ग्राम बाकोड़ी में हैंडपंप से निकले पानी की किसी ने जांच नहीं की और भोलेभाले ग़रीब अनपढ़ लोग सरकार पर भरोसा करके सरकारी हैंडपंप का पानी पीते रहे। अब दो वर्ष बाद गांव वालों को सरकारी हैंडपंप से निकलने वाले पानी के दुष्प्रभाव का पता चला।मध्य प्रदेश। केंद्रीय उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री कमलनाथ के संसदीय चुनाव क्षेत्र छिंदवाड़ा ज़िले में जुन्नारदेव विधानसभा क्षेत्र के ग्राम बाकोड़ी में सरकारी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने पांच साल पहले गांव वालों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए कई हैंडपंप लगवाए थे, लेकिन इनसे फ्लोराइड युक्त पानी निकलने लगा। तब भी सरकारी अ़फसरों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के सूत्र बताते हैं कि नियम है कि धरती से जब पानी निकाला जाता है, तब उसकी जांच की जाती है और देखा जाता है कि पानी पीने योग्य है या नहीं। वहीं शायद ग्राम बाकोड़ी में हैंडपंप से निकले पानी की किसी ने जांच नहीं की और भोलेभाले ग़रीब अनपढ़ लोग सरकार पर भरोसा करके सरकारी हैंडपंप का पानी पीते रहे। अब दो वर्ष बाद गांव वालों को सरकारी हैंडपंप से निकलने वाले पानी के दुष्प्रभाव का पता चला, क्योंकि गांव में कई बच्चे और किशोर विकलांगता के शिकार हो चुके थे। दो वर्षों से लगातार इस पानी का उपयोग करने वालों के शरीर पर पानी का घातक प्रभाव आसानी से देखा जा सकता है। बच्चों के दांत ख़राब हो गए हैं और कई शारीरिक रूप से विकलांग हो गए। इन बच्चों के शरीर में एक तरह की ख़तरनाक बीमारी फैल गई, जिसकी वज़ह से गांव में आधे से अधिक बच्चों के हाथ-पैर में सूजन और टेढ़ापन आ गया है।
2 वर्ष बाद लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों ने आनन-फानन में वहां के हैंडपंप को बंद करवा दिया। ग्रामीण सुकटो ने बताया कि बच्चे जन्म के समय स्वस्थ थे, मगर फ्लोराईड युक्त पानी के उपयोग से इन बच्चों में यह बीमारी उत्पन्न होने लगी है। कुछ समय पहले स्वास्थ्य विभाग द्वारा गांव में शिविर लगाया गया था। केवल खानापूर्ति के लिए कुछ दवाईयां बच्चों को दी गई। बच्चों को इलाज के लिए ज़िला चिकित्सालय में भी बुलाया गया, लेकिन रास्ता सही न होने की वज़ह से शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों के पालक, ज़िला चिकित्सालय नहीं पहुंच सके। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आज़ादी के 65 वर्ष पूर्ण होने के बावजूद ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं।
मध्य प्रदेश में कुल सात हज़ार से ज़्यादा बस्तियों में पानी पीने योग्य नहीं है। कहीं पेयजल में फ्लोराइड है, तो कहीं नाइट्रेट की मात्रा ज़्यादा, तो कहीं-कहीं पानी ज़रूरत से ज़्यादा खारा है। कई ज़िलों में पेयजल स्त्रोतों में लौह तत्व और सीसा (लेड) भी घुलमिल गया है। इस कारण पानी पीने योग्य नहीं बचा है। सरकारी सूत्रों के अनुसार राज्य में कुल 1 लाख 27 हज़ार बस्तियों में से 26 ज़िलों की सात हज़ार 64 बसाहाटों के 11569 जल स्त्रोतों में फ्लोराइट की मात्रा ज़रूरत से ज़्यादा है। ऐसे घातक जल स्त्रोत मंडला, डिंडौरी, झाबुआ, शिवपुरी, सिवनी, छिंदवाड़ा, उज्जैन, भिंड, मंदसौर