बल्लभस्वामी

बल्लभस्वामी
सफाई का महत्व
Posted on 17 May, 2010 12:46 PM

उद्योग की प्रक्रियाओं का परिणाम है, आर्थिक उत्पादन। जिसे कूड़ा-करकट समझकर फेंक दिया जाता है, उसकी यदि व्यवस्था वैज्ञानिक ढंग से की जाय, तो आसानी से उसे उत्पादन का जरिया बना सकते हैं। साधारणतः गन्दगी दूर करने का अर्थ कूड़े-करकट को एक स्थान से दूसरे स्थान पर हटा देना समझा जाता है। सचमुच इसे सफाई नहीं कहते। इसे तो गन्दगी का स्थानान्तरण ही कहा जा सकता है।

प्रकृति का मौलिक गुण


गांधी जी सभी रचनात्मक कामों में सफाई को महत्वपूर्ण स्थान देते रहे हैं। वस्तुतः सफाई प्रकृति का एक मौलिक गुण है। प्रकृति आप-से-आप गन्दगी नष्ट कर देती है। प्रत्येक प्राणी को सफाई का बोध रहता है। कहते हैं कि बिल्ली भी बैठते समय पूँछ से जमीन साफ कर लेती है। सृष्टि के सभी प्राणियों में मनुष्य सर्वोच्च प्राणी समझा जाता है। अतः मनुष्य में सफाई का स्तर सबसे ऊँचा होना चाहिए। यही कारण है कि वह ‘साफ-सुथरे’ शब्द का इस्तेमाल जिंदगी के हर पहलू में किया करता है। प्रत्येक मनुष्य, फिर चाहे किसी पेशे का हो, किसी-न-किसी रूप में अपने घर-द्वार की सफाई किया करता है। घर के बाहर, समाज में अथवा दूसरों से मिलने के लिए साफ कपड़े पहनकर जाने के पीछे सफाई
सफाईः विज्ञान और कला
Posted on 15 May, 2010 06:09 PM

‘मल-मूत्र सफाई’ नाम से श्री बल्लभस्वामी की एक पुस्तक 1949 में प्रकाशित हुई थी। श्री धीरेन्द्र मजूमदार की किताब ‘सफाई-विज्ञान’, श्री कृष्णदास शाह के अनुभव और ‘मल-मूत्र सफाई’ तीनों का इस्तेमाल करके श्री बल्लभस्वामी ने ‘सफाईः विज्ञान और कला’ नाम से यह किताब लिखी जो 1957 में प्रकाशित हुई। भंगी-मुक्ति के गांधीजी के सेनानी श्री अप्पासाहब पटवर्धन के लेखन का भी उपयोग इस किताब में है।
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