संस्कृति, विरासत और परंपरा बलिदान करिए, द्रुत गति से विकास मार्ग पर चलिए। हमारे विकासवादियों का ये मंत्र अपना असर बखूबी दिखाने लगा है। अब बारी परशुराम कुण्ड की है। अरूणाचल प्रदेश में लोहित नदी पर बन रहे एक बांध के चलते परशुराम कुण्ड अस्तित्वविहीन होने जा रहा है।
1750 मेगावाट की देमवे जलविद्युत परियोजना का बांध जिस स्थान पर निर्मित किया जा रहा है वह अति प्राचीन पौराणिक परशुराम कुण्ड से मात्र 200 मीटर उपर अवस्थित है। जाहिर सी बात है कि बांध बनने के बाद परशुराम कुण्ड जिसका जलस्रोत लोहित नदी से जुड़ा है, को निर्बाध नैसर्गिक जलापूर्ति प्रभावित हो जाएगी।
परशुराम कुण्ड की संपूर्ण भारत में विराट मान्यता है। अरूणाचल प्रदेश ही नहीं वरन् समूचा उत्तरपूर्व, नेपाल और भूटान तक का श्रध्दालु समाज मकर संक्रांति पर्व के समय इस कुण्ड पर सहज खिंचा चला आता है। जनवरी मास में प्रत्येक वर्ष जो आस्था-सैलाब यहां उमड़ता है उसकी तुलना यहां पर महाकुंभ से की जाती है।
पौराणिक मान्यता है कि भगवान परशुराम अपनी माता रेणुका की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए यहां आए थे। इस कुण्ड में स्नान के बाद वे मां की हत्या के पाप से मुक्त हुए थे। इस संदर्भ में पौराणिक आख्यान है कि किसी कारण वश परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि अपनी धर्मपत्नी रेणुका पर कुपित हो गए। उन्होंने तत्काल अपने पुत्रों को रेणुका का वध करने का आदेश दे दिया। लेकिन उनके आदेश का पालन करने के लिए कोई पुत्र तैयार नहीं हुआ। परशुराम पितृभक्त थे, जब पिता ने उनसे कहा तो उन्होंने अपने फरसे से मां का सर धड़ से अलग कर दिया। इस आज्ञाकारिता से प्रसन्न पिता ने जब वर मांगने को कहा तो परशुराम ने माता को जीवित करने का निवेदन किया। इस पर जमदग्नि ऋषि ने अपने तपोबल से रेणुका को पुन: जीवित कर दिया।
रेणुका तो जीवित हो गईं लेकिन परशुराम मां की हत्या के प्रयास के कारण आत्मग्लानि से भर उठे। यद्यपि मां जीवित हो उठीं थीं लेकिन मां पर परशु प्रहार करने के अपराधबोध से वे इतने ग्रस्त हो गए कि उन्होंने पिता से अपने पाप के प्रायश्चित का उपाय भी पूछा। पौराणिक प्रसंगों के अनुसार ऋषि जमदग्नि ने तब अपने पुत्र परशुराम को जिन जिन स्थानों पर जाकर पापविमोचन तप करने का निर्देश दिया उन स्थानों में परशुराम कुण्ड सर्वप्रमुख है।
अरूणाचल में ब्रह्मपुत्र के प्रवाह को ही लोग लोहित नदी के नाम से जानते हैं। लोहित नदी के नाम से ही लोहित जिला अस्तित्व में आया है। इस नदी पर फिलहाल अनेक जल विद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित हैं जिनमें से प्रस्तावित देमवे बांध परशुराम कुण्ड से मात्र 100-150 मीटर की दूरी पर पड़ रहा है। चूंकि कुण्ड का एक सिरा नदी से सीधे जुड़ा हुआ है इसलिए एक तरह से कहा जा सकता है कि बांध परशुराम कुण्ड पर ही बन रहा है। अरूणाचल में ब्रह्मपुत्र के प्रवाह को ही लोग लोहित नदी के नाम से जानते हैं। लोहित नदी के नाम से ही लोहित जिला अस्तित्व में आया है। इस नदी पर फिलहाल अनेक जल विद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित हैं जिनमें से प्रस्तावित देमवे बांध परशुराम कुण्ड से मात्र 100-150 मीटर की दूरी पर पड़ रहा है। चूंकि कुण्ड का एक सिरा नदी से सीधे जुड़ा हुआ है इसलिए एक तरह से कहा जा सकता है कि बांध परशुराम कुण्ड पर ही बन रहा है।
