हरियाणा में आदि अदृश्य नदी सरस्वती को फिर से धरती पर लाने की कवायद शुरू कर दी गई है। इसके लिए राज्य के सिंचाई विभाग ने सरस्वती की धारा को दादूपुर नलवी नहर का पानी छोड़ने की योजना बनाई है। देश के अन्य राज्य में भी इस पर काम चल रहा है। अगर यह महती योजना सिरे चढ़ जाती है तो इससे हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के तकरीबन 20 करोड़ लोगों की काया पलट जाएगी। इस नदी से जहां राज्यों के लोगों को पीने का पानी उपलब्ध हो सकेगा, वहीं सिंचाई जल को तरस रहे खेत भी लहलहा उठेंगे।काबिले-गौर है कि सरस्वती नदी पर चल रहे शोध में सैटेलाइट से मिले चित्रों से पता चला है कि अब भी सरस्वती नदी सुरंग के रूप में मौजूद है। बताया जाता है कि हिमाचल श्रृंगों से बहने वाली यह नदी करीब 1600 किलोमीटर हरी-की दून से होती हुई जगाधरी, कालिबंगा और लोथल मार्ग से सोमनाथ के समीप समुद्र में मिलती है। सरस्वती शोध संस्थान के अध्यक्ष दर्शनलाल जैन के मुताबिक सैटेलाइट चित्रों से प्राचीन सरस्वती नदी के जलप्रवाह की जानकारी मिलती है। साथ ही यह भी पता चलता है कि यह सिंधु नदी से भी ज्यादा बड़ी और तीव्रगामी थी। नदी का प्रवाह शिवालिक पर्वतमालाओं से जगाधरी के समीप आदिबद्री से शुरू होता है, जिसका मूल स्त्रोत हिमालय में है। नदी तटों के साथ इसकी ईसा पूर्व 3300 से लेकर ईसा पूर्व 1500 तक 1200 से भी ज्यादा पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं।
गौरतलब है कि हरियाणा के सिंचाई विभाग ने मुर्तजापुर के पास सरस्वती नदी की बुर्जी आरडी 36284 से 94000 तक पक्का करके इसमें दादूपुर नलवी नहर का पानी प्रवाहित करने की योजना बनाई है। राज्य के सिंचाई मंत्री कैप्टन अजय यादव का कहना है कि सरस्वती नदी में नहर का पानी आ जाने के बाद इससे रजबाहे निकाले जाएंगे, ताकि लोगों को पानी मिल सके। सैटेलाइट से मिले सरस्वती के चित्र के आधार पर काम शुरू किया जाएगा।
काबिले-गौर है कि सरस्वती नदी पर चल रहे शोध में सैटेलाइट से मिले चित्रों से पता चला है कि अब भी सरस्वती नदी सुरंग के रूप में मौजूद है। बताया जाता है कि हिमाचल श्रृंगों से बहने वाली यह नदी करीब 1600 किलोमीटर हरी-की दून से होती हुई जगाधरी, कालिबंगा और लोथल मार्ग से सोमनाथ के समीप समुद्र में मिलती है। सरस्वती शोध संस्थान के अध्यक्ष दर्शनलाल जैन के मुताबिक सैटेलाइट चित्रों से प्राचीन सरस्वती नदी के जलप्रवाह की जानकारी मिलती है। साथ ही यह भी पता चलता है कि यह सिंधु नदी से भी ज्यादा बड़ी और तीव्रगामी थी। नदी का प्रवाह शिवालिक पर्वतमालाओं से जगाधरी के समीप आदिबद्री से शुरू होता है, जिसका मूल स्त्रोत हिमालय में है। नदी तटों के साथ इसकी ईसा पूर्व 3300 से लेकर ईसा पूर्व 1500 तक 1200 से भी ज्यादा पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं।
योजना की कामयाबी के लिए कुछ विदेशी भू-विज्ञानी और नासा भी योगदान दे रहे हैं। इस अनुसंधान में सरस्वती शोध संस्थान, रिमोट सैंसिंग एजेंसी, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, सेंट्रल वाटर कमीशन, स्टेट वाटर रिसोर्सेज, सेंट्रल एरिड जोन रिसर्च इंस्टीटयूट, हरियाणा सिंचाई विभाग, अखिल भारतीय इतिहास संगठन योजना और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (अहमदाबाद ) आदि काम कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने 2000 में सरस्वती नदी को प्रवाहित करने के लिए तीन परियोजनाओं को चालू करने का काम अपने हाथ में लिया था, जो राज्य सरकारों की मदद से पूरा किया जाना है। चेन्नई स्थित सरस्वती सिंधु