जनसंख्या एवं मानव अधिवास
जनसंख्या के घनत्व एवं वितरण में जल एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक तत्व है। जल मानव की प्राथमिक आवश्यकता है, अत: धरातल पर जल उपलब्धता एवं मानव निवास एक दूसरे के पूरक हैं।
बिलासपुर जिले की जनसंख्या वर्ष 1981 की जनगणना के अनुसार 29,53,366 व्यक्ति है। बिलासपुर जिले में राज्य के क्षेत्रफल का 4.49 प्रतिशत राज्य की कुल जनसंख्या का 5.66 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। यह जिला मध्य प्रदेश में जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा स्थान रखता है।
बिलासपुर जिले में जनसंख्या का केंद्रीयकरण दक्षिणी मैदानी क्षेत्र में हुआ है। इन देशों में जल संसाधन का पर्याप्त विकास हुआ है। साथ ही धरातलीय जल उपलब्धता भी पर्याप्त है। जिले के बिलासपुर, मुंगेली, तखतपुर, अकलतरा एवं जांजगीर विचकासखंड जहाँ जनसंख्या अधिक है, यहाँ जल के अंतर्गत भूमि का प्रतिशत अधिक है (10-15)। इसके विपरीत उत्तरी विकासखंडों में यद्यपि जन संसाधन उपलब्धता की संभाव्य राशि पर्याप्त है परंतु विकास के अभाव में जनसंख्या का बसाव कम हुआ है।
जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति
बिलासपुर जिले में 1901-1911 का दशक जनसंख्या वृद्धि का दशक था। जबकि 23.69 प्रतिशत वृद्धि आंकी गई। अगले दशक 1911-1921 में यह दर घट कर 10.25 प्रतिशत हो गई। इस दशक में जनसंख्या वृद्धि दर की न्यूनता का एक प्रमुख कारण जलजनित रोग हैजे का प्रकोप एवं इन्फ्लूएंजा के कारण अधिक मृत्युदर है। 1921-1931 के दशक में जनसंख्या में वृद्धि दर नियंत्रण में रही। 1941-51 के दशक में जनसंख्या में वृद्धि दर अत्यंत न्यून 8.35 प्रतिशत हो गयी। महँगाई बढ़ने एवं आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण जीविका के लिये बड़ी संख्या में लोगों का पलायन ही इस दशक में जनसंख्या वृद्धि दर कम होने का प्रमुख कारण है। 1961-71 के दशक में यद्यपि जनवृद्धि हुई तथापि जनसंख्या वृद्धि दर नियंत्रण में रही। 1981 में परिवार नियोजन के प्रयासों की अधिक सफलता, आप्रवास में कमी के कारण जनवृद्धि दर कम रही।
जनसंख्या का घनत्व एवं वितरण
बिलासपुर जिले में जनसंख्या वितरण में जल उपलब्धता बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। जिले के दक्षिणी मैदानी क्षेत्र में सतही एवं भूगर्भिक जल पर्याप्त मात्रा में है। इन क्षेत्रों में लगभग 116897 हेक्टेयर मीटर जल प्राप्य है, साथ ही समतल उपजाऊ भूमि होने के कारण सिंचाई का पर्याप्त विकास हुआ है, अत: इस क्षेत्र में जनसंख्या का केंद्रीकरण अधिक है। इन विकासखंडों में बिल्हा, मस्तुरी, मुंगेली, जांजगीर इत्यादि प्रमुख है। उत्तरी उच्च भूमि तीव्र ढाल, नग्न शैलों, सघन वनीय क्षेत्र में स्थित विकासखंडों में जनसंख्या का वितरण अपेक्षाकृत विरल है।
सामान्यतः जिले में जिन क्षेत्रों में जल संसाधनों का विकास अधिक हुआ है, जनसंख्या का घनत्व अधिक है।
बिलासपुर जिले में औसत जनसंख्या का घनत्व 148 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है, जो मध्यप्रदेश के औसत घनत्व 118 व्यक्ति से अधिक एवं राष्ट्रीय घनत्व 216.04 व्यक्ति से कम है। जिले में जनसंख्या का न्यूनतम घनत्व पौड़ी-उपरोड़ा विकासखंड में (48.0 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर) है। इन विकासखंड में सिंचित क्षेत्र में गहनता अत्यंत कम है। बिल्हा, डभरा, जांजगीर एवं मालखरौदा विकास खंड में जनसंख्या का घनत्व अधिक है। इन सभी विकास खंडों में सिंचाई घनत्व 50-75 प्रतिशत है। जन संसाधन के समुचित विकास, समतल उपजाऊ भूमि, फसल उत्पादन, उच्च नगरीयकरण एवं औद्योगिक विकास के कारण घनत्व अधिक है।
नगरीय एवं ग्रामीण जनसंख्या
बिलासपुर जिले की कुल जनसंख्या 29,53,366 व्यक्ति में से 86 प्रतिशत व्यक्ति 2,54,482 ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं। जिले की प्रति ग्राम जनसंख्या 721 व्यक्ति हैं, जो म. प्र. के प्रति ग्राम 582 व्यक्ति से अधिक है। बिलासपुर जिला बड़े आकार के ग्राम की विशेषता युक्त है। अत: यह जिला मुख्यत: ग्रामीण जिले के रूप में जाना जाता है। बिलासपुर जिले के तखतपुर जयजयपुर, मालखरौंदा, पाली, मस्तुरी, बलौदा विकासखंड पूर्ण रूपेण ग्रामीण जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं।
