बिलासपुर जिला

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बिलासपुर जिले के जल का घरेलू, औद्योगिक एवं अन्य उपयोग (Domestic, Industrial and other uses of water in Bilaspur District)
Posted on 03 Mar, 2018 05:57 PM
पेयजल आपूर्ति जल संसाधन का द्वितीय प्रमुख उपयोग है। बिलासपुर जिले की कुल जनसंख्या 2,95,336 व्यक्ति (1981) है, जो नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में आवासित है। पेयजल आपूर्ति की दृष्टि से जिले की जनसंख्या का 70 प्रतिशत आज भी पेयजल की समस्या से ग्रसित है। यद्यपि विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रशासन द्वारा पेयजल आपूर्ति की जा रही है तथापि जिले के 45 प्रतिशत ग्राम आज भी पेयजल की दृष्टि से समस्यामूलक
बिलासपुर जिले के जल संसाधनों का उपयोग (Use of water resources in Bilaspur district)
Posted on 03 Mar, 2018 02:32 PM

बिलासपुर जिले में सिंचाई


बिलासपुर जिले में जल के उपयोग की दृष्टि से सिंचाई का स्थान सर्वोपरि है। जिले की लगभग 1,77378 हेक्टेयर भूमि विभिन्न साधनों से सिंचित है। यह सम्पूर्ण फसली क्षेत्र का 16.6 प्रतिशत है, जबकि मध्य प्रदेश का औसत 13.7 प्रतिशत है।

सिंचाई की आवश्यकता

बिलासपुर जिले की जल संसाधन संभाव्यता (Water Resource Probability of Bilaspur District)
Posted on 27 Feb, 2018 01:38 PM

वर्षा तथा जलाधिशेष


जल संसाधन संभाव्यता, उपयोग एवं विकास की दृष्टि से वर्षा की मासिक एवं वार्षिक विचलनशीलता, वर्षा की प्रकृति एवं गहनता का अध्ययन समीचीन है।
बिलासपुर जिले की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि (Cultural background of Bilaspur district)
Posted on 25 Feb, 2018 06:15 PM

जनसंख्या एवं मानव अधिवास


जनसंख्या के घनत्व एवं वितरण में जल एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक तत्व है। जल मानव की प्राथमिक आवश्यकता है, अत: धरातल पर जल उपलब्धता एवं मानव निवास एक दूसरे के पूरक हैं।
बिलासपुर जिले की भौतिक पृष्ठभूमि (Geographical background of Bilaspur district)
Posted on 25 Feb, 2018 02:41 PM

बिलासपुर जिले का भौतिक पृष्ठभूमि : स्थिति एवं विस्तार


जल संसाधन से संपन्न बिलासपुर जिला मध्य प्रदेश के पूर्वांचल में अव्यवस्थित है। इस जिले का सर्वप्रथम अस्तित्व सन 1961 में आया। इसके पूर्व यह जिला मध्य प्रांत एवं बरार का एक भाग था। किंतु राज्यों के पुनर्गठन के बाद से (1956) यह मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग का एक प्रतिनिधि जिला है।
पानी के लिये महिलाओं ने चीरा पहाड़ का सीना
Posted on 26 Dec, 2017 11:26 AM

महिलाओं की दृढ़ इच्छा शक्ति के आगे पहाड़ भी नतमस्तक हो उठा। एक हजार फीट की ऊँचाई पर चढ़कर महिलाओं ने पहाड़ की छाती को चीरना शुरू किया। डेढ़ साल तक 70 महिलाओं की टीम ने हाड़तोड़ मेहनत की। पहाड़ की ढलान के साथ-साथ गहरी नालियाँ बनाई गई, जिन्हें बड़े पाइपों से जोड़ा गया, ताकि बारीश का पानी इनके जरिए नीचे चला आये। पाइप लाइन बिछाने के बाद नौ फीट गहरी सुरंग भी खोदी। इसमें भी प्लास्टिक की पाइप लाइन बिछाई। जिसे तालाब पर पहुँचाना था।

मस्तूरी ब्लॉक का ग्राम खोंदरा चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा है। पूरा इलाका पानी की किल्लत से जूझता था। बारिश का पानी भी व्यर्थ चला जाता था। पानी न होने से खेती-बाड़ी पर बुरा असर पड़ रहा था। लेकिन गाँव की 70 महिलाओं ने साझा प्रयास कर वर्षाजल के संरक्षण का अनूठा प्रयास किया है। इसके लिये उन्हें पहाड़ का सीना चीरना पड़ा। महिलाओं द्वारा पाँच एकड़ में बनाए गए तालाब ने अब पानी की किल्लत को खत्म कर दिया है।

बारिश के पानी को पहाड़ से गाँव में लाने के लिये इन महिलाओं ने तीन साल तक खूब मेहनत की। इसके लिये एक हजार फीट की ऊँचाई पर चढ़कर पहाड़ को काटा और पाइप लाइन बिछाई।
मृदा प्रदूषण से निजात दिलाने में मददगार हो सकती है फफूंद की नई प्रजाति (New species of fungus can be helpful in reducing pollution)
Posted on 06 Oct, 2017 03:11 PM
बरसात के मौसम में लकड़ियों के ढेर या फिर पेड़ के तनों पर पाए जाने वाले फफूंद अक्सर दिख जाते हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने एपीसी5 नाम के ऐसे ही एक नए फफूंद की पहचान की है, जो मिट्टी में पाए जाने वाले अपशिष्ट पदार्थों को अपघटित करके मृदा प्रदूषण को दूर करने में मददगार साबित हो सकता है।
यदि भाखड़ा न होता
Posted on 17 Mar, 2017 01:32 PM
मानसून में सिंचाई की अधिक जरूरत, नदी के बहाव को कायम रखने की
जैविक खेती से मड़िया की पैदावार दोगुनी
Posted on 18 Jul, 2013 09:55 AM

मड़िया सरसों की तरह छोटा अनाज होता है। इसे रागी, नाचनी और मड़ुआ नाम से भी जाना जाता है। इसे हाथ की चक्की में दर

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