और नीमच में हैं। इन ज़िलों में जल स्त्रोतों में फ्लोराइड 5.56 प्रतिशत तक घुलमिल गया है। जबकि 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक फ्लोराइड शरीर के लिए घातक होता है। राज्य में 391 बस्तियों के 663 जलस्त्रोतों में नाइट्रेट ज़्यादा है। नाइट्रेट की मात्रा बढ़ने की वज़ह से भूमिगत चट्टानों, खेतों में रासायनिक उर्वरकों के बहाव और प्रदूषण आदि हैं। इससे बच्चों में कमज़ोरी और खून में नीलेपन की बीमारी होती है।
राज्य में कई स्थानों पर जल स्त्रोतों में सीसा (लेड) भी घातक मात्रा में है। इसके अलावा लौह तत्व भी सिवनी, रायसेन, राजगढ़, रतलाम, नीमच, छिंदवाड़ा, बालाघाट, उमरिया और सिवनी में 747 जल स्त्रोतों में ज़रूरत से ज़्यादा मात्रा में पाया गया है। राज्य के लगभग 600 गांव में भूमिगत जल स्त्रोतों में खारेपन की मात्रा ज़्यादा है। बताया जाता है कि केंद्र सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण मिशन कार्यक्रम के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में जल आपूर्ति कार्यक्रम के अंतर्गत दूषित और घातक प्रभावित जलस्त्रोतों को बंद कर पानी के लिए वैकल्पिक प्रबंध करने हेतु भारत सरकार ने मध्य प्रदेश को लगभग 100 करोड़ रुपयों की सहायता दी है, लेकिन पता नहीं राज्य सरकार ने इस धनराशि का कहां और किस प्रकार उपयोग किया है।
गरमी के मौसम में पेयजल संकट फिर गरमाने लगा है। इस बीच प्रदेश के 10 फीसदी हैंडपंप सूखे पड़े हैं। प्रदेश में कुल 4,37,884 हैंडपंप हैं, इसमें से पीएचई और अन्य विभागों के चालू हैंडपंपों की संख्या 4,15,590 है। इसमें से 22,294 हैंडपंप ऐसे हैं जो बंद पड़े हैं। जल स्तर कम होने के कारण 13,093 हैंडपंप बंद हैं, 8,132 हैंडपंप ऐसे हैं, जिन्हें सुधारना अब संभव नहीं है। गुणवत्ता के कारण बंद कर दिए गए हैंडपंपों की संख्या 1,069 है।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के सूत्र बताते हैं कि नियम है कि धरती से जब पानी निकाला जाता है, तब उसकी जांच की जाती है और देखा जाता है कि पानी पीने योग्य है या नहीं। वहीं शायद ग्राम बाकोड़ी में हैंडपंप से निकले पानी की किसी ने जांच नहीं की और भोलेभाले ग़रीब अनपढ़ लोग सरकार पर भरोसा करके सरकारी हैंडपंप का पानी पीते रहे। अब दो वर्ष बाद गांव वालों को सरकारी हैंडपंप से निकलने वाले पानी के दुष्प्रभाव का पता चला, क्योंकि गांव में कई बच्चे और किशोर विकलांगता के शिकार हो चुके थे। दो वर्षों से लगातार इस पानी का उपयोग करने वालों के शरीर पर पानी का घातक प्रभाव आसानी से देखा जा सकता है। बच्चों के दांत ख़राब हो गए हैं और कई शारीरिक रूप से विकलांग हो गए। इन बच्चों के शरीर में एक तरह की ख़तरनाक बीमारी फैल गई, जिसकी वज़ह से गांव में आधे से अधिक बच्चों के हाथ-पैर में सूजन और टेढ़ापन आ गया है।
