कृष्ण गोपाल 'व्यास’

कृष्ण गोपाल 'व्यास’
भूजल रीचार्ज के मास्टर प्लान का नजरिया बदले तो बात बने
Posted on 11 Feb, 2017 04:22 PM


भारत सरकार के सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड ने देश के लगभग 941541 वर्ग किलोमीटर ऐसे इलाके की पहचान की है जो सामान्य बरसात के बावजूद, बाकी इलाकों की तरह, तीन मीटर तक नहीं भर पाता है। अर्थात उस इलाके में भूजल का स्तर तीन मीटर या उससे भी अधिक नीचे रहता है। यह स्थिति, उस इलाके के भूजल के संकट का मुख्य कारण है।

सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड का मानना है कि, बरसात के मौसम में भूजल रीचार्ज के कृत्रिम तरीके को अपनाकर उस इलाके की खाली जगह को भरा जा सकता है। इस खाली जगह को भरने के लिये सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड ने भारत के लिये सन 2013 में भूजल रीचार्ज का मास्टर प्लान तैयार किया था। उस प्लान को इस अपेक्षा के साथ सभी राज्यों को भेजा था कि वे अगले दस सालों में मास्टर प्लान में सुझाए सभी कामों को पूरा कर लगभग 855650 लाख घन मीटर बरसाती पानी को जमीन के नीचे उतारेंगे।

बढ़ता भूजल दोहन
नदी में प्रवाह होगा तभी तो सफाई होगी
Posted on 24 Jan, 2017 01:48 PM


वाटर सेक्टर की 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती जलस्रोतों की निरापद सफाई है। 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध से जलस्रोतों में इको-सिस्टम की बर्बादी, बढ़ती गन्दगी, बढ़ता अतिक्रमण और घटती क्षमता के पुख्ता संकेतों का मिलना शुरू हो गया था। वैज्ञानिकों ने उनका अध्ययन और इंजीनियरों ने बढ़ती गन्दगी को कम करने की दिशा में काम करना प्रारम्भ कर दिया था।

सबसे पहले, सन 1986 में गंगा को साफ करने का प्रयास प्रारम्भ हुआ। इस हेतु गंगा के किनारे बसे सबसे अधिक प्रदूषित 25 स्थानों पर सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए। अगस्त 2009 में यमुना, महानदी, गोमती और दामोदर नदी की सफाई को जोड़कर गंगा एक्शन प्लान का दूसरा चरण प्रारम्भ हुआ। पर बात नहीं बनी।

गंगा
प्राकृतिक जलचक्र के संकट को तलाश है समाधान की
Posted on 24 Nov, 2016 04:43 PM

कुदरत ने पृथ्वी पर 1300 करोड़ साल पहले प्राकृतिक जलचक्र की स्थापना की थी। तब से वह पृथ्वी पर संचालित है। कुदरत ने ही उसके लिये पानी की आवश्यक मात्रा का बन्दोबस्त किया है। कुदरत ने ही उसके स्वभाव को निर्मल और फितरत को घुमक्कड़ बनाया है। सभी लोगों की नजर में वह, कुदरत की नियामत और अनमोल प्राकृतिक संसाधन है। हवा के बाद, वह दूसरा प्राकृतिक संसाधन है जो जीवन की निरन्तरता के लिये जरूरी है। कुदरती
जल चक्र
पृथ्वी पर पानी
Posted on 17 Nov, 2016 04:13 PM

पृथ्वी पर पानी, प्राकृतिक जलस्रोतों तथा मनुष्यों द्वारा बनाई संरचनाओं में मिलता है। प्राकृतिक जलस्रोतों में समुद्र, बादल, वर्षा, बर्फ की चादरें एवं हिमनदियाँ, दलदली भूमि, नदी, झरनों सहित भूजल भण्डार और गर्म पानी के सोते प्रमुख हैं। मानव निर्मित जल संरचनाओं में तालाब, तडाग, पोखर, जलाशय, सरोवर, पुष्कर, पुष्करणी, कुआँ, बावड़ी, वापी, बाँध, बैराज, नलकूप और स्टॉपडैम इत्यादि उल्लेखनीय हैं।
पृथ्वी
पानी की उत्पत्ति
Posted on 01 Nov, 2016 11:48 AM


