कृष्ण गोपाल 'व्यास’

कृष्ण गोपाल 'व्यास’
आर्सेनिक समस्या : बढ़ते खतरे
Posted on 05 Dec, 2015 03:24 PM

सन् 1983 में स्कूल ऑफ ट्रापीकल मेडीसन, कोलकाता के चर्मरोग विशेषज्ञ डॉ. साहा ने मानवीय चमड़ी में होने वाले घावों के लिये आर्सेनिक को जिम्मेदार पाया था। इलाज के दौरान उन्हें लगा कि इस बीमारी के पीड़ित अधिकांश लोग, मुख्यतः पूर्वी बंगाल के रहने वाले वे लोग हैं जो नलकूपों का पानी उपयोग में ला रहे हैं।

इसके बाद, जादवपुर विश्वविद्यालय के पर्यावरणविद दीपंकर चक्रवर्ती ने प्रमाणित किया कि आर्सेनिक का स्रोत वे नलकूप हैं जो पिछले सालों में पेयजल और सिंचाई के लिये बड़ी मात्रा में लगाए गए हैं।

ग़ौरतलब है कि पूरे बंगाल में परम्परागत रूप से कुओं और पोखरों के पानी का उपयोग होता था। इन स्रोतों का पानी पूरी तरह निरापद था। कालान्तर में इन जलस्रोतों में प्रदूषण पनपा और वे अशुद्ध पानी से होने वाली बीमारियों के केन्द्र बनने लगे तब लोगों को अशुद्ध पानी से बचाने के लिये 1970 से 1980 में नलकूपों का विकल्प अपनाया गया।
भोपाल गैस त्रासदी : कुछ सबक
Posted on 29 Nov, 2015 03:47 PM

भोपाल गैस कांड पर विशेष


2 और 3 दिसम्बर 1984 की दरम्यानी रात को मैं उज्जैन में और मेरा परिवार भोपाल में था। तीन तारीख को सबेरे स्थानीय अखबारों से पता चला कि भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने में गैस रिसी है और उसके असर से भोपाल में अफरा-तफरी का माहौल है। उस समय घटना की गम्भीरता का अहसास नहीं हुआ।
फ्लोराइड समस्या और समाज
Posted on 24 Nov, 2015 11:25 AM


पानी में फ्लोराइड की समस्या विश्वव्यापी है। दुनिया के 25 देश, जिसमें विकसित देश भी सम्मिलित हैं, के भूजल में फ्लोराइड पाया जाता है। भारत, भी इस समस्या से अछूता नहीं है। उसके 20 राज्यों के भूजल में फ्लोराइड पाया जाता है। भारत में अधिकांश पेयजल योजनाओं में भूजल का उपयोग होता है इसलिये फ्लोराइड युक्त पानी पीने के कारण लोगों की सेहत पर फ्लोराइड के कारण होने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।

इसके अलावा, हमारे देश में गर्मी के दिनों में पानी की खपत बढ़ जाती है। खपत बढ़ने के कारण अधिक मात्रा में फ्लोराइड मानव शरीर में जाता है और अपना असर दिखाता है। अनुमान है कि पूरी दुनिया में फ्लोराइड जनित बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या लगभग 20 करोड़ है।

नदी, समाज और सरकार
Posted on 15 Nov, 2015 03:03 PM


इस कहानी के तीन पात्र हैं - नदी, समाज और सरकार। उनके कृत्य एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। हम, सबसे पहले प्रत्येक पात्र के बारे में मोटी-मोटी बातें जानने का प्रयास करेंगे। जानकारी के आधार पर समझ बनाएँगे। उसके बाद नदी, समाज और सरकार की जिम्मेदारियों पर चर्चा करेंगे। चर्चा का केन्द्र बिन्दु होगा प्रत्येक पात्र का हित। बदलते समय के साथ, समाज और सरकार के नजरिए में आये बदलावों को रेखांकित किया जाएगा।

कहानी का अन्तिम अध्याय, पात्रों के भविष्यफल पर अपनी राय पेश करेगा। कहानी का समापन, नदी की जिम्मेदारियों को बहाल करने के संकल्प के अनुरोध पर खत्म होगा। आइए सबसे पहले नदी को समझें-

