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जल संसाधनों का वैज्ञानिक उपयोग (The scientific use of water resources)
Posted on 06 Mar, 2017 01:03 PM


सूखा, बाढ़ और फिर सूखा यह दुष्चक्र हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को बार-बार प्रभावित करते रहे हैं। इनके कारणों तथा बहुमूल्य जल संसाधनों के नुकसान का विश्लेषण करते हुए लेखक ने इस लेख में जल संरक्षण के अनेक उपाय सुझाए हैं। उनका कहना है कि जल संसाधनों के भरपूर दोहन के लिये हमें जल-नियोजन व प्रबन्ध का कार्य थाले अथवा उप-थाले को इकाई मानकर करना होगा।

पानी व्यवस्था की प्रबन्धक भारतीय महिलाएँ
Posted on 06 Mar, 2017 10:54 AM

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस 08 मार्च 2017 पर विशेष


पानी की व्यवस्था में लगीं महिलाएँमार्च का पहला सप्ताह 8 मार्च को मनाए जाने वाले अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के चलते विश्व स्तर पर नारीमय होने लगता है। हमारे भारत में भी इस समय महिला सशक्तिकरण सप्ताह मनाया जा रहा है। वैसे हमारी भारतीय महिलाओं के लिये किसी ने बहुत पहले कहा था कि यदि प्रबन्धन सीखना हो तो किसी भारतीय पत्‍नी से सीखो।

यह बात सौ प्रतिशत सच भी है, क्योंकि भारत में स्त्रियाँ जन्मजात प्रबन्धक होती हैं। वैसे तो एक कुशल प्रबन्धन समाज के हित में व्यक्ति का विकास करता है, लेकिन किसी समाज की सबसे आधारभूत इकाई, परिवार, में प्रबन्धन उस घर की मुख्य महिला ही करती है, जो भारत में दादी, माँ या पत्नी हो सकती है। इनके अलावा परिवार में जो अन्य महिला सदस्य होती हैं, वे प्रमुख महिला प्रबन्धक की सहायिकाओं के रूप में घरेलू प्रबन्धन में अपने-अपने अनुकूल हाथ बटाँती हैं।
पानी की व्यवस्था में लगीं महिलाएँ
गंगा निर्मलीकरण की सुस्त पड़ती रफ्तार
Posted on 06 Mar, 2017 09:17 AM
यह विडम्बना है कि एक ओर केन्द्र सरकार गंगा की सफाई को लेकर फिक्रमंद है, वहीं केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय नमामि गंगे योजना का बजट खर्च करने में नाकाम है। यह स्थिति समझने के लिये पर्याप्त है कि गंगा निर्मलीकरण को लेकर नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय कितना गम्भीर है। मंत्रालय की सुस्ती के कारण ही केन्द्र सरकार ने एक फरवरी को पेश आम बजट में नमामि गंगे योजना में 700
गाँवों के लिये पीने का पानी (Rural Water discourse)
Posted on 05 Mar, 2017 05:00 PM
प्रस्तुत लेख में ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की पूर्ति के लिये किए जा रहे प्रयासों की चर्चा की गई है। लेखक ने इस दिशा में राष्ट्रीय पेयजल मिशन द्वारा की गई पहल और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कार्य योजना के तहत वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद की प्रयोगशालाओं में किए जा रहे विभिन्न अनुसंधान कार्यों की जानकारी दी है। लेखक का विचार है कि वैज्ञानिक जानकारी से समर्थित एक
ऊर्जा स्रोतों का पुनः प्रयोग और उनकी सामाजिक प्रासंगिकता (Re-use of energy resources and the social relevance)
Posted on 05 Mar, 2017 01:31 PM
इस लेख में लेखक ने आज मनुष्य के सामने उपस्थित ऊर्जा-संकट का जिक्र किया है। उसका मत है कि मानव सभ्यता के इतिहास में इससे पहले कभी भी जनसंख्या वृद्धि, पर्यावरण संकट और ऊर्जा स्रोतों के तेजी से समाप्त होने जैसी समस्याएँ पैदा नहीं हुई। दरअसल ये समस्याएँ मनुष्य द्वारा स्वयं उत्पन्न की गई हैं। लेखक का सुझाव है कि ऊर्जा के फिर से कार्य में लाए जा सकने वाले स्रोतों के उपयोग के लिये स्पष्ट नीति
क्षरित भूमि और कृषि विकास : कुछ महत्त्वपूर्ण पहलू (Soil erosion and Agricultural Development: Some Important Aspects )
Posted on 05 Mar, 2017 01:14 PM
जमीन के खराब होने को भारत की गरीबी का मूल कारण बताते हुए लेखक इस बात पर जोर देता है कि हमारी जमीन को जो भी नुकसान हो चुका है उसकी भरपाई के लिये समग्र रूप से कारगर और उपयोगी एक ऐसी नीति बनायी जानी चाहिये जिससे मिट्टी और पानी का संरक्षण किया जा सके। लेखक का सुझाव है कि हमें एक ओर अच्छी जमीन को नुकसान होने से बचाना है तथा दूसरी ओर खराब हो रखी जमीन को पारिस्थतिकीय विकास के माध्यम से सुधारन
कृृषि विकास : कुछ विचारणीय पहलू
Posted on 05 Mar, 2017 10:03 AM
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के उद्देश्य से कृषि उत्पादन और उत्पादकता में पर्याप्त वृद्धि की आवश्यकता पर जोर देते हुए लेखक ने इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये विभिन्न उपायों के सुझाव दिए हैं। इन उपायों में क्षेत्रीय साधनों का वैज्ञानिक प्रबंधन, लघु जल-विभाजन प्रबंध, समेकित कीटाणु प्रबंधन, बहुत दिनों से बकाया बैंक ऋणों की वसूली, ग्राम तथा तालुका स्तर पर सहकारी विपणन का विकास
प्रस्तावित कृषि नीति का मसौदा
Posted on 04 Mar, 2017 04:52 PM

