राजकुमार भारद्वाज

राजकुमार भारद्वाज
पाणी का के तोड़ा सै,पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो
Posted on 08 Jul, 2014 10:42 AM

गांव के चारों ओर शहरी विकास प्राधिकरण और निजी कालोनाइजरों ने
. . . और अब मुसीबत बनी नहरें
Posted on 08 Jul, 2014 09:57 AM
जिन गांवों में पानी की कमी का संकट है, में तकरीबन हर गांव में ऐसे स
सुकून : बुजुर्गों की बदौलत दौलताबाद में कायम पनघट का जमघट
Posted on 05 Jul, 2014 12:03 PM
युवाओं की अरुचि, सरकार की गलत नीतियों और बुजुर्गों की लापरवाही के
water scarcity
बावले : जिब जमीन की कीमत मां-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएं
Posted on 03 Jul, 2014 05:02 PM

इलाके के सबसे बड़े और पूरे गांव के प्यास बुझाने वाले दो दर्जन कुओं में से अब एक भी नहीं है। गां

के डले विकास है, पाणी नहीं तो विकास किसा
Posted on 01 Jul, 2014 11:22 AM
दम तोड़ते गुड़गांव के परंपरागत तालाबदिल्ली के नजफगढ़, महिपालपुर या महरौली रोड से जैसे ही कोई दुनिया भर में विकास का मॉडल बने दूध इही के खाणे वाले हरियाणा में घुसता है तो सबसे पहले जो दो चीजें आपका स्वागत करती हैं वे हैं सस्ती शराब और बोतलबंद पानी। जिन जगहों पर अब शराब और पानी बिकता है, किसी जमाने इनके इर्द-गिर्द पानी की प्याऊ होती थी, जो अब नहीं हैं।
प्याऊ से लंगर तक की प्रेरणादायक कहानी
Posted on 08 Jun, 2014 03:06 PM
लोहारी जाट्टू के फौजी कर्मवीर की फौज बुझाती है हर रोज हजारों की प्यास
प्यासों को पानी पिलाने के लिए फौज से हर साल आते थे दो माह की छुट्टी लेकर


तारीख 6 जून, 2013।
समय : दिन के 2 बजे।
तापमान: 46 डिग्री।
स्थान : हिसार से वाया हांसी, बवानी खेड़ा भिवानी तक जाने वाली हरियाणा रोडवेज की खटारा लोकल बस।

. . . और टूट गया पानी का गढ़
Posted on 25 May, 2014 09:13 AM

एक जमाना था जब पानी की गुणवत्ता के चलते यहां पैदा होने वाले गन्ने, गाजर और प्याज की दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी में सर्वाधिक मांग होती थी। मंडी के व्यापारी गांव में आकर खेत में खड़ी फसल का सौदा कर लेते थे। उधर, गांव की थली से भरत के लिए उठाए जा रहे रेत से थली में खेत 50-50 फुट के गड्ढे हो गए हैं। परिणामत: थली में पानी का चोआ एकदम ऊपर आ गया है। गांव मार में है, पानी की कमी गांव को मार रही है तो थली में रेत उठाने से निकलने वाला पानी वहां खेती को चौपट कर रहा है।

अप्रैल 2014 में पूज्य पिताजी श्री गणपत राय भारद्वाज का निधन हुआ तो तकरीबन डेढ़ दशक बाद अपने घर, गांव में लगातार 13 दिन रहने का अवसर मिला। पिछले एक दशक में गांव जब भी गया तो एक- दो दिन रुककर वापस आ जाता था। गांव काफी बदल गया है, इस बात का अहसास इतने लंबे समय तक गांव में रहने के बाद हुआ। खुद पर थोड़ी शर्म भी आई कि गांव, गंवई पर नियमित लेखन करता हूं, और बहुत वाचालता से जगह-जगह गांव के मुद्दों पर बात करता हूं, लेकिन अपने ही गांव के सवालों को नहीं जानता।

शिक्षा संस्थानों के लिए हरियाणा भर में विख्यात मेरे ऐतिहासिक गांव हसनगढ़ में अब बर्गर, पेट्टीज, अंडा, चाउमिन, मोमोज और मांसाहार की दुकान खुली हैं। एक दुकान पर पेस्ट्री भी रखी दिखाई दी। पहले बर्फी, जलेबी, घेवर और समोसा बनाने वाली हलवाइयों की तीन-चार परंपरागत दुकानें थी। पहले दिन लगा कि मेरा गांव भी हरियाणा के दूसरे हजारों गांवों जैसा हो रहा है।
यात्रा से निकलेगा निष्कर्ष, कैसे बचेगी यमुना
Posted on 12 Mar, 2013 10:32 AM
नदी का एक पूरा विज्ञान है। जब वह अविरल बहती है तो संस्कृति को सिंच
यमुना मुक्ति यात्रा : कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैली चिंता
Posted on 09 Mar, 2013 11:28 AM
यमुना मुक्ति यात्रा केवल धर्म और धार्मिकता का सवाल नहीं है। ऐसा नहीं है कि इसकी चिंता सिर्फ धर्म और आध्यात्म से जुड़े लोगों को हो। यमुना में बढ़ते प्रदूषण और गिरते भूजलस्तर को समझने वाले वे चाहे किसान हों, खेतीहर मजदूर हों, या फिर वकिल, व्यापारी, कॉलेज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर। यमुना सबके लिए चिंता का विषय है। दुनिया की नामी-गिरामी साफ्टवेयर कंपनी इंफ़ोसिस में काम करने वाले धर्मिन पहले दिन से इस या
यमुना मुक्ति पदयात्रा
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