परशुराम कुण्ड पर बांध बनने की खबर से समूचे अरूणाचल में उबाल आया हुआ है। अनेक स्थानीय धार्मिक एवं सांस्कृतिक संगठनों ने जहां इस बांध के निर्माण पर आपत्ति जताई है वहीं पर्यावरणविदों ने भी केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री जयराम रमेश को पत्र लिखकर अपील की है तत्काल इस बांध को प्रदान की गई अनापत्ति को समाप्त करें।
पर्यावरणविदों को कहना है कि बांध निर्माण के बाद लोहित नदी का जल उसके नैसर्गिक मार्ग से हटाकर पहाड़ों के भीतर प्रस्तावित एक कि.मी. सुरंग के द्वारा किया जाएगा। इस सुरंग को बनाने के लिए बड़े पैमाने पर पहाड़ भीतर से खोखले किए जाएंगे। और इस प्रक्रिया में व्यापक मात्रा में विस्फोटकों का प्रयोग किया जाएगा। पर्यावरणविदों ने भारत सरकार से परियोजना के कारण पर्यावरण को होने वाली हानि का पुन: आकलन करवाने का आग्रह किया है।
पर्यावरणविदों ने परशुराम कुण्ड की पवित्रता पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की ओर भी पर्यावरण मंत्री का ध्यान आकृष्ट किया है। कहा गया है कि विस्फोटकों से पहाड़ तोड़े जाएंगे और भारी मात्रा में गाद-मिट्टी नदी प्रवाह के साथ कुण्ड के जल को प्रदूषित और गहराई को उथला कर देगें। सुरंग के द्वारा परिवर्तित नदी प्रवाह से कुण्ड के जल की पवित्रता भी प्रभावित होगी। कुण्ड को जो जल नैसर्गिक रूप से मिलता रहा है उसे अब बांध के द्वारा नियंत्रित कर दिया जाएगा।
पर्यावरणविदों के अनुसार, परियोजना को लेकर जो जनसुनवाई अनिवार्य रूप से होनी चाहिए उस संदर्भ में पूरी तरह फर्जीवाड़ा किया गया है। किसी को पता तक नहीं चला और जनसुनवाई की रस्मअदायगी कर जनता की सहमति प्राप्त कर ली गई। पत्र में यह भी कहा गया है कि किसी भी हाल में परियोजना पर्यावरणीय मानकों की कसौटी पर खरी नहीं है, इसके बावजूद उसे पर्यावरण अनापत्ति मिल गई तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है।
1750 मेगावाट की देमवे जलविद्युत परियोजना का बांध जिस स्थान पर निर्मित किया जा रहा है वह अति प्राचीन पौराणिक परशुराम कुण्ड से मात्र 200 मीटर उपर अवस्थित है। जाहिर सी बात है कि बांध बनने के बाद परशुराम कुण्ड जिसका जलस्रोत लोहित नदी से जुड़ा है, को निर्बाध नैसर्गिक जलापूर्ति प्रभावित हो जाएगी।
परशुराम कुण्ड की संपूर्ण भारत में विराट मान्यता है। अरूणाचल प्रदेश ही नहीं वरन् समूचा उत्तरपूर्व, नेपाल और भूटान तक का श्रध्दालु समाज मकर संक्रांति पर्व के समय इस कुण्ड पर सहज खिंचा चला आता है। जनवरी मास में प्रत्येक वर्ष जो आस्था-सैलाब यहां उमड़ता है उसकी तुलना यहां पर महाकुंभ से की जाती है।
पौराणिक मान्यता है कि भगवान परशुराम अपनी माता रेणुका की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए यहां आए थे। इस कुण्ड में स्नान के बाद वे मां की हत्या के पाप से मुक्त हुए थे। इस संदर्भ में पौराणिक आख्यान है कि किसी कारण वश परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि अपनी धर्मपत्नी रेणुका पर कुपित हो गए। उन्होंने तत्काल अपने पुत्रों को रेणुका का वध करने का आदेश दे दिया। लेकिन उनके आदेश का पालन करने के लिए कोई पुत्र तैयार नहीं हुआ। परशुराम पितृभक्त थे, जब पिता ने उनसे कहा तो उन्होंने अपने फरसे से मां का सर धड़ से अलग कर दिया। इस आज्ञाकारिता से प्रसन्न पिता ने जब वर मांगने को कहा तो परशुराम ने माता को जीवित करने का निवेदन किया। इस पर जमदग्नि ऋषि ने अपने तपोबल से रेणुका को पुन: जीवित कर दिया।