बिलासपुर जिले के 4,08,784 व्यक्ति अर्थात 13.9 प्रतिशत लोग नगरों में निवास करते हैं। बिलासपुर जिले में नगरीय जनसंख्या का सर्वाधिक प्रतिशत बिल्हा विकासखंड में (50.6 प्रतिशत) है। दूसरे स्थान पर कोरबा विकासखंड (47.3 प्रतिशत) है। जिले के अन्य विकासखंडों चांपा, मुंगेली, सक्ती एवं मस्तुरी में नगरीय जनसंख्या 15 से 25 प्रतिशत एवं मस्तुरी, जांजगीर तथा पंडरिया विकास खंड में नगरीय जनसंख्या 0 से 15 प्रतिशत तक है।
जिले में 1951 से 1981 की अवधि में नगरीय जनसंख्या में 13.84 प्रतिशत वृद्धि हुई। तथापि नगरीकरण की गति मंद है। वर्ष 1981 में केवल नया बाराद्वार ही एक मात्र नगरीय क्षेत्र के रूप में जुड़ा है।
आयु एवं लिंग अनुपात
बिलासपुर जिले में प्रति 1000 पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या 991 है। यह मध्यप्रदेश राज्य के लिंजयजयपुरग अनुपात 941 से काफी अधिक है। बिलासपुर जिले में मध्य प्रदेश की तुलना में हमेशा ही अधिक लिंगानुपात रहा है। (दुबे, 1981, 9)। जिले में लिंगानुपात मालखरौदा, डभरा, जयजयपुर विकासखंड में क्रमश: 1041, 1042, 1051 है। जिले के कटघोरा, कोरबा विकास खंड पुरुष प्रधान है। जिले की ग्रामीण क्षेत्र स्त्री प्रधान है एवं नगरीय क्षेत्र पुरुष प्रधान है। नगरों में क्रियाशील जनसंख्या अधिक होने के कारण वहाँ पुरुषों की संख्या स्त्रियों की तुलना में अधिक है।
जिले में 0-14 आयु वर्ग के अंतर्गत संख्या (0.35 प्रतिशत) अधिक है, जो कि उच्च जन्म दर का प्रतीक है।
साक्षरता
1981 की जनगणना के अनुसार जिले में 8,44,367 लाख व्यक्ति शिक्षित हैं जो कुल जनसंख्या का 28.59 प्रतिशत है। यह प्रतिशत भारतीय साक्षरता दर (36.17 प्रतिशत) से कम एवं मध्य प्रदेश के साक्षरता दर (27.82) से कुछ अधिक है। (दुबे, 1981, 17)। साक्षरता का सबसे न्यून प्रतिशत (15.05) पाली विकासखंड में तथा सर्वाधिक 44.79 प्रतिशत बिल्हा विकास खंड में है, यह अधिक नगरीयकरण का प्रभाव है।
शिक्षा की दृष्टि से नगर ग्रामीण विभेद बना हुआ है। नगरों में जहाँ 55.12 प्रतिशत व्यक्ति साक्षर हैं, वहीं ग्रामीण जनसंख्या का केवल 24.33 प्रतिशत व्यक्ति साक्षर हैं। नगरीय क्षेत्रों में जहाँ स्त्रियाँ एवं पुरुष शिक्षित हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में क्रमश: 38.62 प्रतिशत (4,89,975) पुरुष, 10.13 प्रतिशत (1,29,368) स्त्रियाँ साक्षर हैं।
सामाजिक वर्ग
अनुसूचित जाति
जिले में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 4,61,577 व्यक्ति है, जो कुल जनसंख्या का 17.25 प्रतिशत है। उसमें 2,30,016 व्यक्ति पुरुष एवं 2,31,561 महिलाएँ हैं। अनुसूचित जातियों का सकेंद्रिकरण मुंगेली विकास खंड में सर्वाधिक (49.61 प्रतिशत) है एवं न्यून जनसंख्या मरवाही विकास खंड 3.13 प्रतिशत में है।
अनुसूचित जनजाति
जिले में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या मरवाही, गौरेला एवं पेंड्रारोड में अधिक (50 प्रतिशत) है। मैदानी क्षेत्रों में इनकी संख्या पामगढ़ (2.41 प्रतिशत), जांजगीर (2.71 प्रतिशत), मस्तुरी (24.80 प्रतिशत) एवं सक्ती (24.53 प्रतिशत) में अधिक है। आदिवासी जनसंख्या सर्वाधिक गोडों की है। अधिकांश आदिवासी आर्थिक दृष्टि से पिछड़े एवं सामान्य रूप से अन्य समुदायों से विलग हैं।
क्रियाशील जनसंख्या का व्यावसायिक संगठन
बिलासपुर जिले की कुल कार्यशील जनसंख्या 12,58,244 (1981) है। कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण प्रमुख व्यवसाय कृषि है, जिसमें 6,72,484 व्यक्ति कृषक एवं 3,54,105 कृषक मजदूर के रूप में कार्य कर रहे हैं। गृह उद्योगों में नगरीय क्षेत्र में 5.33 प्रतिशत एवं ग्रामीण क्षेत्र में 12.39 व्यक्ति लगे हुए हैं।
मानव अधिवास
बिलासपुर जिले में 3526 आबाद ग्राम एवं 13 नगर हैं (बिलासपुर जिला जनगणना पुस्तिका, 1981, 18)। बिलासपुर जिले की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है।
ग्रामीण अधिवास
ग्रामीण भू-दृश्यों में बस्तियों का विशिष्ट स्थान है। जिले के प्राय: सभी ग्राम जल आपूर्ति स्रोतों के समीप बसे हैं। ग्रामीण अधिवासों पर धरातलीय उच्चावच का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। जिले के मैदानी क्षेत्रों में जहाँ अधिवासों का घनत्व अधिक (25 प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में) है, वहीं सीमांत उच्च भूमि में अधिवासों का घनत्व 6 अधिवास प्रति 100 वर्ग किलोमीटर है। जिले में भाठा भूमि जो समीपस्थ क्षेत्रों से ऊँची होती है, में जल निकासी की पर्याप्त सुविधा होती है। अत: भवन निर्माण हेतु उपयुक्त आधार प्रदान करती है। जिले के ग्रामीण अधिवासों के आकार में काफी विषमता है।
