Posted on 06 Feb, 2010 01:59 PMचरागाहों के धीरे-धीरे क्षीण होते जाने पर हमारे जैसे विशाल देश के पशुधन की ठीक देख-भाल में अनेक गंभीर समस्याएं खड़ी हो गई हैं। सबसे बड़ा संकट तो खानाबदोश समाज पर पड़ा है। ‘बढ़ते रेगिस्तान’ पर नैरोबी में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में विशेषज्ञों ने सर्वसम्मति से स्वीकार से स्वीकार किया था कि सूखे और अधसूखे इलाकों के नाजुक पर्यावरण का सही उपयोग करने की दृष्टी से पशुपालन का सर्वोत्तम तरीका घुमंतूपन औ
Posted on 06 Feb, 2010 01:50 PMदेश में बहुत सारे इलाके ऐसे हैं जहां हर चार-पांच साल में एक बार सूखा पड़ रहा है। राजस्थान, गुजरात और आंध्र प्रदेश में तो दो-तीन साल में सूखा पड़ता है। पश्चिमी राजस्थान तो हर ढाई साल में सूखे का शिकार होता है। भौगालिक क्षेत्र के हिसाब से कहें तो बार-बार सूखे का शिकार होने वाला भूभाग देश की कुल भूमि का 19 प्रतिशत है और कुल आबादी के 12 प्रतिशत लोग इसकी पकड़ में आते हैं। राहत की जो भी व्यवस्था की जाती
Posted on 06 Feb, 2010 01:39 PMरूखी आबोहवा में पशुपालन ही सबसे ज्यादा सुरक्षित धंधा है। किसी साल सूखा पड़ता है तो हो सकता है खेती में अच्छे मौसम की तुलना में 10 प्रतिशत से भी कम पैदावार हो, लेकिन दूध और ऊन की पैदावार में 50 प्रतिशत से ज्यादा ही पैदावार रहती है।
Posted on 06 Feb, 2010 01:32 PMसार्वजनिक संसाधनों के ह्रास के कारण गांव के सामने चार विकल्प रह गए हैं- ऐसे इलाकों में चले जाएं जहां संसाधन भरपूर हों, अपने पशुओं की संख्या कम कर दें, बची हुई सार्वजनिक जमीन का ज्यादा लाभ उठाने की दृष्टि से पुराना रिवाज छोड़कर नए सिरे से तय करें कि किस प्रकार के जानवर पालने हैं, या सार्वजनिक जमीन का भरोसा छोड़ अपना प्रबंध खुद करें, भले ही इसमें पशुपालन का खर्च एकदम बढ़ जाए। लोग इन चारों विकल्पों क
Posted on 06 Feb, 2010 01:12 PMएक अर्थशास्त्री श्री एनएस जोधा राजस्थान में सार्वजनिक संपदा-संसाधनों के क्षय संबंधी अपने एक अध्ययन में बताते हैं कि राजस्थान जैसी आबोहवा वाली परिस्थिति में अपनी जमीन रखकर उसमें अनाज पैदा करने की अपेक्षा सार्वजनिक जमीन में पशु पालन ज्यादा लाभदायक रहा है। परंपरागत पद्धति में पशुओं को ज्यादातर बाहर ही चराते हैं, बहुत थोड़े से पशुओं को ही बांधकर खिलाया जाता है। इसलिए इस पद्धति में प्रति पशु खिलाने-पिल
Posted on 05 Feb, 2010 01:55 PMराजस्थान के सूखे इलाके में खेती के बाद महत्वपूर्ण संपदा पशु ही है। राजस्थान के पश्चिमी हिस्सों में, जहां अक्सर सूखा पड़ता रहता है, लोगों का प्रमुख उद्योग पशुपालन है। राजस्थान में कोई चार करोड़ जानवर हैं। राजस्थान पशुधन वाले राज्यों में तीसरे स्थान पर है। देश के कुल दूध का 10 प्रतिशत और ऊन का 50 प्रतिशत इसी राज्य से आता है। ढुलाई-खिंचाई करने वाले ताकतवर पशु भी खूब हैं। राजस्थान में गाय, बैल, भेड़,
Posted on 05 Feb, 2010 01:41 PMबारह राज्यों में फैले हुए हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत 6 करोड़ 15 लाख हेक्टेयर भूमि आती है। इनमें से 1 करोड़ 78 लाख हेक्टेयर भूमि में घने जंगल हैं और 17 लाख हेक्टेयर में बुग्याल (ऊंचाई) पर हैं। बुग्यालों का दो तिहाई हिस्सा हिमालय प्रदेश में है। ये 2,500 से 3,000 मीटर ऊंचाई पर हैं जहां पर जलवायु बिलकुल समशीतोष्ण है और इसलिए वहां पेड़ पनप नहीं पाते हैं। इन पहाड़ी चरागाहों को अपवाद ही मानना चाहिए। वरना
Posted on 05 Feb, 2010 01:11 PMपशुधन के मामले में हमारा देश सचमुच बहुत धनी है। मस्तचाल से चलने वाली भैंसों से लेकर हर क्षण छलांग भरने वाले हिरनों तक के जानवरों के आकार-प्रकार अनगिनत हैं और उनकी संख्या भी करोड़ो में है। कुल धरती के रकबे के हिसाब से दुनिया में चालीसवें नम्बर पर आने वाले हमारे देश में कुल दुनिया की 50 प्रतिशत से ज्यादा भैंसें, 15 प्रतिशत गाय-बैल, 15 प्रतिशत बकरी और 4 प्रतिशत भेड़ हैं। देश के जीवन में इन पशुओं की ब