राजीव चन्देल

राजीव चन्देल
जीरो बजट से तैयार शौचालय
Posted on 03 Dec, 2012 12:10 PM
जीरो बजट के शौचालय को बनाना बड़ा आसान काम है। खासकर गांवों में लोग थोड़ा बहुत श्रम करके इसे खुद ही तै
zero budget toilet
महिलाओं ने संभाली कमान, चंदे से बनायेंगी एक दूसरे का शौचालय
Posted on 09 Nov, 2012 03:31 PM
गोरखपुर के सहजनवा स्थित वार्ड न. एक में जब पुरुषों ने यह कह कर टॉयलेट बनाने की बात पर टाल-मटोल करनी शुरू की कि बहू-बेटियों के बाहर शौच जाने से उन पर बहुत फर्क नहीं पड़ता, तो गांव की महिलाओं का आत्म सम्मान जाग उठा। उसी दिन दर्जन भर महिलाओं ने ग्वालियर से गोरखपुर पहुंची निर्मल भारत यात्रा की टीम के साथ मीटिंग कर निश्चय किया कि शौचालय बनकर रहेगा इसके लिए उन्हें पुरुषों से परमीशन लेने की जरूरत नहीं है। यात्रा की आयोजक संस्था क्विकसैंड की इतिका व विवान ने उन महिलाओं को खुले में शौच जाने से होने वाले सामाजिक, आर्थिक नुकसान के साथ इसके कारण होने वाली बीमारियों के बारे में बताया तो जैसे उनकी आंखें ही खुल गई।
ग्वालियर में निर्मल भारत यात्रा का भव्य आगाज
Posted on 31 Oct, 2012 03:33 PM

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश व मुख्यमंत्री आएंगे


ग्वालियर (म.प्र.)। देश के ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता का अलख जगाने के लिये महाराष्ट्र के वर्धा जिले के सेवाग्राम से शुरू निर्मल भारत यात्रा का बुधवार को ग्वालियर में भव्य आगाज होगा। केंद्रीय ग्रामीण मंत्री व वाश युनाइटेड एंड क्विकसैंड डिजायन स्टूडियो संगठन के संयुक्त तत्वाधान में चल रही यह यात्रा गुरुवार तक जिले में रहेगी। इन दो दिनों में मुरार के ग्राम पंचायत जलालपुर में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट के सामने निर्मल भारत यात्रा के दो दिवसीय मेले का आयोजन होगा। मेले में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आएंगे।
हम इस देश के लिए दिल से काम करना चाहते हैं : ईना युर्गा
Posted on 26 Oct, 2012 09:52 AM
ग्वालियर (म.प्र)। हमारी यात्रा में थोड़ा ग्लैमर जरूर नजर आ रहा है, लेकिन यह सच्चाई नहीं है। वास्तव में हम इस देश के लिए दिल से काम करना चाहते हैं। यह हमारा मिशन है न कि प्रोफेशन। यह सबको पता है, विकासशील देशों में स्वच्छता एक बहुत बड़ी समस्या है। खासतौर पर भारत में हो रहे खुले में शौच का मुद्दा दुनिया भर में सेनिटेशन पर काम कर रहे संगठनों के लिए आज सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। यहां तक कि वर्षों से
महिलाएं, निर्मल गांव और जयराम रमेश
Posted on 24 Oct, 2012 04:45 PM
निर्मल भारत अभियान की कमान अब स्वयं महिलाओं को अपने हाथ में ले लेनी चाहिये। भारत के प्रत्येक गांव को निर्मल गांव बनाना महिलाओं के हाथ लगाये बगैर असंभव है, क्योंकि यह हमारे मर्यादा का सवाल है। सरकार के इस अभियान को समाज में मान-प्रतिष्ठा से जोड़ा जाना चाहिए। केन्द्रीय ग्रामीण मंत्री ने महिलाओं से हरियाणा में इस समय पॉपुलर हुए उस संकल्प को अपनाने की अपील की जिसमें वहां की बेटियों के लिये धक्काड़े के साथ कहा जा रहा है कि ‘शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं।’ सांगोद (कोटा)। महिलाएं, निर्मल गांव और जयराम रमेश, क्या इन तीनों में कोई साम्यता हो सकती है। यदि केंद्रीय ग्रामीण एवं पेयजल मंत्री जयराम रमेश की सुने तो, हां। इतना ही नहीं इस त्रिकोणमिती में तो उनको चमत्कार का भी दीदार हो रहा है। पहले इन्दौर में उन्होंने पत्रकारों से कहा था कि पानी के बिना निर्मल गांव बनाना असंभव है। लेकिन भारत निर्मल यात्रा के कोटा राजस्थान पहुंचने पर जब ग्रामीण मंत्री ने मंच के सामने महिलाओं की अपार भीड़ देखी तो उनके स्वर बदल गए।
Sanitation
हर हाल में हानिकर खुला शौच
Posted on 09 Oct, 2012 11:32 AM
महात्मा गांधी और विनोबा भावे ने कभी सुचिता यानि स्वच्छता से आत्मदर्शन की कल्पना की थी। ‘शुचिता से आत्मदर्शन’, जिसमें ‘शौचात् स्वांगजुगुप्सा’ तक भौतिक शुचिता से लेकर आध्यात्मिक शुचिता, आत्मानुभूति तक। जिससे भारत के जन-जीवन में शुचिता का दर्शन होगा। वह मानते थे कि तन व मन दोनों जब तक स्वच्छ नहीं होंगे तब तक धर्म, दर्शन व भगवान की बात करना ही बेमायने है। आज से करीब 90 साल पहले गॉंधी ने ग्राम स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी। उन्होंने यह बहुत पहले ही समझ लिया था कि देश में कई एक महामारियों का एक मात्र कारण है-खुले में शौच और घरों के आसपास फैली बजबजाती गंदगी। उस समय हैजा, कालरा, चिकन पॉक्स जैसी जानलेवा बीमारियों से कभी-कभी गांव की पूरी की पूरी आबादी ही साफ हो जाती थी। यही कारण था कि गांधी ने ताउम्र सफाई अभियान की न केवल वकालत की बल्कि गंदी से गंदी बस्ती में जाकर पाखाना साफ किया और लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया। वह खुले में शौच के घोर विरोधी थे। वह गांव-गांव जाकर लोगों को खुले में शौच न करने व साफ-सफाई के विषय में वैज्ञानिक ढंग से समझाते थे।