सारिणी क्रमांक 8 से स्पष्ट है कि जिले के अधिकांश गाँव आकार में छोटे हैं। जिले के कुल ग्रामों में से 46.85 प्रतिशत ग्रामों में जनसंख्या 500 व्यक्तियों से कम एवं 32.75 गाँवों की जनसंख्या 1000 से कम है।
जिले के गाँवों के वितरण में पर्याप्त प्रादेशिक असमानताएँ हैं। जिले के उत्तरी उच्च भूमि पर 500 से कम जनसंख्या वाले ग्रामों की प्रधानता है। इसका प्रमुख भागों में ग्रामों को बसाने हेतु प्राकृतिक एवं आर्थिक साधनों का सहायक नहीं होना है। पुन: जिले के पश्चिमी क्षेत्र पंडरिया एवं मुंगेली विकासखंडों में भी ग्राम काफी छोटे आकार के हैं। इन विकासखंडों में 500 से कम आबादी वाले ग्राम क्रमश: 69 एवं 67 प्रतिशत है। वहीं जांजगीर में यह प्रतिशत 15.31 एवं पामढ़ में 25.00 है। जिले के दक्षिण-पूर्वी हसदो मैदान में ग्रामीण बस्तियों का आकार बड़ा है। इन विकासखंडों में ग्रामीण अधिवासों की जनसंख्या 1000 व्यक्ति से अधिक है।
अर्थव्यवस्था
भूमि उपयोग
बिलासपुर जिले के भूमि उपयोग का विवरण सारिणी क्रमांक - 9 में दर्शाया गया है।
वन
वनों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र भूमि उपयोग के पृथक अस्तित्व का कार्य करते हैं। जिले के 342,452 हेक्टेयर अर्थात 22.5 प्रतिशत क्षेत्र में वन विस्तृत हैं।
विकासखंड में (56.68 प्रतिशत) है। उत्तरी क्षेत्रों में वनों की अधिकता का सकारात्मक प्रभाव इस क्षेत्र के जल संसाधन, संभाव्यता पर पड़ता है। इस क्षेत्र में मिट्टी की आर्द्रताग्राही क्षमता अधिक है। पुन: वन क्षेत्र होने के कारण ये सघन वर्षायुक्त क्षेत्र हैं एवं संभाव्य वाष्पीकरण की मात्रा कम है (409 मिलीमीटर)। फलत: जल संसाधन प्रचुर मात्रा में है। जिले में वनों का न्यून वितरण डभरा विकास खंड में (0.9 प्रतिशत) है।
कृषि के लिये अप्राप्य भूमि
बिलासपुर जिले की कुल भूमि का 9 प्रतिशत भाग इस संवर्ग के अंतर्गत आता है। कृषि के लिये अप्राप्त के भूमि अंतर्गत सर्वाधिक क्षेत्र पाली विकास खंड में (5.92) है। गैर कृषि कार्यों के अंतर्गत कम भूमि का होना जिले में अल्प औद्योगिक एवं नगरीय विकास का घोतक है।
पड़ती के अतिरिक्त अन्य अकृषिगत क्षेत्र
पड़ती के अतिरिक्त अन्य अकृषिगत क्षेत्र में चरागाह, कृषि योग्य बेकार भूमि तथा अन्य पेड़ों के झुंड सम्मिलित किए जाते हैं। जिले का 11.25 प्रतिशत क्षेत्र इसके अंतर्गत हैं। पेण्ड्रा विकासखंड में अकृषिगत क्षेत्र 4 प्रतिशत से कम है। जबकि शेष भाग में यह 4 से 19 प्रतिशत तक है।
कृषि योग्य भूमि
जिले की कुल भूमि का 2.32 प्रतिशत इस संवर्ग में आता है। इस प्रकार की भूमि पूरे जिले के ग्रामों में छोटे-छोटे खंडों के रूप में बिखरी है। जिले के कृषि योग्य भूमि का सर्वाधिक विस्तार पामगढ़ (4.65 प्रतिशत) एवं करतला (5.76 प्रतिशत) में है।
पड़ती भूमि
बिलासपुर जिले की 54624 हेक्टेयर भूमि (3.2 प्रतिशत) इस संवर्ग के अंतर्गत आता है। जिले के बिलासपुर एवं मस्तूरी विकासखंडों में पड़ती भूमि का प्रतिशत 5.8 से अधिक है। इन क्षेत्रों में केवल अपक्ष्य के लक्षण प्रकट होने पर अथवा भूमि की उर्वराशक्ति बनाये रखने के लिये ही खेती को परती छोड़ा जाता है।
निरा बोया गया क्षेत्र
बिलासपुर जिले में निरा बोया गया क्षेत्र के विस्तार को प्रभावित करने वाले तत्वों में जल संसाधन विकास विशेष महत्त्वपूर्ण है। यही कारण है कि जिले के दक्षिणी मैदानी क्षेत्रों में सिंचाई के पर्याप्त विकास के कारण निरा बोया गया क्षेत्र अधिक है। सामान्यत: जिले के उत्तरी एवं पहाड़ी वनाच्छादित निरा बोये गये क्षेत्र का विस्तार न्यून है। इन क्षेत्रों में समतल एवं उपजाऊ माटियों में ही कृषि भूमि एवं जनसंख्या केंद्रित है। जिले की 826,352 हेक्टेयर अर्थात 54.48 प्रतिशत भूमि का उपयोग फसलोंत्पादन हेतु किया जाता है।
जिले में निरा बोये गये क्षेत्र का विस्तार जांजगीर, मालखरौदा एवं मुंगेली विकासखंडों में अधिक है। इन विकासखंडों में 75 प्रतिशत से भी अधिक निरा बोया गया क्षेत्र है, वहीं कोरबा, पौड़ी उपरोरा, पेंड्रा, मारवाही एवं कटघोरा विकासखंड में यह प्रतिशत मात्र 25 है। जिले के अन्य दक्षिणी मैदानी क्षेत्र में (अकलतरा, बलौदा, बिल्हा, मस्तुरी, पामगढ़, डभरा आदि विकासखंड) निरा बोये गये क्षेत्र का विस्तार 50-75 प्रतिशत तक है।
कृषि
