तीव्र औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की वजह से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसें, जो वातावरण में तो नगण्य मात्रा में हैं, परन्तु विकिरण की दृष्टि से काफी सक्रिय हैं, दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही चली जा रही है। इन गैसों के सांद्रण की वृद्धि पर समुचित नियंत्रण न रखा गया तो इसकी वजह से वायुमंडल की रचना में क्रमिक परिवर्तन होगा, जो पूरे विश्व के जलवायु और जल चक्र को प्रभावित कर सकता है। फलस्वरूप, जल संसाधन के विकास और प्रबंधन की वर्तमान नीतियां भी प्रभावित होगी। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए परम्परागत रूप से जल संसाधन के संबंध में तीन प्रश्न उठते हैं : (1) भविष्य में जल की उपलब्धता क्या होगी, यानि हमारे पास जल की मात्रा क्या होगी, (2) भविष्य में जल की मांग कितनी होगी, औऱ (3) ये दोनों कारक वातावरण को किस तरह प्रभावित करेंगे।
इस शोध पत्र में जलवायु परिवर्तन के कारणों और भविष्य के जलवायु स्थितियों की विभिन्न संकल्पनाओं का वर्णन किया गया है। जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के कुपरिणामों का विश्लेषण किया गया है। साथ ही, इस पत्र में उन तकनीकी अध्ययनों के परिणामों को भी समाविष्ट किया गया है जो यह दर्शाता है कि भारत के संदर्भ में जल संसाधनों पर इस परिवर्तन का क्या हश्र होगा। हालांकि, वर्तमान में जलविज्ञानीय प्रक्रियाओं एवं भू और वायुमंडल के बीच की पारस्परिक क्रियाओं को जिन भौतिकीय परिकल्पनाओं के आधार पर गणितीय सूत्रों से निरूपित करते हैं, उनके द्वारा जलवायु परिवर्तन और जल संसाधन पर इसके प्रभाव का सही-सही आंकलन नहीं किया जा सकता है।
इस विषय-वस्तु को सही रूप से समझने और विभिन्न पहलुओं के अध्ययन के लिए यह आवश्यक है कि पृथ्वी और वायुमंडल के बीच होने वाली विभिन्न जलविज्ञानीय और मौसमीय प्रक्रियाओं के निदर्शन की विभिन्न पहलुओं पर कुछ मूलभूत शोध किया गया। जिसके फलस्वरूप ही, व्यापक संचरण निदर्श (GCM) के द्वारा जलवायु परिवर्तन की विभिन्न संकल्पनाओं में अधिक से अधिक विश्वसनीयता आ सकेगी। साथ ही, क्षेत्रीय स्तर पर जल संसाधन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के आकलन के लिए समुचित तकनीक विकसित किया जा सकेगा। अंतोगत्वा, विज्ञान के इस नवीनतम पुनरूदयमान विषय क्षेत्र में जिन पहलुओं पर मूलभूत और व्यवहारिक शोध की प्राथमिकता रूप से जरूरत है, उन पर प्रकाश डाला गया है।
इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें
NIH_I_water Conf_04.003 paper_High.pdf
इस शोध पत्र में जलवायु परिवर्तन के कारणों और भविष्य के जलवायु स्थितियों की विभिन्न संकल्पनाओं का वर्णन किया गया है। जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के कुपरिणामों का विश्लेषण किया गया है। साथ ही, इस पत्र में उन तकनीकी अध्ययनों के परिणामों को भी समाविष्ट किया गया है जो यह दर्शाता है कि भारत के संदर्भ में जल संसाधनों पर इस परिवर्तन का क्या हश्र होगा। हालांकि, वर्तमान में जलविज्ञानीय प्रक्रियाओं एवं भू और वायुमंडल के बीच की पारस्परिक क्रियाओं को जिन भौतिकीय परिकल्पनाओं के आधार पर गणितीय सूत्रों से निरूपित करते हैं, उनके द्वारा जलवायु परिवर्तन और जल संसाधन पर इसके प्रभाव का सही-सही आंकलन नहीं किया जा सकता है।
इस विषय-वस्तु को सही रूप से समझने और विभिन्न पहलुओं के अध्ययन के लिए यह आवश्यक है कि पृथ्वी और वायुमंडल के बीच होने वाली विभिन्न जलविज्ञानीय और मौसमीय प्रक्रियाओं के निदर्शन की विभिन्न पहलुओं पर कुछ मूलभूत शोध किया गया। जिसके फलस्वरूप ही, व्यापक संचरण निदर्श (GCM) के द्वारा जलवायु परिवर्तन की विभिन्न संकल्पनाओं में अधिक से अधिक विश्वसनीयता आ सकेगी। साथ ही, क्षेत्रीय स्तर पर जल संसाधन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के आकलन के लिए समुचित तकनीक विकसित किया जा सकेगा। अंतोगत्वा, विज्ञान के इस नवीनतम पुनरूदयमान विषय क्षेत्र में जिन पहलुओं पर मूलभूत और व्यवहारिक शोध की प्राथमिकता रूप से जरूरत है, उन पर प्रकाश डाला गया है।
इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें
NIH_I_water Conf_04.003 paper_High.pdf
Path Alias
/articles/jalavaayau-paraivaratana-aura-jala-sansaadhana-para-isakaa-parabhaava-eka-vaivaecana
Post By: Hindi