कितना सुपरिचित नाम है पानी। जन्म से ही हमारा उससे नाता है। पैदा होते ही बच्चे को दाई पानी से नहलाती है। बचपन में सभी ने पानी में खूब मस्ती की है। सभी लोग उसे रोज काम में लाते हैं। बरसात में वह बूँदों का उपहार देकर धरती को हरी चुनरी की ओढ़नी ओढ़ाता है। उसका शृंगार करता है।

नदी, तालाबों तथा झरनों को जीवन देता है। शीत ऋतु में हरी घास के बिछौने, पत्तियों की कोरों और फूलों की पंखुड़ियों पर ओस कणों के रूप में उतर कर मन को आनन्दित करता है। बाढ़ तथा सुनामी बनकर आफत ढाता है तो प्यास बुझा कर समस्त जीवधारियों के जीवन की रक्षा करता है। वह जीवन का आधार है। वह, धरती के बहुत बड़े हिस्से पर काबिज है। उसके विभिन्न रूपों (द्रव, ठोस तथा भाप) से सभी बखूबी परिचित हैं।

जल
नदी जल विवादों का स्थायित्व और निरापद भविष्य
Posted on 15 Oct, 2016 11:40 AM


नदी जल विवाद चाहे वे अन्तरराष्ट्रीय हों या अन्तरराज्यीय, उनके समाधानों की तो खूब चर्चा होती है पर समाधानों के स्थायित्व और उनकी निरापदता की चर्चा नहीं होती। वह (स्थायित्व एवं निरापदता) समाधान सम्बन्धी विचार गोष्ठियों में चर्चा का मुख्य बिन्दु भी नहीं होता। इस कमी या अनदेखी के कारण, सामान्य व्यक्ति के लिये नदी जल विवादों के समाधानों के टिकाऊपन और वास्तविक असर को समझ पाना बेहद कठिन होता है।

यह अनदेखी, मुख्य रूप से जल्दी-से-जल्दी फैसले पर पहुँचने की उत्कट इच्छा और पानी की लगातार बढ़ती माँग का परिणाम होती है। अब समय आ गया है जब हमें आवंटित पानी के उपयोग की टिकाऊ और निरापद रणनीति विकसित करने और उस पर अमल करने की आवश्यकता है।

नदी जल विवाद
कावेरी विवाद - मेरा पानी तेरा पानी
Posted on 13 Sep, 2016 05:02 PM


कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी के पानी के बँटबारे का मामला लगभग 124 साल पुराना मामला है। इस विवाद को मानसून की बेरुखी हवा देती है। सन 1995 और सन 2002 में मानसून ने धोखा दिया। मानसून की बेरुखी हालात खराब किये। सन 2003 से 2006 तक के सालों में तामिलनाडु और कर्नाटक में मानसून की बरसात सामान्य हुई। पानी का बँटवारा, मुद्दा नहीं बना।

जलाशयों की गाद हटाने में बाढ़ का उपयोग
Posted on 26 Jul, 2016 12:19 PM

बाँधों के विशाल जलाशयों की गाद को कुदरती तरीके से निकाला जा सकता है। यह चमत्कार भी नहीं है। यह सुनकर या पढ़कर भले ही अटपटा लगे पर यह सम्भव है। चीन ने इसे बिना मानवीय श्रम या धन खर्च किये, कर दिखाया है। यह किसी भी देश में हो सकता है। भारत में भी ऐसा हो सकता है।
अतिवृष्टि का चरम है बादल फटना (Cloudburst)
Posted on 05 Jul, 2016 02:00 PM


मौसम वैज्ञानिकों की नजर में बादल फटने की घटना अतिवृष्टि की चरम स्थिति और असामान्य घटना है। इस घटना की अवधि बहुत कम अर्थात कुछ ही मिनट होती है पर उस छोटी अवधि में पानी की बहुत बड़ी मात्रा, अचानक, बरस पड़ती है। मौसम वैज्ञानिकों की भाषा में यदि बारिश की गति एक घंटे में 100 मिलीमीटर हो तो उसे बादल फटना मानेंगे।

पानी की मात्रा का अनुमान इस उदाहरण से लगाया जा सकता है कि बादल फटने की घटना के दौरान यदि एक वर्ग किलोमीटर इलाके पर 25 मिलीमीटर पानी बरसे तो उस पानी का भार 25000 मीट्रिक टन होगा। यह मात्रा अचानक भयावह बाढ़ लाती है। रास्ते में पड़ने वाले अवरोधों को बहाकर ले जाती है। बादल फटने के साथ-साथ, कभी-कभी, बहुत कम समय के लिये ओला वृष्टि होती है या आँधी तूफान आते हैं।

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