कृषि बिलासपुर जिले की अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग है। जिले की कुल कार्यशील जनसंख्या की 54.02 प्रतिशत जनसंख्या कृषक एवं 26.02 प्रतिशत जनसंख्या खेतिहर मजदूर के रूप में कार्य कर रही है। इस जिले के 80 प्रतिशत लोग अपनी आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर है। जिले के पर्वतीय एवं वनाच्छादित क्षेत्र को छोड़कर सर्वत्र कृषि के लिये अनुकूल उच्चावच है। जिले में कृषि केवल उन्हीं विकासखंडों में न्यून है, जहाँ धरातलीय विन्यास विषम है।
जिले के फसल प्रारूप पर मानसून का स्पष्ट प्रभाव है। यद्यपि यहाँ कई फसलें उगायी जाती है तथापि खरीफ फसलों का बाहुल्य है जो कुल फसली क्षेत्र के 72.73 प्रतिशत क्षेत्र में उत्पादित की जाती है। शेष 26.37 प्रतिशत क्षेत्र में अखाद्य फसलों का उत्पादन किया जाता है। जिले की कृषि लघु पैमाने वाली श्रम प्रधान खाद्यान्न फसलों की कृषि है।
धान की खेती का क्षेत्रीय विशष्टीकरण महत्त्वपूर्ण है। संपूर्ण कृषि क्षेत्र के 62.77 प्रतिशत भूमि पर धान की खेती की जाती है। जिले के सभी भागों में समान रूपेण धान की खेती का वर्चस्व है। तथापि किन्हीं विकासखंडों में धान के अंतर्गत 90 प्रतिशत से भी अधिक देखा जा सकता है। जिले के फसल प्रतिरूप में धान के अलावा कोदो, कुटकी, मक्का, गेहूँ, चना, तुअर, अलसी इत्यादि फसलें सम्मिलित हैं। यद्यपि इनका प्रतिशत न्यून है। व्यापारिक एवं औद्योगिक फसलों का भी फसल प्रतिरूप में न्यूनतम योगदान है।
जिले में सिंचाई के साधन अपर्याप्त है अत: फसल प्रतिरूप प्रधानत: वर्षा पर ही निर्भर एवं नियमित होता है। वर्षों के पश्चात आने वाले लंबे शुष्क मौसम में सिंचाई अत्यंत आवश्यक है। जिले के कुल बोये गये क्षेत्र में से 21.6 प्रतिशत क्षेत्र में ही सिंचाई की सुविधा है। धान प्रमुख सिंचित फसल है। कुल सिंचित फसली क्षेत्र का 80 प्रतिशत भाग धान के अंतर्गत है।
जिन स्थानों पर अनुकूल मिट्टी एवं सिंचाई की पर्याप्तता है, दोफसली कृषि की जाती है। जिले में दोफसली क्षेत्र के अंतर्गत 183082 हेक्टेयर है। अलसी तिवरा, मूंग, मसूर, प्रमुख रबी की फसलें हैं। निर्वाहन प्रकार की कृषि में फसलों का चक्रीय स्वरूप की संभावनाएँ न्यूनतम रहती हैं। फलत: मिश्रित कृषि की संभावनाएँ ज्यादा हैं।
कृषि मौसम
सामान्यत: जिले में कृषि वर्ष को तीन भागों में विभक्त किया जाता है -
1. खरीफ मौसम - मध्य जून से मध्य अक्टूबर
2. रबी मौसम - मध्य अक्टूबर से मध्य मार्च
3. जायद मौसम - मार्च से मध्य जून।
खरीफ मौसम
खरीफ मौसम सामान्यत: ग्रीष्मकालीन मानसून का अनुगमन करता है। फसलों का बौना, काटना वर्षा के आगमन एवं समापन से घनिष्ट रूप से सम्बन्धित है। खरीफ इस जिले का प्रमुख कृषि मौसम है। जिले का 66.8 प्रतिशत क्षेत्र खरीफ फसलान्तर्गत है। धान, कोदो, कुटकी, ज्वार प्रमुख खरीफ फसलें हैं। ये समस्त फसलें वर्षा पर निर्भर है, अत: वर्षा मानसून की अनिश्चितता फसल उत्पादन पर अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है।
रबी मौसम
शीतकालीन अवधि में ये फसलें उत्पादित की जाती है। इस मौसम में केवल वे ही फसलें उत्पादित की जाती है जिन्हें ठंडे मौसम एवं मध्यम आर्द्रता की आवश्यकता होती है। वर्षाकालीन संचयी आर्द्रता युक्त क्षेत्र रबी फसलों के लिये उपयुक्त है। अत: जिले के उन भागों में जहाँ मिट्टी की आर्द्रता शक्ति अधिक है, रबी फसलों का उत्पादन अधिक किया जाता है। जिन स्थानों पर सिंचाई की सुविधा है। उन क्षेत्रों में भी रबी फसलें उत्पादित की जाती है। जिले के कुल फसली क्षेत्र के 26.37 प्रतिशत क्षेत्र में रबी फसली क्षेत्र का विस्तार है। जिले के पश्चिमी भाग - मुंगेली, तखतपुर, पंडरिया, लोरमी पथरिया विकासखंड में रबी फसल अंतर्गत क्षेत्र अधिक है।
जायद मौसम
अप्रैल से जून में शुष्कता, धूल आदि के कारण कृषि कार्य सीमित हो जाता है। जहाँ पानी की उपलब्धता है उन्हीं क्षेत्रों में फल, सब्जियाँ एवं चारें की फसलें उत्पन्न की जाती है।
एक सामान्य कृषि वर्ष में जिले का फसल प्रारूप का विवरण सारिणी क्रमांक 10 में दर्शाया गया है।
धान
धान बिलासपुर जिले की सर्व प्रमुख खाद्यान्न फसल है। जिले में धान का उत्पादन 669204 हेक्टेयर अर्थात कुल फसली क्षेत्र के 62.7 प्रतिशत भाग पर किया जाता है। जिले के सभी विकासखंडों में इसका प्रथम स्थान है तथापि इसका सापेक्षित महत्त्व पूर्व से पश्चिम, वर्षा की कमी के साथ-साथ कम होता जाता है। पूर्वी क्षेत्र में स्थित मालखरौदा, सक्ती, कोरबा, कटघोरा में धान की कृषि कुल फसल क्षेत्र के 80 से 90 प्रतिशत क्षेत्र में की जाती है। वहीं पश्चिमी विकास खंड मुंगेली, पथरिया, लोरमी, पंडरिया में यह प्रतिशत क्रमश: 37, 24, 57, 35, 48, 17, 42, 78 है।
