पॉवर प्लांटों द्वारा गंगा व यमुना से भारी मात्रा में पानी खींचने से बिगड़ेगी पारिस्थितिकी

इलाहाबाद में तीन पॉवर प्लान्टों की स्थापना से लाखों किसानों, मछुआरों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल


पानी के ‘अतिभोग’ व ‘अतिदोहन’ से चिंतित भारत सरकार ‘कानून’ बनाकर जल संरक्षण का खाका तैयार कर रही है, जबकि दूसरी ओर कार्पोरेट सेक्टर को अतिशय जल उपभोग की इजाजत भी बिना किसी रोक-टोक व उसके स्रोतों की स्थिति जाने बगैर दी जा रही है। इलाहाबाद जनपद में केवल 25 कि0मी0 की परिधि में तीन कोल बेस्ड थर्मल पॉवर प्लान्टों और उन्हें गंगा तथा यमुना नदी से भारी मात्रा में पानी देने का फैसला भी सरकार के जल संरक्षण की दोहरी नीति की तरफ इशारा करता है।

पानी के ‘अतिभोग’ व ‘अतिदोहन’ से चिंतित भारत सरकार ‘कानून’ बनाकर जल संरक्षण का खाका तैयार कर रही है, जबकि दूसरी ओर कार्पोरेट सेक्टर को अतिशय जल उपभोग की इजाजत भी बिना किसी रोक-टोक व उसके स्रोतों की स्थिति जाने बगैर दी जा रही है। हाल में तैयार किये गए ‘राष्ट्रीय जल नीति-2012’ के मसौदे और इसी दरम्यान कुछ फैक्ट्रियों, थर्मल पॉवर प्लांटों को दिये जा रहे पानी के उपभोग की खुली छूट में कोई तालमेल दिखाई नहीं पड़ता। इसी मसौदे की प्रस्तावना (1.3-पैरा 4) में एक तरफ सरकार यह कह रही है कि खाद्य सुरक्षा, जीविका तथा सभी के लिए समान और निरंतर विकास हेतु राज्य द्वारा ‘सार्वजनिक धरोहर के सिद्धान्त’ के तहत जल का प्रबंधन सामुदायिक संसाधन के रूप में किये जाने की आवश्यकता है, वहीं कोल बेस्ड थर्मल पॉवर प्लान्टों और प्रस्तावित दिल्ली से मुम्बई तक इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर (इटली की स्कॉट विलस्न कंपनी द्वारा दिल्ली से मुम्बई तक पानी की उपलब्धता और उपभोग के पैमाने पर एक सर्वे रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी गई है) को भारी मात्रा में पानी देने पर सरकार स्वयं राजी है। इलाहाबाद जनपद में केवल 25 कि0मी0 की परिधि में तीन कोल बेस्ड थर्मल पॉवर प्लान्टों और उन्हें गंगा तथा यमुना नदी से भारी मात्रा में पानी देने का फैसला भी सरकार के जल संरक्षण की दोहरी नीति की तरफ इशारा करता है।

उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जनपद में लगभग 10 हजार परिवारों के सदस्य प्राकृतिक जल स्रोतों की सुरक्षा के लिए एक दशक से अधिक समय से संघर्ष कर रहे हैं। इस लड़ाई में लाखों किसानों की खाद्य सुरक्षा व मछुवारों की जीविका का सवाल जुड़ा हुआ है। अब यह लड़ाई तालाबों, पोखरों, पुराने कुओं व छोटे-बड़े नालों पर कब्जे हटवाने के अलावा जिले के बारा, करछना व मेजा तहसीलों में स्थापित किये जा रहे तीन थर्मल पॉवर प्लान्टों को दिये जा रहे भारी मात्रा में पानी के खिलाफ शुरू हो गई है। सुपर क्रिटिकल टेक्नालॉजी कोल बेस्ड तीनों थर्मल पॉवर प्लान्ट, गंगा व यमुना नदी से पानी लेंगे।