2 वर्ष बाद लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों ने आनन-फानन में वहां के हैंडपंप को बंद करवा दिया। ग्रामीण सुकटो ने बताया कि बच्चे जन्म के समय स्वस्थ थे, मगर फ्लोराईड युक्त पानी के उपयोग से इन बच्चों में यह बीमारी उत्पन्न होने लगी है। कुछ समय पहले स्वास्थ्य विभाग द्वारा गांव में शिविर लगाया गया था। केवल खानापूर्ति के लिए कुछ दवाईयां बच्चों को दी गई। बच्चों को इलाज के लिए ज़िला चिकित्सालय में भी बुलाया गया, लेकिन रास्ता सही न होने की वज़ह से शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों के पालक, ज़िला चिकित्सालय नहीं पहुंच सके। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आज़ादी के 65 वर्ष पूर्ण होने के बावजूद ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं।
7000 से ज़्यादा स्थानों पर पानी दूषित
मध्य प्रदेश में कुल सात हज़ार से ज़्यादा बस्तियों में पानी पीने योग्य नहीं है। कहीं पेयजल में फ्लोराइड है, तो कहीं नाइट्रेट की मात्रा ज़्यादा, तो कहीं-कहीं पानी ज़रूरत से ज़्यादा खारा है। कई ज़िलों में पेयजल स्त्रोतों में लौह तत्व और सीसा (लेड) भी घुलमिल गया है। इस कारण पानी पीने योग्य नहीं बचा है। सरकारी सूत्रों के अनुसार राज्य में कुल 1 लाख 27 हज़ार बस्तियों में से 26 ज़िलों की सात हज़ार 64 बसाहाटों के 11569 जल स्त्रोतों में फ्लोराइट की मात्रा ज़रूरत से ज़्यादा है। ऐसे घातक जल स्त्रोत मंडला, डिंडौरी, झाबुआ, शिवपुरी, सिवनी, छिंदवाड़ा, उज्जैन, भिंड, मंदसौर और नीमच में हैं। इन ज़िलों में जल स्त्रोतों में फ्लोराइड 5.56 प्रतिशत तक घुलमिल गया है। जबकि 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक फ्लोराइड शरीर के लिए घातक होता है। राज्य में 391 बस्तियों के 663 जलस्त्रोतों में नाइट्रेट ज़्यादा है। नाइट्रेट की मात्रा बढ़ने की वज़ह से भूमिगत चट्टानों, खेतों में रासायनिक उर्वरकों के बहाव और प्रदूषण आदि हैं। इससे बच्चों में कमज़ोरी और खून में नीलेपन की बीमारी होती है।
राज्य में कई स्थानों पर जल स्त्रोतों में सीसा (लेड) भी घातक मात्रा में है। इसके अलावा लौह तत्व भी सिवनी, रायसेन, राजगढ़, रतलाम, नीमच, छिंदवाड़ा, बालाघाट, उमरिया और सिवनी में 747 जल स्त्रोतों में ज़रूरत से ज़्यादा मात्रा में पाया गया है। राज्य के लगभग 600 गांव में भूमिगत जल स्त्रोतों में खारेपन की मात्रा ज़्यादा है। बताया जाता है कि केंद्र सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण मिशन कार्यक्रम के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में जल आपूर्ति कार्यक्रम के अंतर्गत दूषित और घातक प्रभावित जलस्त्रोतों को बंद कर पानी के लिए वैकल्पिक प्रबंध करने हेतु भारत सरकार ने मध्य प्रदेश को लगभग 100 करोड़ रुपयों की सहायता दी है, लेकिन पता नहीं राज्य सरकार ने इस धनराशि का कहां और किस प्रकार उपयोग किया है।
45 हज़ार हैंडपंप सूख चुके हैं
गरमी के मौसम में पेयजल संकट फिर गरमाने लगा है। इस बीच प्रदेश के 10 फीसदी हैंडपंप सूखे पड़े हैं। प्रदेश में कुल 4,37,884 हैंडपंप हैं, इसमें से पीएचई और अन्य विभागों के चालू हैंडपंपों की संख्या 4,15,590 है। इसमें से 22,294 हैंडपंप ऐसे हैं जो बंद पड़े हैं। जल स्तर कम होने के कारण 13,093 हैंडपंप बंद हैं, 8,132 हैंडपंप ऐसे हैं, जिन्हें सुधारना अब संभव नहीं है। गुणवत्ता के कारण बंद कर दिए गए हैंडपंपों की संख्या 1,069 है।
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