धान की कृषि सामान्यत: विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में की जाती है तथापि डोरसा एवं मटासी अति उत्तम है। सामान्यत: धान की फसल की बुवाई वर्षों के प्रारंभ के साथ होती है एवं कटाई अक्टूबर या नवंबर में होती है। जिले में धान की अधिकांशत: छिड़क कर एवं रोपा विधि से बोया जाता है। धान की लगभग 200 किस्में हैं जिसमें बादशाह भोग, बादाम खोवा, बेगम पसंद, दुबराज आदि विशिष्ट किस्में हैं।
जिले में धान की उपज प्रति हेक्टेयर 25.33 क्विंटल है। वर्ष 1987-88 में जिले में 76, 38, 479 क्विंटल धान उत्पादन हुआ। सर्वाधिक धान का विकासखंडों में क्रमश: क्विंटल 12, 29, 173 (6.09 प्रतिशत), 1507505 क्विंटल (19.7 प्रतिशत), क्विंटल 1076611 (14.09 प्रतिशत) एवं न्यूनतम मरवाही 159549 क्विंटल में उत्पादन होता है।
कोदो कुटकी
कोदो-कुटकी मोटा अनाज है। बिलासपुर जिले में 34469 हेक्टेयर अर्थात 3.23 प्रतिशत क्षेत्र में इनका उत्पादन किया जाता है। क्षेत्रफल की दृष्टि से ये फसलें सम्मिलित रूप से अनाजों में द्वितीय एवं सभी फसलों में तृतीय स्थान में है। ये खरीफ की फसलें हैं। कम वर्षा एवं कम उर्वरक मिट्टी में भी इनका उत्पादन अच्छा होता है। जिले में कोदो-कुटकी का उत्पादन मुख्यत: कम वर्षा वाले शिवनाथ पार मैदान में अर्थात मुंगेली, पथरिया, लोरमी विकासखंडों में अधिक होता है। जिले में कोदो-कुटकी का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 6.66 क्विंटल है।
गेहूँ
जिले के 25646 हेक्टेयर अर्थात कुल फसली क्षेत्र के 2.40 प्रतिशत भूमि पर गेहूँ का कृषि की जाती है। यह जिले की प्रमुख रबी की फसल है। इसका उत्पादन कन्हार एवं डोरसा मिट्टी में होता है, क्योंकि इनमें जल धारण क्षमता अधिक होती है। सामान्यत: जिले के पश्चिमी विकासखंडों मुंगेली, पथरिया, लोरमी, तखतपुर में गेहूँ की कृषि की जाती है। इन विकासखंडों में गेहूँ के अंतर्गत क्षेत्रफल कुल फसली क्षेत्र का क्रमश: 7.0, 5.03, 4.97, 3.28 प्रतिशत है। जिले के अन्य भागों में गेहूँ के अंतर्गत क्षेत्र न्यून है। जिले में गेहूँ का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 10.84 किग्रा है।
तिवरा
बिलासपुर जिले में दालों में प्रथम स्थान तिवरा का है तथा धान के बाद दूसरी प्रमुख खाद्य फसल है। यद्यपि इस दाल में टॉक्सीन की मात्रा की अधिकता लकवे की बीमारी को जन्म देती है, तथापि यह आज भी जिले के फसल प्रारूप की प्रमुख फसल है। इसका कारण इसकी कृषि में कम मेहनत एवं प्रति हेक्टेयर अधिक उत्पादन होना है। जिले के कुल फसली क्षेत्र के 12.18 प्रतिशत क्षेत्र में (129869 हेक्टेयर) इसकी कृषि की जाती है। इसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 6.76 किलो ग्राम है। वर्ष 1984-87 में जिले में 166992 क्विंटल तिवरा उत्पादन हुआ जो धान के पश्चात द्वितीय स्थान पर है।
दालें
बिलासपुर जिले में तिवरा के अलावा चना, उड़द, अरहर, कुल्थी आदि दालें भी उत्पन्न की जाती हैं। किंतु इनका क्षेत्र अर्थात सीमित है। जिले के केवल 4.9 प्रतिशत भाग पर चना 52,938 हेक्टेयर एवं 0.27 प्रतिशत भूमि पर तुअर 5587 हेक्टेयर की कृषि की जाती है। कन्हार मिट्टी वाले क्षेत्रों - मुंगेली, पंडरिया, तखतपुर में चने की कृषि अधिक की जाती है। इन विकास खंडों में कुल उपज भूमि के क्रमश: 26.35, 14.60, 50.62, 18.24 प्रतिशत भाग में चने की कृषि की जाती है। जिले में चने का प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 7.76 किग्रा है। वर्ष 1984-87 में जिले में चने का औसत उत्पादन 17,100.24 क्विंटल रहा।
चना
यह प्रमुख तिलहन है जो गेहूँ के साथ मिश्रित रूप में बोयी जाती है। यह 26.299 हेक्टेयर भूमि पर उत्पादित होती है। जांजगीर, चांपा, बलौदा, पामगढ़, विकास खंड अलसी उत्पादन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। जिले में अलसी का प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 6.84 क्विंटल है। वर्ष 1984-87 में अलसी का उत्पादन 6298.48 क्विंटल हुआ।
अन्य तिलहन