कार्पोरेट सेक्टर के जल उपभोग के अपने तौर-तरीके हैं, जिन्हें जल संरक्षण, खाद्य सुरक्षा या किसी समुदाय के जल द्वारा जीविकोपार्जन से क्या लेना-देना। विकास के नाम पर सरकारी जोर-जबरदस्ती यहां भी जारी है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जनपद में लगभग 10 हजार परिवारों के सदस्य प्राकृतिक जल स्रोतों की सुरक्षा के लिए एक दशक से अधिक समय से संघर्ष कर रहे हैं। इस लड़ाई में लाखों किसानों की खाद्य सुरक्षा व मछुवारों की जीविका का सवाल जुड़ा हुआ है। अब यह लड़ाई तालाबों, पोखरों, पुराने कुओं व छोटे-बड़े नालों पर कब्जे हटवाने के अलावा जिले के बारा, करछना व मेजा तहसीलों में स्थापित किये जा रहे तीन थर्मल पॉवर प्लान्टों को दिये जा रहे भारी मात्रा में पानी के खिलाफ शुरू हो गई है। सुपर क्रिटिकल टेक्नालॉजी कोल बेस्ड तीनों थर्मल पॉवर प्लान्ट, गंगा व यमुना नदी से पानी लेंगे। इनमें दो पॉवर प्लान्टों, करछना और बारा यमुना व मेजा को गंगा नदी से पानी देने के लिए सरकार राजी हुई है। बताया गया है कि कूलिंग और ऐश पाउंड के लिए एक थर्मल पॉवर प्लान्ट को 100 क्यूसेक प्रति घंटे से अधिक पानी चाहिए। इस प्रकार तीनों पॉवर प्लांट तीन सौ क्यूसेक से अधिक पानी का उपभोग करेंगे। आश्चर्य की बात तो यह है कि इलाहाबाद प्रशासन और केंद्रीय जल आयोग को इस बात की अभी तक कोई जानकारी नहीं है कि इन थर्मल पॉवर प्लांटों को गंगा और यमुना नदियों से इतना अधिक पानी देने की इजाजत आखिर किसने दी। इस सम्बंध में किसानों के बीच काम कर रहे राजीव भाई ने जिलाधिकारी इलाहाबाद और सिंचाई विभाग से सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जानकारी मांगी तो चैंकाने वाला उत्तर मिला। अज्ञानता वश जिलाधिकारी कार्यालय ने इस बात की जानकारी बिजली विभाग से मांग ली और कहा कि वह अधोस्ताक्षरी को यह बताए कि प्रदूषण व पानी का लाइसेंस किसने दिया है। पत्र प्राप्त होने के बाद बिजली विभाग ने डीएम कार्यालय की खिल्ली उड़ाई और सूचना मांगने वाले प्रार्थना पत्र को वापस डीएम ऑफिस भेज दिया। सिंचाई विभाग के बाघला नहर प्रखंड इलाहाबाद के अधिशाषी अभियंता ने 29 अगस्त 2011 को अपने पत्र 1261 के द्वारा बताया कि थर्मल पॉवर प्लांटों को पानी का लाइसेंस किसने दिया यह उन्हें पता नहीं है। वहीं आरटीआई के माध्यम से यह पूछे जाने पर कि क्या गंगा व यमुना नदियों से थर्मल पावर प्लांटों को पानी देने का लाइसेंस केंद्रीय जल आयोग द्वारा दिया जा रहा है?, उत्तर दिया गया कि यह इस कार्यालय से संबंधित नहीं है।

गंगा व यमुना नदी से भारी मात्रा में पानी उपभोग के लिए तीनों थर्मल पॉवर प्लांटों को किसने और किस आधार पर इजाजत दी यह पता करनाएक टेढ़ा कार्य है। जबकि इलाहाबाद के बारा तहसील में यमुना नदी के घाट से थर्मल पॉवर प्लांट पानी लेने के लिए मशीने लगाना शुरू कर चुका है। जिस घाट से थर्मल पॉवर प्लांट के लिए यमुना नदी से पानी खींचा जायेगा, उसके कुछ दूर पर बाघला पंप नहर स्थापित है। इस पंप से हजारों हेक्टेयर खेतों की सिंचाई होती है। यह पंप तब स्थापित किया गया था जब देश में भयंकर अकाल पड़ा था और किसान मजदूर अमेरिका से भेजी गयी लाल दलिया खाने को तरस रहे थे। अब पंप से लाखों किसानों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है। यह नहर जुलाई से फरवरी तक चलाई जाती है। इसके बाद विशाल यमुना का पानी क्षीण हो जाता है। स्थिति यह होती है कि यदि आगे पंप चलाया जाय तो हजारों परिवार, जिनका पेट यमुना के पानी से पलता है, उनमें तबाही मच जायेगी। कौशाम्बी जनपद से लेकर इलाहाबाद के घूरपुर और मिर्जापुर के विन्ध्याचल तक पीढि़यों से बसे लाखों मछुआरों का जीविकोपार्जन आज भी यमुना व गंगा नदी से हो रहा है। विडम्बना यह है कि अभी तक यमुना नदी पर बालू खनन माफियाओं का कब्जा तो बरकार ही है अब तीन-तीन थर्मल पॉवर प्लांटों द्वारा सैकड़ों क्यूसेक पानी लेने से जनवरी के बाद यमुना का पानी तलहटी तक चले जाने का खतरा पैदा हो जायेगा। इलाहाबाद में बलुआघाट स्थित केंद्रीय जल आयोग द्वारा स्थापित जल विज्ञानीय प्रेक्षण व गेज से यमुना में निरन्तर घट रहे जल स्तर के बारे में हमें चेताते हैं। इस सम्बंध में अखिल भारतीय किसान मजदूर संघ के डा0 अशीष मित्तल बताते हैं कि वह पिछले एक दशक से यमुना में हो रहे मशीनों से बालू खनन के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। यमुना नदी से हजारों परिवारों का जीवन यापन होता रहे यही उनका ध्येय है। वहीं थर्मल पॉवर प्लांटों को भारी मात्रा में पानी देने से वह चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि इससे अब एक नए तरह का संकट पैदा हो जायेगा, जो काफी खतरनाक होगा। इससे लाखों परिवारों की रोजी-रोटी छिन जाने का खतरा है। उनका कहना है कि जब थर्मल पॉवर प्लांट पानी खींचेंगे तो यह कौन देखेगा कि वह 100 क्यूसक ले रहे हैं या 500। जनवरी के बाद जब पानी खींचा जायेगा तो यमुना नदी कौशाम्बी व इलाहाबाद बाद के बीच जगह-जगह पर सूख जायेगी। इससे यमुना के कछार में सब्जी उगागर रोजगार करने वाले हजारों परिवार तबाह होंगे और मछली पालन व नाव चलाकर परिवार का गुजारा करने वाले कहां जायेंगे, इसकी किसे परवाह है। यही नहीं डा0 मित्तल का तो यह भी दावा है कि थर्मल पॉवर प्लांटों में पानी जाने के बाद गंगा और यमुना में स्थापित करीब एक दर्जन सिंचाई पंप भी खड़े हो जायेंगे। यमुना का पानी पेटे में खिसक जाने के बाद इन पंपों को बंद करना ही पड़ेगा। परिणाम स्वरूप इलाहाबाद के यमुनापार इलाके में लाखों किसानों की खेती-बारी नष्ट हो जायेगी। प्राकृतिक जल स्रोतों के बचाने के कार्य में जुटे सिंचाई विभाग के रिटायर इंजीनियर डीके त्रिपाठी का मानना है कि थर्मल पॉवर प्लांटों द्वारा भारी मात्रा में पानी खींचने से यमुना का पानी क्षीण हो जायेगा। इससे इस क्षेत्र में पारिस्थितिकी तंत्र तेजी के साथ बिगड़ेगा। किसानों, मछुआरों की रोजी-रोटी तो छिनेंगी ही बल्कि कुएं, तालाबों और पोखरों के सूख जाने की नौबत आ जायेगी। यमुना के किनारे बसे गांवों में पेयजल संकट उत्पन्न हो जायेगा। नदी प्रवाह में कमी आयेगी। पारिस्थितिकी आवश्यकताएं कम हो जायेंगी और यमुना में गाद जमते रहने से आने वाले दशकों में बाढ़ से तबाही भी झेलनी पड़ेगी।

