बल्लभस्वामी

बल्लभस्वामी
कम्पोस्ट परिभाषा (Compost Definition in Hindi)
Posted on 26 May, 2010 11:33 AM

कम्पोस्ट परिभाषा (Compost Definition in Hindi) 1. कम्पोस्ट - (पुं.) (वि.) - (अं.) कृषि वि. खेती में प्रयोग की जाने वाली वह खाद जिसमें प्रमुख रूप से कार्बन और खनिज पदार्थ रहते हैं तथा जो कार्बनिक पदार्थों के विघटन से तैयार की जाती है। टि. प्राय: सड़े-गले पौधों, पशुओं के मल इत्यादि को मिटटी में कुछ समय तक दबाकर यह खाद प्राप्‍त की जाती है। compost

खाद बनने के लिए गोबर आदि को सड़ाना पड़ता है, ऐसी भाषा हम बोलते हैं और ‘सड़ाना’ शब्द के साथ कुछ कमी का, बिगाड़ का भाव है। असल में उसे हम ‘सड़ाना’ नहीं, ‘पकाना’ कहेंगे, ‘गलाना’ कहेंगे जैसे कि अनाज पकाकर खाया जाता है।

कम्पोस्ट परिभाषा (Compost Definition in Hindi) 2. मैले से माने गये अनर्थ का मूल कारण यह है कि उसे चीन में कच्चा या अधपका ही उपयोग में लाया जाता होगा। यह हमने ऊपर देखा। किसी चीज का खाद के तौर पर उपयोग करने के पहले वह पूरी गली हुई याने पकी होनी चाहिए, यह बात आदमी प्राचीन काल से जानता आया है। गोबर के गलने के बाद ही खाद के तौर पर किसान उसका उपयोग करता है। गोबर आदि को ताजा देने के बजाय सड़ा-गलाकर देना अधिक उपयोगी है। यह बात जरा विचित्र तो लगती है क्योंकि और चीजें तो ताजी अच्छी होती हैं, जैसा कि हम अनुभव करते हैं, फिर खाद के संबंध में यह उल्टी बात क्यों? इसकी एक वजह तो यह है कि खाद बनने के लिए गोबर

मल-व्यवस्था (भाग 2)
Posted on 28 May, 2010 01:04 PM

गोपुरी-पाखाना

मल-व्यवस्था
Posted on 27 May, 2010 07:08 PM
सेंद्रिय खाद-द्रव्य मिलने के आदमी के बस के जरिये हैं- गोबर खाद और सोन-खाद। उनका महत्व और गोबर-खाद बनाने का तरीका-कम्पोस्ट-देखने के बाद, अब सोन-खाद के तरीकों को देखना ठीक होगा। मल-सफाई के लिए हमें जो तरीका अपनाना है, वह ऐसा हो, जिसे कोई भी बिना घृणा के और कम-से-कम मेहनत में कर सके। साथ ही उसकी खाद भी हो। मैले की खाद बनने के लिए और गन्दगी न फैलने के लिए मैले को तुरन्त ही ढँक देना जरूरी होता है। घर म
कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया
Posted on 26 May, 2010 04:23 PM

कम्पोस्ट आमतौर से खाई के अंदर ही बनाना चाहिए, जिससे खाद में नमी बनी रहती है और नाइट्रोजन भी हवा में उड़ जाने से बचता है। खाई इतनी बड़ी होनी चाहिए, जिससे प्रतिदिन के कूड़े-कबाड़े, गोबर आदि से एक खाई लगभग तीन मास में भर जाय। यह नाप मुख्यतः ढोरों की संख्या पर अवलम्बित होगा। नीचे के तख्ते से इसका कुछ अन्दाज आयेगाः
 

खाद की दृष्टि से मल-मूत्र का महत्व
Posted on 25 May, 2010 04:02 PM
प्राकृतिक जरियों के सिवा सेन्द्रिय द्रव्य मिलने के सोते हैं-प्रकृति से पैदा होनेवाली चीजों का अंश और उन चीजों को खाकर जानवर और आदमी जो कचरा बाहर डालते हैं वह, याने खली, मल-मूत्र आदि। भिन्न-भिन्न खली में खाद द्रव्य नीचे की मात्रा में होते हैं:
भूमि का खाद्य ‘खाद’ (भाग 2)
Posted on 25 May, 2010 09:56 AM
भिन्न-भिन्न फसलें नाइट्रोजन आदि द्रव्य कितनी मात्रा में जमीन में से लेती हैं, उसके प्रयोग हमारे देश में कहीं हुए हों, तो मुझे मालूम नहीं है। भिन्न-भिन्न जमीन, वातावरण, काल वगैरह का भी इसमें असर होता होगा। फिर भी जानकारी के लिहाज से राथमस्टेड में किए गए प्रयोगों पर से कुछ आँकड़े दिये जाते हैं।

(फसल एक एकड़ में और वजन पौंडों में)