अन्य तिलहन जैसे - मूँगफली, सरसों आदि के अंतर्गत अत्यंत न्यून क्षेत्र है। जिले में मात्र 4,065 हेक्टेयर भूमि पर मूँगफली तथा 11,681 हेक्टेयर में सरसों एवं तिल की कृषि की जाती है। जिले के डभरा विकास खंड में मूँगफली का केंद्रीकरण सर्वाधिक (2.79 प्रतिशत) है। जिले में मूँगफली का प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 8.68 किलोग्राम है।
खनिज
खनिज औद्योगिक संरचना के आधार स्तंभ है। बिलासपुर जिले में खनिज संपदा का भरपूर भंडार है। बॉक्साइट, डोलोमाइट, कोयला, चूने का पत्थर जिले के प्रमुख खनिज है। इनके अलावा कहीं-कहीं अग्नि सह मिट्टी, अभ्रक, मैग्नीज आदि खनिज भी पाये जाते हैं। बिलासपुर जिले में खनिज की संचित संभावत: राशि का विवरण सारिणी क्रमांक 11 में दर्शाया गया है।
कोयला
बिलासपुर जिले में कोयला मुख्यत: पूर्वी क्षेत्र में पाया जाता है। वर्ष 1956 में राष्ट्रीय कोयला विकास निगम द्वारा कोयले के उत्खनन हेतु कार्य प्रारंभ किया गया। संप्रति दक्षिण-पूर्वी कोयला प्रक्षेत्र द्वारा इस क्षेत्र के कोयले का दोहन किया जा रहा है। जिले के कोयला क्षेत्र को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है -
1. कोरबा कोयला क्षेत्र
2. हसदो रामपुर कोयला क्षेत्र
कोरबा कोयला क्षेत्र
इस क्षेत्र में बाराकर एवं तालाची संस्तरों में कोयले के भंडार संचयित हैं। कोरबा कोयला क्षेत्रांतर्गत 6 खानों में कोयलों का उत्खनन किया जाता है।
कोरबा रामसागर खान (1-2)
बाराकर संस्तर पर 37,47,244 वर्गमीटर क्षेत्र में 50 से 80 लाख टन कोयले का निक्षेप मिलता है। परत की औसत मोटाई 1.53 मीटर है। उत्पादन क्षमता 13,000 टन है।
कोरबा-रामसागर खान (3-4)
294 किमी क्षेत्रफल में विस्तृत इस खान में निक्षेप की मात्रा 1,330 लाख टन है। कोयला संस्तर की मोटाई 92 मीटर है।
मानिकपुर कोयला खान
उत्कृष्ट कोटि के बिटुमिनल कोयले के 7420 से 720 लाख टन निक्षेप की मात्रा इस खान में संचयित है। कोयले के संस्तर की मोटाई 30 मीटर है।
सुराकछार कोयला खान
इस खान में कोयले का संचित भंडार 538,900 लाख टन है। यह खान मध्य प्रदेश की सबसे अधिक मशीनी-कृत खान है।
बांकी कोयला खान
इस खान में कोयले के निक्षेप की मात्रा 230 लाख टन है। कोयले की परत की मोटाई 3 से 4 मीटर है।
रजगामार कोयला खान
इस खान में निचली बाराकर श्रेणी की कोयले की परतें दखाई देती है। इसमें चार परते हैं, जो 1, 2, 3, 4 के नाम से जानी जाती हैं। जिनकी मोटाई क्रमश: 1.5, 3.1 से कम तथा 1 से 7 मीटर तक है। यहाँ पर कोयले का संरक्षित भंडार 266.3 लाख टन है। कोरबा कोयला क्षेत्र में कोयले का सुरक्षित भंडार 2000 लाख टन है।
हसदो रामपुर बेसिन
इस क्षेत्र में कोयले का खनन तीन खनों से किया जाता है।
1. कुसमुंडा खान क्षेत्र
इस खान में कोयले के परत की मोटाई 4.6 से 9.8 मीटर है।
2. गेवरा खान क्षेत्र
इस क्षेत्र में कोयले के संस्तर की मोटाई 12.76 से 29.48 मीटर तक पायी जाती है। इसके अलावा लालमारिया, सुकुलाखार, घोरदेवा, जटराज क्षेत्र में भी कोयले के संस्तर पाये जाते हैं। इस संपूर्ण 143.00 वर्ग किमी क्षेत्र में कोयले का संरक्षित भंडार का 2280 लाख टन पूर्वी हसदो नदी तट पर तथा 22500 लाख टन पश्चिमी हसदो नदी तट पर मिलता है।
बॉक्साइट
यह बिलासपुर जिले का दूसरा महत्त्वपूर्ण खनिज संसाधन है। यहाँ का बॉक्साइट उत्तम प्रकार का है। जिले में बॉक्साइट की संचित राशि 37.99 लाख टन है। जिले के प्रमुख बॉक्साइट उत्पादक क्षेत्र और उनमें संचित भंडार निम्नांकित है -
क्षेत्र - संचित संभाव्य राशि
फुटका पहाड़ - 30 लाख टन
पोनखेरा पहाड़ - 40 लाख टन
करेला पहाड़ - 3.6 लाख टन
फुटका पहाड़ जिले का सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक क्षेत्र है। यहाँ से प्रतिवर्ष 130,000 टन बॉक्साइट का खनन होता है।
डोलोमाइट
बिलासपुर जिले में डोलोमाइट की संचित संभाव्य राशि 5220 लाख टन है। डोलोमाइट की प्रमुख खानें हिर्री, बाराद्वार में हैं। इन क्षेत्रों में उच्च कोटि का डोलोमाइट भिलाई इस्पात संयंत्र को भेजा जाता है।
अग्नि सह मिट्टी
बिलासपुर जिले में अग्नि-सह-मिट्टी की उपलब्धि मात्रा 7.9 लाख टन है। जिले में प्रमुख क्षेत्र धनगा नाला, मतियाबहार नाला, कोहनी नाला है।
चूने का पत्थर
बिलासपुर जिले के जांजगीर, सक्ती, बिलासपुर, अकलतरा, चिल्हाटी, आरसमेटा में चूने की मात्रा बहुतायत से उपलब्ध है। यहाँ चूना पत्थर मुख्यत: कड़प्पा युग की चट्टानी क्रम में तथा रामपुर चूने के पत्थर मुख्यत: कड़प्पा युग की चट्टानी क्रम में पाया जाता है। जिले में चूने के पत्थर की उपलब्धता 12,070 लाख टन है। जिले में प्राप्त चूने का पत्थर स्थानीय सीमेंट कारखानों हेतु प्राप्त आधारभूत खनिज है।