कृषि उद्योग से अधिक महत्त्वपूर्ण है, कारण स्पष्ट है कि हमारे उद्योग कृषि पर ही निर्भर करत

प्रस्तावित कृषि नीति और कृषि विकास
Posted on 03 Mar, 2017 02:22 PM
कृषि नीति प्रस्ताव के मसौदे का स्वागत करते हुए लेखक इस बात पर बल देता है कि केवल इसी अनुमान के आधार पर कि सन 2000 तक हमारी खाद्यान्नों की आवश्यकता 21 करोड़ टन होगी, हमें खाद्यान्न उत्पादन के प्रयासों में ढील नहीं आने देनी चाहिए। लेखक को महसूस होता है कि देश में होने वाले भारी सामाजिक व आर्थिक परिवर्तनों की वजह से भविष्य में लोगों की अपेक्षाएँ अधिक बढ़ जाएँगी, जिसके लिये हमें अधिक अनाज
देह के बाद अनुपम
Posted on 03 Mar, 2017 12:01 PM


जब देह थी, तब अनुपम नहीं; अब देह नहीं, पर अनुपम हैं। आप इसे मेरा निकटदृष्टि दोष कहें या दूरदृष्टि दोष; जब तक अनुपम जी की देह थी, तब तक मैं उनमें अन्य कुछ अनुपम न देख सका, सिवाय नए मुहावरे गढ़ने वाली उनकी शब्दावली, गूढ़ से गूढ़ विषय को कहानी की तरह पेश करने की उनकी महारत और चीजों को सहेजकर सुरुचिपूर्ण ढंग से रखने की उनकी कला के।

डाक के लिफाफों से निकाली बेकार गाँधी टिकटों को एक साथ चिपकाकर कलाकृति का आकार देने की उनकी कला ने उनके जीते-जी ही मुझसे आकर्षित किया। दूसरों को असहज बना दे, ऐसे अति विनम्र अनुपम व्यवहार को भी मैंने उनकी देह में ही देखा।

अनुपम मिश्र
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