नदी
बाढ़ नियंत्रण और कुदरत
Posted on 05 Nov, 2015 11:46 AM


बाढ़, कम समय में हुई अतिवृष्टि का प्रतिफल है। कई बार गैर-प्राकृतिक कारणों से भी बाढ़ें आती हैं। लाखों करोड़ों सालों से दुनिया भर की नदियों में बाढ़ें आ रही हैं पर जबसे उसके असर से मनुष्य को परेशानी होने लगी है, बाढ़ नियंत्रण पर चर्चा और उसके असर को कम करने के लिये प्रयास होने लगे हैं।

river
मूर्ति विसर्जन और पर्यावरणीय सुरक्षा के प्रयास
Posted on 19 Oct, 2015 10:33 AM

नवरात्र विशेष


भारत जैसे संस्कारित देश में लगभग सभी प्रमुख धर्मों को मानने वाले लोग निवास करते हैं। अपने-अपने धर्म के अनुसार उनके तीज-त्योहार, उत्सव, पर्व, कर्मकाण्ड और आस्थाएँ हैं। धार्मिक विविधता के कारण देश भर में लगभग साल भर धार्मिक अनुष्ठान एवं कार्यक्रम चलते रहते हैं।
Statue immersion
अन्तरराज्यीय जल विवाद
Posted on 14 Oct, 2015 01:17 PM

कन्फ्लिक्ट रिजोल्यूशन दिवस, 15 अक्टूबर 2015 पर विशेष


.भारत नदियों का देश है। गंगा, यमुना, सिन्धु, झेलम, ब्यास, ब्रह्मपुत्र, चम्बल, केन, बेतवा, नर्मदा, महानदी, सोन, ताप्ती, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा जैसी अनेक नदियाँ इसकी पहचान हैं। उक्त सूची में दर्ज कुछ नदियाँ अन्तरराज्यीय हैं तो कुछ अपने ही प्रदेश के आँगन में अपनी यात्रा पूरी कर लेती हैं।

कुछ नदियों में पानी की विपुल मात्रा प्रवाहित होती है तो कुछ कम पानी पर सन्तोष करती हैं। सिन्धु और ब्रह्मपुत्र का अस्तित्व भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी है। उनके पानी के बँटवारे को लेकर अन्तरराष्ट्रीय समझौते तथा कतिपय समस्याएँ हैं।

भारत की जलवायु मानसूनी है इसलिये यहाँ बमुश्किल चार महीने ही पानी बरसता है। ऐसे देश में जहाँ लगभग आठ माह सूखे हों उस देश के राज्यों के बीच अन्तरराज्यीय नदियों के पानी के बँटवारे का मामला, अपने आप ही प्रभावित आबादी की पानी की मूलभूत ज़रूरतों, खेती और आजीविका से जुड़ा मामला बन जाता है।

कावेरी नदी
बाढ़ और सूखा
Posted on 11 Oct, 2015 03:59 PM

इंटरनेशनल नेचुरल डिजास्टर रिडक्शन दिवस, 13 अक्टूबर 2015 पर विशेष


. बरसात, कुदरत की नियामत है। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से उठे बादल, हर साल, भारत की भूमि को पानी की बूँदों की सौगात देते हैं। कहीं कम तो कहीं अधिक पर बूँदों के अवदान का सिलसिला तीन से चार माह चलता है। शीत ऋतु में, भूमध्य सागर से पूरब की ओर चली हवाएँ जब लम्बी दूरी तय कर उत्तर भारत में प्रवेश करती हैं तो हिमालय की पर्वतमाला उन्हें रोककर बरसने के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित करती हैं।

हिमालय की इसी निर्णायक भूमिका के कारण, रबी के मौसम में उत्तर भारत में बरसात होती है। बरसात के आँकड़ों को देखने से पता चलता है कि भारत के पूर्वी भाग में अधिक तो पश्चिमी भाग में कम वर्षा होती है। राजस्थान के थार मरुस्थल में उसकी मात्रा सबसे कम है।

सूखा
नदी की कहानी : नदी की जुबानी
Posted on 15 Sep, 2015 11:43 AM

विश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष

River
नदी पुनर्जीवन की भूजल विज्ञान अवधारणा
Posted on 22 Aug, 2015 01:40 PM

आदिकाल से कलकल करती सदानीरा नदियाँ स्वच्छ जल का स्रोत रही हैं। समाज ने उनके जल का विविध उपयोग कर अपनी प्यास बुझाई है। गरीबों ने आजीविका कमाई है। किसानों ने खेती की जरूरतें पूरी की हैं। वह, समाज की निस्तार जरूरतों को पूरा करने वाला भरोसेमन्द साधन भी रहा है। यह पानी नदियों में रहने या पलने वाले जलचरों और जलीय वनस्पतियों की भी जरूरतों को पूरा करता है। नदीतंत्र में बहने वाला पानी महत्त्वपूर्ण सं
River rejuvenation
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