भूमि का खाद्य ‘खाद’
Posted on 25 May, 2010 09:12 AM
सफाई की आर्थिक बाजू है, मैले आदि का खाद के तौर पर उपयोग करना। फसलों को याने जमीन को खाद की कितनी जरूरत है, यह सभी जानते हैं। खाद, खातर (गुजराती), खत (मराठी) आदि शब्द शायद ‘खाद्य’ शब्द से बने हैं। याने खाद, भूमाता का खाद्य-अन्न-है। जिस तरह गोमाता घास आदि खाद्य खाकर हमें मधुर दूध देती है, वैसे ही यह दूसरी गो याने पृथ्वी-माता खाद-रूपी खाद्य खाकर फसलों के रूप में हमें मधुर रस देती है।सभ्यता और सम्पत्ति, दोनों को कायम रखने वाला सफाई का जो तरीका हमें चाहिए, वह हमने देखा। पुरानी भाषा में धर्म और अर्थ, दोनों देने वाला तरीका हमें चाहिए। गांधीजी ने कहा है कि जो धर्म और अर्थ एक-दूसरे की कसौटी पर खरे नहीं उतरते, वे टिकने वाले नहीं है। सफाई की आर्थिक बाजू है, मैले आदि का खाद के तौर पर उपयोग करना। फसलों को याने जमीन को खाद की कितनी जरूरत है, यह सभी जानते हैं। खाद, खातर (गुजराती), खत (मराठी) आदि शब्द शायद ‘खाद्य’ शब्द से बने हैं। याने खाद, भूमाता का खाद्य-अन्न-है। जिस तरह गोमाता घास आदि खाद्य खाकर हमें मधुर दूध देती है, वैसे ही यह दूसरी गो याने पृथ्वी-माता खाद-रूपी खाद्य खाकर फसलों के रूप में हमें मधुर रस देती है। खाद का महत्व आदमी को खेती के आरम्भ-काल से ही अवश्य मालूम हुआ होगा।
मल-मूत्र सफाई
Posted on 22 May, 2010 04:01 PM

प्रभाते मलदर्शनम्


मल-मूत्र की सफाई कई दृष्टियों से बहुत जरूरी है। काँलरा-टाइफॉइड आदि भयानक रोगों के जंतुओं का फैलाव आदमी के मैले द्वारा होता है। दूसरे, हजारों बरसों से जोती जानेवाली जमीन को सजीव खाद की जरूरत है। तीसरे, इस सफाई की ओर हमारी उपेक्षा ही नहीं, उसके प्रति हमारे मन में घृणा भी है। इसलिए इस सफाई को हमने अपनाया, इसके प्रति यदि घृणा की भावना मिट गयी तो अन्य सफाई करने की प्रवृत्ति सहज ही उत्पन्न हो जायेगी। सबसे महत्व की बात यह है कि इसमें क्रांति के बीज छिपे हुए हैं। मल-सफाई के अत्यन्त उपयोगी काम को हमने हलका समझा और इस कार्य को करने वाले मेहतरों को (मेहतर शब्द क्या महत्तर-अधिक बड़ा-से हुआ होगा?) हलका और अछूत मानकर हमने समाज में ऊँच-नीच का, विषमता का एक ऐसा सिलसिला जारी कर दिया है, जिसने सारे समाज-शरीर को खोखला
सफाई की प्रक्रिया
Posted on 22 May, 2010 11:33 AM
जिस प्रकार किसी उद्योग में प्रक्रियाओं के क्रमों को निर्धारित करना आवश्यक है, उसी प्रकार सफाई के कार्यक्रमों को कई हिस्सों में विभाजित करना आवश्यक है। इसका क्रम निम्नांकित होगाः

1. औजार आदि साधनों का चुनाव तथा उनकी यथायोग्य व्यवस्था करना,
2. सफाई के काम की योजना बनाना,
3. काम का आसन
4. काम से निकले कच्चे माल को एकत्र करना,
सफाई की रूपरेखा
Posted on 17 May, 2010 01:19 PM

हमें सफाई की रूपरेखा के साथ उसकी दृष्टि और तरीके को भी थोड़ा समझ लेना चाहिए। अंग्रेजी में कहावत है कि ‘रोग का इलाज करने की अपेक्षा रोग न होने देना कहीं अच्छा है।’ वास्तव में सफाई का असली मतलब तो है गन्दगी न होने देना, न कि गन्दा करके उसे साफ करना।

आजकल सफाई के सम्बंध में एक विचित्र धारणा हो गयी है। जितना स्थान लोगों के आँखों के सामने आता है, उतना ही स्थान साफ रखा जाय, यह बात मनुष्य की आदत में दाखिल हो गयी है। यह धारणा इतनी संस्कारभूत हो गयी है कि हमारे घर के पीछे, असबाब के नीचे, छप्पर और मकानों के कोने अर्थात् ऐसी जगहें, जहाँ किसी की नजर एकाएक नहीं जाती, गन्दगी से हमेशा भरपूर रहती हैं। जहाँ की सफाई में थोड़ी मेहनत की ही जरूरत होती है, सामान आदि हटाने की जरूरत होती है, वहाँ भी आदमी सफाई को
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