शोध संस्थान के अधिकारियों के मुताबिक इस दिशा में पहली परियोजना हरियाणा के यमुनानगर जिले में सरस्वती के उद्गम माने जाने वाले आदिबद्री से पिहोवा तक उस प्राचीन धारा के मार्ग की खोज है। दूसरी परियोजना का संबंध भाखड़ा की मुख्य नहर के जल को पिहोवा तक पहुंचाना है। इसके लिए कैलाश शिखर पर स्थित मान सरोवर से आने वाली सतलुज जलधारा का इस्तेमाल किया जाएगा। सर्वे ऑफ इंडिया के मानचित्रों में आदिबद्री से पिहोवा तक के नदी मार्ग को सरस्वती मार्ग दर्शाया गया है। तीसरी परियोजना सरस्वती नदी के प्राचीन जलमार्ग को खोलने और भू-जल स्त्रोतों का पता लगाना है। इसके लिए मुंबई के भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान और राजस्थान के जोधपुर के रिमोट सैंसिंग एप्लीकेशन केंद्र के विज्ञानी काम में जुटे हैं। इसके अलावा सरस्वती घाटी में पश्चिम गढ़वाल में स्थित हर-की दून ग्लेशियर से सोमनाथ तक प्रवाहित होने वाली प्राचीन जलधारा मार्ग की खोज पर भी जोर दिया जा रहा है।
तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी ) राजस्थान के थार रेगिस्तान में सरस्वती नदी की खोज का काम कर रहा है। निगम के अधिकारियों का कहना है कि सरस्वती की खोज के लिए पहले भी कई संस्थाओं ने काम किया है और कई स्थानों पर खुदाई भी की गई है, लेकिन 250 मीटर से ज्यादा गहरी खुदाई नहीं की गई थी। निगम जलमार्ग की खोज के लिए कम से कम एक हजार मीटर तक खुदाई करने पर जोर दे रहा है। दुनिया के अन्य हिस्सों में रेगिस्तान में एक हजार मीटर से भी ज्यादा नीचे स्वच्छ जल के स्त्रोत मिले हैं।
सरस्वती नदी को फिर से प्रवाहित किए जाने की तमाम कोशिशों के बावजूद इसके शोध में जुटी संस्थाएं सरकार से काफी खफा हैं। सरस्वती शोध संस्थान के अध्यक्ष दर्शनलाल जैन का कहना है कि आदिबद्री और कलायत में सरस्वती नदी का पानी मौजूद होने के बावजूद इसमें नहर का पानी प्रवाहित करना दुख की बात है। सरकार को चाहिए सरस्वतीकि कलायत में फूट रही सरस्वती की धाराओं को जमीन के ऊपर लाया जाए। महज नदी के एक हिस्से को पक्का करने की बजाय आदिबद्री से लेकर सिरसा तक नदी को पक्का कर पानी प्रवाहित किया जाए। साथ ही कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड की तर्ज पर सरस्वती विकास प्राधिकरण का गठन किया जाए। उनका यह भी कहना है कि अगर सरकार चाहे तो तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम अपने खर्च पर हरियाणा में सरस्वती नदी खुदाई करने को तैयार है।
गौरतलब है कि हरियाणा के सिंचाई विभाग ने मुर्तजापुर के पास सरस्वती नदी की बुर्जी आरडी 36284 से 94000 तक पक्का करके इसमें दादूपुर नलवी नहर का पानी प्रवाहित करने की योजना बनाई है। राज्य के सिंचाई मंत्री कैप्टन अजय यादव का कहना है कि सरस्वती नदी में नहर का पानी आ जाने के बाद इससे रजबाहे निकाले जाएंगे, ताकि लोगों को पानी मिल सके। सैटेलाइट से मिले सरस्वती के चित्र के आधार पर काम शुरू किया जाएगा।
काबिले-गौर है कि सरस्वती नदी पर चल रहे शोध में सैटेलाइट से मिले चित्रों से पता चला है कि अब भी सरस्वती नदी सुरंग के रूप में मौजूद है। बताया जाता है कि हिमाचल श्रृंगों से बहने वाली यह नदी करीब 1600 किलोमीटर हरी-की दून से होती हुई जगाधरी, कालिबंगा और लोथल मार्ग से सोमनाथ के समीप समुद्र में मिलती है। सरस्वती शोध संस्थान के अध्यक्ष दर्शनलाल जैन के मुताबिक सैटेलाइट चित्रों से प्राचीन सरस्वती नदी के जलप्रवाह की जानकारी मिलती है। साथ ही यह भी पता चलता है कि यह सिंधु नदी से भी ज्यादा बड़ी और तीव्रगामी थी। नदी का प्रवाह शिवालिक पर्वतमालाओं से जगाधरी के समीप आदिबद्री से शुरू होता है, जिसका मूल स्त्रोत हिमालय में है। नदी तटों के साथ इसकी ईसा पूर्व 3300 से लेकर ईसा पूर्व 1500 तक 1200 से भी ज्यादा पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं।