रेणुका तो जीवित हो गईं लेकिन परशुराम मां की हत्या के प्रयास के कारण आत्मग्लानि से भर उठे। यद्यपि मां जीवित हो उठीं थीं लेकिन मां पर परशु प्रहार करने के अपराधबोध से वे इतने ग्रस्त हो गए कि उन्होंने पिता से अपने पाप के प्रायश्चित का उपाय भी पूछा। पौराणिक प्रसंगों के अनुसार ऋषि जमदग्नि ने तब अपने पुत्र परशुराम को जिन जिन स्थानों पर जाकर पापविमोचन तप करने का निर्देश दिया उन स्थानों में परशुराम कुण्ड सर्वप्रमुख है।
अरूणाचल में ब्रह्मपुत्र के प्रवाह को ही लोग लोहित नदी के नाम से जानते हैं। लोहित नदी के नाम से ही लोहित जिला अस्तित्व में आया है। इस नदी पर फिलहाल अनेक जल विद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित हैं जिनमें से प्रस्तावित देमवे बांध परशुराम कुण्ड से मात्र 100-150 मीटर की दूरी पर पड़ रहा है। चूंकि कुण्ड का एक सिरा नदी से सीधे जुड़ा हुआ है इसलिए एक तरह से कहा जा सकता है कि बांध परशुराम कुण्ड पर ही बन रहा है। अरूणाचल में ब्रह्मपुत्र के प्रवाह को ही लोग लोहित नदी के नाम से जानते हैं। लोहित नदी के नाम से ही लोहित जिला अस्तित्व में आया है। इस नदी पर फिलहाल अनेक जल विद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित हैं जिनमें से प्रस्तावित देमवे बांध परशुराम कुण्ड से मात्र 100-150 मीटर की दूरी पर पड़ रहा है। चूंकि कुण्ड का एक सिरा नदी से सीधे जुड़ा हुआ है इसलिए एक तरह से कहा जा सकता है कि बांध परशुराम कुण्ड पर ही बन रहा है।
परशुराम कुण्ड पर बांध बनने की खबर से समूचे अरूणाचल में उबाल आया हुआ है। अनेक स्थानीय धार्मिक एवं सांस्कृतिक संगठनों ने जहां इस बांध के निर्माण पर आपत्ति जताई है वहीं पर्यावरणविदों ने भी केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री जयराम रमेश को पत्र लिखकर अपील की है तत्काल इस बांध को प्रदान की गई अनापत्ति को समाप्त करें।
पर्यावरणविदों को कहना है कि बांध निर्माण के बाद लोहित नदी का जल उसके नैसर्गिक मार्ग से हटाकर पहाड़ों के भीतर प्रस्तावित एक कि.मी. सुरंग के द्वारा किया जाएगा। इस सुरंग को बनाने के लिए बड़े पैमाने पर पहाड़ भीतर से खोखले किए जाएंगे। और इस प्रक्रिया में व्यापक मात्रा में विस्फोटकों का प्रयोग किया जाएगा। पर्यावरणविदों ने भारत सरकार से परियोजना के कारण पर्यावरण को होने वाली हानि का पुन: आकलन करवाने का आग्रह किया है।
पर्यावरणविदों ने परशुराम कुण्ड की पवित्रता पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की ओर भी पर्यावरण मंत्री का ध्यान आकृष्ट किया है। कहा गया है कि विस्फोटकों से पहाड़ तोड़े जाएंगे और भारी मात्रा में गाद-मिट्टी नदी प्रवाह के साथ कुण्ड के जल को प्रदूषित और गहराई को उथला कर देगें। सुरंग के द्वारा परिवर्तित नदी प्रवाह से कुण्ड के जल की पवित्रता भी प्रभावित होगी। कुण्ड को जो जल नैसर्गिक रूप से मिलता रहा है उसे अब बांध के द्वारा नियंत्रित कर दिया जाएगा।
पर्यावरणविदों के अनुसार, परियोजना को लेकर जो जनसुनवाई अनिवार्य रूप से होनी चाहिए उस संदर्भ में पूरी तरह फर्जीवाड़ा किया गया है। किसी को पता तक नहीं चला और जनसुनवाई की रस्मअदायगी कर जनता की सहमति प्राप्त कर ली गई। पत्र में यह भी कहा गया है कि किसी भी हाल में परियोजना पर्यावरणीय मानकों की कसौटी पर खरी नहीं है, इसके बावजूद उसे पर्यावरण अनापत्ति मिल गई तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है।
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