थर्मल पॉवर प्लांटों द्वारा भारी मात्रा में पानी खींचने से यमुना का पानी क्षीण हो जायेगा। इससे इस क्षेत्र में पारिस्थितिकी तंत्र तेजी के साथ बिगड़ेगा। किसानों, मछुआरों की रोजी-रोटी तो छिनेंगी ही बल्कि कुएं, तालाबों और पोखरों के सूख जाने की नौबत आ जायेगी। यमुना के किनारे बसे गांवों में पेयजल संकट उत्पन्न हो जायेगा। नदी प्रवाह में कमी आयेगी। पारिस्थितिकी आवश्यकताएं कम हो जायेंगी और यमुना में गाद जमते रहने से आने वाले दशकों में बाढ़ से तबाही भी झेलनी पड़ेगी।

बारा व मेजा के कोहड़ार में पॉवर प्लांट के लिए यमुना से पानी लाने के लिए फाउन्डेशन बनाने और पाइप बिछाने का कार्य तेजी से किया जा रहा है। किसान और मछुआरे परेशान हैं। उनका कहना है कि यमुना से भारी मात्रा में पानी लेने से ही जन-जीवन पर गहरा संकट उत्पन्न हो जायेगा, जिससे उबर पाना कठिन होगा। यदि इस कड़ी में थर्मल पॉवर प्लांटों से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण के खतरे की ओर देंखें तो इस इलाके की तस्वीर भयावह होगी। किसानों का कहना है कि जब जन-जीवन और उनकी रोजी-रोटी ही खतरे में पड़ जायेगी तो वह क्या करेंगे बिजली लेकर। उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जो जानकारी दी गई है उसके मुताबिक एक थर्मल पॉवर प्लांट में प्रति दिन 24 हजार टन से अधिक जल कोयला और करीब 90 टन आयल जलेगा। 25 किमी के भीतर स्थापित होने वाले तीनों पॉवर प्लांटों में रोज जलने वाले ईंधन और उसमें से निकलने वाली राख का मूल्यांकन किया जाय तो इलाके में प्रदूषण से पूरी पारस्थितिकी कैसे खतरे में पड़ जायेगी यह मिर्जापुर और सोनभद्र में चल रहे कोल बेस थर्मल पॉवर प्लांटों के कारण पैदा हुए पर्यावरण प्रदूषण को देखकर सहज ढंग से समझा जा सकता है, जहां पर प्लांटों से निकलने वाली जहरीली राख और पानी से करीब दो दर्जन से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है। जबकि वर्तमान में आस-पास के दर्जनों गांवों के लोग नारकीय जीवन जी रहे हैं। यही वजह है कि इलाहाबाद में किसानों, मजदूरों और मछुआरों ने यमुना और गंगा से पानी लेने का विरोध तेज कर दिया है।

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