वैज्ञानिकों के मुताबिक एक मक्खी एक दिन में कम से कम तीन किलोमीटर तक जरूर उड़ती है। इस तरह से मक्खियां एक बस्ती से दूसरी बस्ती, आसपास, खेत व जंगलों का सफर करती रहती हैं। मक्खियां मल पर बैठती हैं और फिर उड़ कर घरों में पहुंच कर खाने-पीने की चीजों पर बैठती हैं। उनके पैरों व पंखों में मल चिपका हुआ रहता है जो खान-पान की चीजों में जाकर घुल जाता है। इससे हैजा, कालरा व डायरिया जैसी जानलेवा बीमारी फैलने में देर नहीं लगती।

ब्लास्टिंग कूप: पेयजल के स्थायी स्रोत पर सरकारी डाका
Posted on 22 Aug, 2012 03:52 PM

1000 से अधिक नये कूप निर्माण कराने का लक्ष्य अभी नहीं हुआ पूरा

blast well
राष्ट्रीय जलनीति 2012 का संशोधित मसौदा : थोड़ा ठीक हुआ, काफी कमियां बाकी
Posted on 22 Aug, 2012 12:11 PM
प्रस्तुति
राजीव चन्देल


यदि राज्य सरकारें व स्थानीय निकायें यह सुनिश्चित करें की नजीकरण को प्रोत्साहित किया जाना है। लेकिन एक तरफ तो निजीकरण कम करने की पहल की गई है, वहीं दूसरी तरफ यह कहा जा रहा है कि प्राइवेट सेक्टर को शर्तों के आधार पर सेवा प्रदाता बनाया जा सकता है, लेकिन इन नीतियों के बनिस्बत यह भी देखना है जो कि समान रूप से महत्वपूर्ण है। देश में जल प्रबंधन को निजी हाथों में अनुबंधित किये जाने के बाद प्रायः यह देखा गया कि वह सेवा प्रदाता व्यक्तिगत लाभार्थी के रूप में इस उद्देश्य से बदल गये जिससे निजी कंपनियों को मुनाफा हो।