बिलासपुर जिले में चूने के पत्थर प्राप्ति के प्रमुख निम्नलिखित क्षेत्र हैं -
1. साखेन चूना प्रस्तर क्षेत्र
2. बेजालपुर कारमांडा क्षेत्र
3. अरूराई काला चूना पत्थर क्षेत्र
4. सिवनी क्षेत्र
5. पाली क्षेत्र
6. नवापारा क्षेत्र
7. दावा साजापाली क्षेत्र एवं
8. अकलतरा चूना पत्थर क्षेत्र
अकलतरा चूना प्रस्तर क्षेत्र में चूना पत्थर 66 किलोमीटर क्षेत्र में क्रमिक रूप से मिलता है। संभाव्य राशि 1584 लाख टन है।
अन्य खनिज
उपर्युक्त खनिजों के अलावा अन्य खनिजों में मैग्नीशियम है, जो रतनपुर एवं करगीरोड क्षेत्र में उपलब्ध है। यहाँ का मैग्निशियम निम्न कोटि का है। क्वार्टज की प्राप्ति का स्थान करगीरोड, अमरकंटक क्षेत्र है। इन खनिजों का उत्खनन नहीं हुआ है। बेलगहना और करगीरोड क्षेत्र में अभ्रक के निक्षेप पाए गए हैं। भवन निर्माण सामग्री-रेत, मिट्टी, मुरूम आदि का भी उत्पादन जिले में होता है।
उद्योग
बिलासपुर जिले में उद्योगों के विकास की गति अत्यंत धीमी है। पंचवर्षीय योजना के लागू होने के पूर्व तक यह जिला औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ था। तत्पश्चात उद्योग विभाग एवं अन्य निजी कंपनियों के अथक प्रयासों से जिले में प्राप्त खनिज संसाधनों के आधार पर उद्योग स्थापित किये जाने लगे। जिले में 4 वृहत, 8 मध्यम एवं 300 से अधिक लघु उद्योग इकाइयाँ स्थापित हो चुकी हैं। खनन उद्योग इनमें विशिष्ट स्थान रखता है। 8232 व्यक्ति खनन उद्योग में संलग्न है। लगभग 5000 व्यक्ति मध्यम एवं लघु उद्योग में संलग्न है। कार्यरत वृहद उद्योगों में सीमेंट का उत्पादन, विस्फोटक सामग्री एवं एल्युमीनियम का उत्पादन होता है। मध्यम उद्योगों में औद्योगिक गैस एलॉय कास्टिंग आदि का उत्पादन होता है। लघु उद्योगों में धान कुटाई, दाल प्रक्रिया, उपस्कर, प्लास्टिक के सामान आदि बनाये जाते हैं। जिले के औद्योगिक क्षेत्र बिलासपुर, अकलतरा, कोरबा एवं चांपा में हैं।
वृहद उद्योग
1. इंडो-वर्मा निर्माण उद्योग
इंडो वर्मा पेट्रोलियम के सहयोग से स्थापित यह कारखाना कोरबा नगर से 16 किमी दूर गोपालपुर में स्थित है। उद्योग हेतु आवश्यक कच्चा माल अमोनियम राउरकेला से एल्युमीनियम पाउडर मदुराई से, कैल्शियम बंबई से तथा शेष स्थानीय रूप से प्राप्त किया जाता है। उद्योग हेतु जल आपूर्ति निकटस्थ हसदो नदी पर स्थित दर्री बैराज से की जाती है। इस कारखाने का वार्षिक उत्पादन 159,570 लाख टन है।
2. भारत एल्युमीनियम कारखाना
सन 1965 में स्थापित इस कारखाने की वार्षिक उत्पादन क्षमता 35,000 टन है। उद्योग के लिये आवश्यक कच्चा माल (बॉक्साइट) फुटका पहाड़ एवं अमरकंटक से प्राप्त होता है। प्रतिवर्ष 200,000 टन एल्युमीनियम उत्पादन का यह संयंत्र देश में सबसे बड़ा तथा तकनीकी दृष्टि से आधुनिक संयंत्र है।
3. रेमंड सीमेंट उद्योग
बिलासपुर जिले के जांजगीर-अकलतरा परिक्षेत्र के अंतर्गत अकलतरा से 20 किमी दूर स्थित यह संयंत्र देश का ‘सिंगल क्लिन’ में सबसे बड़ा संयंत्र है। जिसकी लागत 100 करोड़ रुपए है। 80.92 वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में विस्तृत इस कारखाने की उत्पादन क्षमता 3.5 हजार टन है। रेमंड सीमेंट उद्योग को कच्चा माल उसके समीप स्थित चूने के खदानों-आरसमेटा, सोनसरी, गोंदाडीह से प्राप्त होता है। जिप्सम, राजस्थान के बिकानेर से, स्लेग भिलाई इस्पात संयंत्र से प्राप्त किया जाता है। उद्योग की जल पूर्ति लीलागर नदी से होती है। यहाँ ‘पोर्टलेंड’ और ‘पोर्टलेंड पोजोलोमा’ दोनों प्रकार का सीमेंट तैयार किया जाता है।
सेंचुरी सीमेंट उद्योग
बिलासपुर जिले के अकलतरा एवं तरौदगाँव के बीच 3641.400 वर्ग किमी क्षेत्र में स्थापित इस कारखाने का प्रतिदिन उत्पादन 1200 टन है। उद्योग के लिये आवश्यक चूना पत्थर समीपस्थ अकलतरा क्षेत्र से प्राप्त हो जाता है। जहाँ 5 करोड़ टन चूने का भंडार है।
मध्यम उद्योग
1. बिलासपुर स्पिनिंग मिल
वर्ष 1968 में स्थापित यह कारखाना 48,552 वर्ग किमी भूमि में विस्तृत है। इस कारखाने में 1969 तक केवल सूती धागे बनाए जाते थे। सन 1974 से रेशम धागों का निर्माण किया जाने लगा है। इस कारखाने का वार्षिक उत्पादन 1,39,52,880 लाख टन है।
2. ऋषि गैसेस
