जल संसाधनों की विभिन्न योजनाएं बनाने, उनका अभिकल्प और उचित उपयोग के लिए बाढ़ का ठीक-ठीक ज्ञात होना बहुत आवश्यक है इसके लिए एकक जलालेख सिद्धांत एक बहुत प्रचलित तकनीक है। इस तकनीक में बाढ़ जलालेख की गणना की जाती है। प्रमापी आवाह क्षेत्र के लिए एकक जलालेख की गणना करने की अनेक विधियाँ है, जिन्हें दो भागों में विभाजित किया जाता है।
(अ) पैरामेट्रिक एप्रोच (ब) नॉन पैरामेट्रिक एप्रोच
नैश-माडल द्वारा एकक जलालेख की गणना विस्तृत रूप से की जाती है जो कि पैरामेट्रिक एप्रोच पर आधारित है।
इस प्रतिवेदन में गोदावरी नदी के उपखण्ड 3फ के एक लघु-आवाह क्षेत्र-807/1 पर आठ विभिन्न वृष्टि की प्रत्येक वर्षा के विश्लेषण के लिए एकक जलालेख की गणना नैश-माडल द्वारा की गई है। इस माडल के चर ‘न’ और ‘क’ की गणना मारकोडारट प्रमेय की सहायता से प्रत्येक आठों अवस्थाओं के लिए की गई है। इस विश्लेषण में अरैखिक, निम्न वर्गीय तकनीक का उपयोग सुक्ष्मतह गणनाओं पर आधारित है। जिसमें प्रत्यक्ष धरातलीय अपवाह संबंधित वृष्टि की अवस्था को कम करता है।
संक्षेप में यह देखा गया है कि समस्त आठों अवस्थाओं का परिणाम काफी उत्साहवर्धक प्राप्त हुए हैं तथा संख्यिकी आधार पर अनुमान लगाने में आठों अवस्थाओं द्वारा प्राप्त गणनाएं 82 प्रतिशत से 97 प्रतिशत तक उपयुक्त प्राप्त हुई हैं। अतः इस आधार पर नैश-माडल का भारतीय दशाओं में लघु-आवाह क्षेत्र के लिए व्यावहारिक उपयोगिता प्रतिपादित होती है।
इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें
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(अ) पैरामेट्रिक एप्रोच (ब) नॉन पैरामेट्रिक एप्रोच
नैश-माडल द्वारा एकक जलालेख की गणना विस्तृत रूप से की जाती है जो कि पैरामेट्रिक एप्रोच पर आधारित है।
इस प्रतिवेदन में गोदावरी नदी के उपखण्ड 3फ के एक लघु-आवाह क्षेत्र-807/1 पर आठ विभिन्न वृष्टि की प्रत्येक वर्षा के विश्लेषण के लिए एकक जलालेख की गणना नैश-माडल द्वारा की गई है। इस माडल के चर ‘न’ और ‘क’ की गणना मारकोडारट प्रमेय की सहायता से प्रत्येक आठों अवस्थाओं के लिए की गई है। इस विश्लेषण में अरैखिक, निम्न वर्गीय तकनीक का उपयोग सुक्ष्मतह गणनाओं पर आधारित है। जिसमें प्रत्यक्ष धरातलीय अपवाह संबंधित वृष्टि की अवस्था को कम करता है।
संक्षेप में यह देखा गया है कि समस्त आठों अवस्थाओं का परिणाम काफी उत्साहवर्धक प्राप्त हुए हैं तथा संख्यिकी आधार पर अनुमान लगाने में आठों अवस्थाओं द्वारा प्राप्त गणनाएं 82 प्रतिशत से 97 प्रतिशत तक उपयुक्त प्राप्त हुई हैं। अतः इस आधार पर नैश-माडल का भारतीय दशाओं में लघु-आवाह क्षेत्र के लिए व्यावहारिक उपयोगिता प्रतिपादित होती है।
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