राष्ट्रीय जल नीति का संशोधित मसौदा, जिसे हाल में ही सामने लाया गया है, उसमें पहले की अपेक्षा स्पष्ट तौर पर सुधार हैं। नये मसौदे से यह प्रतीत होता है कि ड्राफ्ट कमेटी ने पहले तैयार किये गये मसौदे (पूर्व योजना) में कई आपत्तियों को शामिल किया है। बावजूद इसके, इसे अंतिम नहीं मान लेना चाहिए। अभी इस पर अत्यधिक कार्य होना चाहिए। भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय ने 25 जुलाई 2012 को राष्ट्रीय जल नीति (2012) के संशोधित प्रारूप (Revised) को सार्वजनिक किया। पहले इस मसौदे को इसी साल जनवरी में जनता के समक्ष रख कर इस पर टिप्पणियां मांगी गई थी। लेकिन इस मसौदे के साथ भी वही कुछ हुआ, जो कि आम सहमति पर किये जाने वाले विकास योजनाओं के साथ होता आया है। कुछ को छोड़कर कई अन्य मामलों के अनुभव ऐसे हैं जिनमें सरकारें पहले लोगों से टिप्पणियां (comments) मांगती हैं, लेकिन मिल जाने पर प्रायः उन पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
पॉवर प्लांटों द्वारा गंगा व यमुना से भारी मात्रा में पानी खींचने से बिगड़ेगी पारिस्थितिकी
Posted on 11 Aug, 2012 01:00 PM

इलाहाबाद में तीन पॉवर प्लान्टों की स्थापना से लाखों किसानों, मछुआरों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल


पानी के ‘अतिभोग’ व ‘अतिदोहन’ से चिंतित भारत सरकार ‘कानून’ बनाकर जल संरक्षण का खाका तैयार कर रही है, जबकि दूसरी ओर कार्पोरेट सेक्टर को अतिशय जल उपभोग की इजाजत भी बिना किसी रोक-टोक व उसके स्रोतों की स्थिति जाने बगैर दी जा रही है। इलाहाबाद जनपद में केवल 25 कि0मी0 की परिधि में तीन कोल बेस्ड थर्मल पॉवर प्लान्टों और उन्हें गंगा तथा यमुना नदी से भारी मात्रा में पानी देने का फैसला भी सरकार के जल संरक्षण की दोहरी नीति की तरफ इशारा करता है।

पानी के ‘अतिभोग’ व ‘अतिदोहन’ से चिंतित भारत सरकार ‘कानून’ बनाकर जल संरक्षण का खाका तैयार कर रही है, जबकि दूसरी ओर कार्पोरेट सेक्टर को अतिशय जल उपभोग की इजाजत भी बिना किसी रोक-टोक व उसके स्रोतों की स्थिति जाने बगैर दी जा रही है। हाल में तैयार किये गए ‘राष्ट्रीय जल नीति-2012’ के मसौदे और इसी दरम्यान कुछ फैक्ट्रियों, थर्मल पॉवर प्लांटों को दिये जा रहे पानी के उपभोग की खुली छूट में कोई तालमेल दिखाई नहीं पड़ता। इसी मसौदे की प्रस्तावना (1.3-पैरा 4) में एक तरफ सरकार यह कह रही है कि खाद्य सुरक्षा, जीविका तथा सभी के लिए समान और निरंतर विकास हेतु राज्य द्वारा ‘सार्वजनिक धरोहर के सिद्धान्त’ के तहत जल का प्रबंधन सामुदायिक संसाधन के रूप में किये जाने की आवश्यकता है, वहीं कोल बेस्ड थर्मल पॉवर प्लान्टों और प्रस्तावित दिल्ली से मुम्बई तक इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर (इटली की स्कॉट विलस्न कंपनी द्वारा दिल्ली से मुम्बई तक पानी की उपलब्धता और उपभोग के पैमाने पर एक सर्वे रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी गई है) को भारी मात्रा में पानी देने पर सरकार स्वयं राजी है। इलाहाबाद जनपद में केवल 25 कि0मी0 की परिधि में तीन कोल बेस्ड थर्मल पॉवर प्लान्टों और उन्हें गंगा तथा यमुना नदी से भारी मात्रा में पानी देने का फैसला भी सरकार के जल संरक्षण की दोहरी नीति की तरफ इशारा करता है।
पानी बचाने में अधिकारियों की मदद करें किसानः डा. एसपी सिंह
Posted on 25 Nov, 2013 01:49 AM

-इंटीग्रेटेड वॉटरशेड मैनेजमैंट प्रोग्राम (आईडब्ल्यूएमपी) जल संरक्षण के क्षेत्र मील का पत्थर साबित होगा


-यमुनापार इलाके में रामगंगा कमांड द्वारा इंट्री प्वाइंट प्रोग्राम प्रारंभ, गोष्ठी के माध्यम से दी जा रही किसानों को जानकारी

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