बिलासपुर नगर के निकट 1976 में 2.5 करोड़ रुपए की लागत से स्थापित इस कारखाने में 1977 से उत्पादन प्रारंभ हुआ। यह कारखाना 24276 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है। ऑक्सीजन, एसीटिलीन, नाइट्रोजन, मेडिकल ऑक्सीजन गैस इसके प्रमुख उत्पादन हैं। इसके कारखाने से ऑक्सीजन 10 लाख टन घनमीटर, एसीटिलीन 1.5 लाख टन घनमीटर तथा नाइट्रोजन 40 हजार घनमीटर का उत्पादन होता है।
इस कारखाने में 500 सिलेंडर गैस सिलेंडर गैस प्रतिदिन भरे जाते हैं। बाल्को, रेमंड सीमेंट तथा पेपर मिल आदि स्थानीय उद्योगों को गैस की आपूर्ति इसी कारखाने से की जाती है।
लघु उद्योग
1. कृषि पर आधारित लघु उद्योग
चावल मिल
बिलासपुर जिले में 320 चावल की मिलें हैं। बिलासपुर, अकलतरा, चांपा, कोरबा, सकरी, मुंगेली, पंडरिया, मस्तुरी विकासखंड में चावल मिल अधिक हैं।
दाल मिल
बिलासपुर, मुंगेली तथा अकलतरा में तीन दाल मिल हैं। तीनों मीलों की वार्षिक उत्पादन क्षमता 170.00 लाख टन है।
तेल मिल
बिलासपुर जिले में तेल मिल की 10 इकाइयाँ हैं। सभी मिलें बिलासपुर एवं चांपा में स्थापित हैं।
इनके अलावा पोहा, मुर्रा और बिस्कुट आदि बनाने की 34 इकाइयाँ हैं।
उपस्कर उद्योग
बिलासपुर जिले में यह उद्योग बिलासपुर नगर में स्थित है। जिले में 42 इकाइयों के द्वारा उपस्कर वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
बीड़ी उद्योग
बिलासपुर जिले में बीड़ी बनाने के प्रमुख केंद्र - बिलासपुर, मंगेली, पंडरिया आदि हैं। इसके अतिरिक्त लाख बनाने, कोसा उद्योग, माचिस उद्योग, कागज उद्योग आदि की विभिन्न इकाइयाँ हैं।
यातायात
यातायात के साधन क्षेत्रीय अन्तर्सम्बन्धों के सूचकांक होते हैं। पंचवर्षीय योजना के पूर्व यह जिला आवागमन के साधनों की दृष्टि से पिछड़ा हुआ था। जिले के उत्तरी भाग मे उच्चावच सहायक नहीं होने के कारण यातायात के साधन न्यून थे। विभिन्न पंचवर्षीय योजना काल में जिले में यातायात की अच्छी प्रगति हुई है। संप्रत्ति जिलों के अधिकांश भागों में यातायात हेतु पक्की सड़कें बना दी गई हैं। रेलवे एवं सड़क जिले के प्रमुख परिवहन साधन हैं।
रेल यातायात
जिले में कुल 216 किलो मीटर रेल मार्ग है जो निम्नलिखित तीन शाखाओं में बँटा है -
हावड़ा-बंबई मार्ग
जिले में 110 किमी लंबी विद्युतीकृत दोहरी रेल मार्ग है। इसी मार्ग से जिले के प्रमुख उत्पाद - कोयला, सीमेंट आदि बाजार तक पहुँचता है। बिल्हा, बिलासपुर, अकलतरा, सक्ती प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं।
बिलासपुर - शहडोल मार्ग
119 किमी लंबा यह रेलमार्ग इकहरा है। इसकी परिवहन क्षमता कम है, तथापि सोन घाटी कोयला क्षेत्र, उत्तरी वन संपदा एवं अमलाई कागज उद्योग की आवश्यकताओं की पूर्ति एवं विकास में यह मार्ग बहुत उपयोगी है।
चांपा-गेवरा मार्ग
कोरबा कोयला क्षेत्र एवं अन्य औद्योगिक क्षेत्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इस रेल मार्ग का निर्माण किया गया है। चांपा से गेवरा के बीच 45 किमी लंबा मार्ग है। चांपा एवं बालपुर इस मार्ग पर प्रमुख स्टेशन है।
सड़क यातायात
सड़कें जिले के आंतरिक भागों में यातायात के महत्त्वपूर्ण साधन हैं वर्तमान में जिले में पक्की सड़कों की कुल लंबाई 3701.43 किलो मीटर है एवं कच्ची सड़कों की लंबाई 3701.43 किमी है, एवं जिले में कच्ची सड़कों की लंबाई 1750 किलोमीटर है। जिले में प्रति 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में 16.6 किलो मीटर लंबी सड़कें हैं।
जिले के प्रमुख सड़कें निम्नलिखित हैं -
1. बिलासपुर - रायपुर मार्ग
2. बिलासपुर - जबलपुर मार्ग
3. बिलासपुर - अंबिकापुर मार्ग
4. बिलासपुर - अमरकंटक मंडला मार्ग
5. बिलासपुर - रायगढ़ मार्ग
6. बिलासपुर - कोरबा मार्ग
बिलासपुर अपने समीपस्थ सभी केंद्रों से राजपथ से जुड़ा है। जिले के बिलासपुर-रायगढ़ एवं बिलासपुर-मुंगेल, जबलपुर मार्ग व्यस्ततम मार्ग है।
बिलासपुर जिले में जल संसाधन विकास एक भौगोलिक अध्ययन 1990 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
1 | बिलासपुर जिले की भौतिक पृष्ठभूमि (Geographical background of Bilaspur district) |
2 | बिलासपुर जिले की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि (Cultural background of Bilaspur district) |
3 | बिलासपुर जिले की जल संसाधन संभाव्यता (Water Resource Probability of Bilaspur District) |
4 | बिलासपुर जिले के जल संसाधनों का उपयोग (Use of water resources in Bilaspur district) |
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