योजना की कामयाबी के लिए कुछ विदेशी भू-विज्ञानी और नासा भी योगदान दे रहे हैं। इस अनुसंधान में सरस्वती शोध संस्थान, रिमोट सैंसिंग एजेंसी, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, सेंट्रल वाटर कमीशन, स्टेट वाटर रिसोर्सेज, सेंट्रल एरिड जोन रिसर्च इंस्टीटयूट, हरियाणा सिंचाई विभाग, अखिल भारतीय इतिहास संगठन योजना और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (अहमदाबाद ) आदि काम कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने 2000 में सरस्वती नदी को प्रवाहित करने के लिए तीन परियोजनाओं को चालू करने का काम अपने हाथ में लिया था, जो राज्य सरकारों की मदद से पूरा किया जाना है। चेन्नई स्थित सरस्वती सिंधु शोध संस्थान के अधिकारियों के मुताबिक इस दिशा में पहली परियोजना हरियाणा के यमुनानगर जिले में सरस्वती के उद्गम माने जाने वाले आदिबद्री से पिहोवा तक उस प्राचीन धारा के मार्ग की खोज है। दूसरी परियोजना का संबंध भाखड़ा की मुख्य नहर के जल को पिहोवा तक पहुंचाना है। इसके लिए कैलाश शिखर पर स्थित मान सरोवर से आने वाली सतलुज जलधारा का इस्तेमाल किया जाएगा। सर्वे ऑफ इंडिया के मानचित्रों में आदिबद्री से पिहोवा तक के नदी मार्ग को सरस्वती मार्ग दर्शाया गया है। तीसरी परियोजना सरस्वती नदी के प्राचीन जलमार्ग को खोलने और भू-जल स्त्रोतों का पता लगाना है। इसके लिए मुंबई के भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान और राजस्थान के जोधपुर के रिमोट सैंसिंग एप्लीकेशन केंद्र के विज्ञानी काम में जुटे हैं। इसके अलावा सरस्वती घाटी में पश्चिम गढ़वाल में स्थित हर-की दून ग्लेशियर से सोमनाथ तक प्रवाहित होने वाली प्राचीन जलधारा मार्ग की खोज पर भी जोर दिया जा रहा है।
तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी ) राजस्थान के थार रेगिस्तान में सरस्वती नदी की खोज का काम कर रहा है। निगम के अधिकारियों का कहना है कि सरस्वती की खोज के लिए पहले भी कई संस्थाओं ने काम किया है और कई स्थानों पर खुदाई भी की गई है, लेकिन 250 मीटर से ज्यादा गहरी खुदाई नहीं की गई थी। निगम जलमार्ग की खोज के लिए कम से कम एक हजार मीटर तक खुदाई करने पर जोर दे रहा है। दुनिया के अन्य हिस्सों में रेगिस्तान में एक हजार मीटर से भी ज्यादा नीचे स्वच्छ जल के स्त्रोत मिले हैं।
सरस्वती नदी को फिर से प्रवाहित किए जाने की तमाम कोशिशों के बावजूद इसके शोध में जुटी संस्थाएं सरकार से काफी खफा हैं। सरस्वती शोध संस्थान के अध्यक्ष दर्शनलाल जैन का कहना है कि आदिबद्री और कलायत में सरस्वती नदी का पानी मौजूद होने के बावजूद इसमें नहर का पानी प्रवाहित करना दुख की बात है। सरकार को चाहिए सरस्वतीकि कलायत में फूट रही सरस्वती की धाराओं को जमीन के ऊपर लाया जाए। महज नदी के एक हिस्से को पक्का करने की बजाय आदिबद्री से लेकर सिरसा तक नदी को पक्का कर पानी प्रवाहित किया जाए। साथ ही कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड की तर्ज पर सरस्वती विकास प्राधिकरण का गठन किया जाए। उनका यह भी कहना है कि अगर सरकार चाहे तो तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम अपने खर्च पर हरियाणा में सरस्वती नदी खुदाई करने को तैयार है।
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