैलन पानी का इस्तेमाल होता है। यानी अगर बाड़मेर की प्रस्तावित रिफ़ाइनरी बनती है तो सूखा प्रभावित इलाके में रोज़ाना लाखों लीटर पानी की जरूरत होगी। जल संसाधन मंत्रालय पहले ही राजस्थान को ज़मीन के अंदर के पानी के मामले में काला क्षेत्र घोषित कर चुका है। ऐसे में, सवाल उठता है कि इतना सारा पानी कहां से आएगा। इसके लिए अभी तक कोई कार्ययोजना भी पेश नहीं की गई है। फिर राजस्थान समुद्र के किनारे भी नहीं है कि वहां से खारा पानी लाकर उसे पहले मीठे पानी में तब्दील करके फिर रिफ़ाइनरी में इस्तेमाल किया जाए। विकास के लिए जारी आपाधापी और मशक्कत के दौर में यह सवाल निश्चित तौर पर कड़वा लग सकता है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु काफी पहले ही कह गए हैं कि बड़े उद्योग देश के नए तीर्थस्थल हैं। जिस देश में ऐसी परंपरा रही हो और जहां उदारीकरण की तेज बयार बह रही हो, ऐसे में यह सवाल न सिर्फ बेमानी, बल्कि विकास विरोधी भी लग सकता है। इस सवाल पर विस्तार से चर्चा से पहले उत्तराखंड में 16 जून को आई त्रासदी और उसके बाद उठ रहे सवालों पर गौर फरमाया जाए तो निश्चित मानिए कि यह सवाल कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण लगने लगेगा। यह सच है कि तमाम कोशिशों के बावजूद राजस्थान अब भी विकसित राज्यों की उस पांत में शामिल नहीं हो पाया है, जिसमें तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्य स्थापित हो चुके हैं। ऐसे मे अगर बाड़मेर में तेल रिफायनरी बनती हैं तो उसका स्वागत ही होना चाहिए। क्योंकि इससे राजस्थान के राजस्व ना सिर्फ बढ़ोतरी होगी, बल्कि रोज़गार के नए मौके बढ़ेगे। बीमारू राज्यों में शुमार रहे राजस्थान के लिए यह प्रस्ताव बेहतरी की गुंजाइश ही लेकर आया है।
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