प्रवक्ता

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सिर्फ बांधों के फायदे मत गिनाइए
Posted on 26 Nov, 2009 08:07 AM
ये प्रतिगामी विकास है, प्रलय की ओर ले जाने वाला, सारी वसुधा को तापमान वृध्दि के बुखार की तपन में धकेलने वाला है ये विकास। संसार इस विकास से हुए विध्वंस को जान गया है, परेशान है कि समाधान कहां से लाएं लेकिन हमारे हुक्मरां हैं कि अभी भी लकीर के फकीर बने हुए हैं। उन्हें विद्युत उत्पादन के वे तरीके सूझ ही नहीं रहे हैं जिनसे हमारा आज रौशन तो होगा ही हमारे आने वाला कल भी रौशन रहेगा। विस्थापन की मार से दूर हमारी दुनिया सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों के प्रति तब और ज्यादा प्रतिबध्द होगी।देश में बांधों की बाढ़ आ गई है। हिमाचल प्रदेश से लेकर अरूणाचल प्रदेश तक और उत्तराखण्ड से लेकर सुदूर केरल तक बांधों की पौ-बारह है। ‘ले बांध, दे बांध’ की तर्ज पर सरकारी मशीनरी बांध प्रस्तावों पर तेजी से कार्रवाई कर रही हैं। एक-एक नदी के प्रवाह पर दर्जनों बांध परियोजनाएं, कुछ मंझोली तो कुछ विशालकाय, कहीं पर सरकारी तो कहीं अर्ध सरकारी और कहीं गैर सरकारी निवेश से ये परियोजनाएं देश को विकास के नव युग में ले जाने को आतुर हो चली हैं।

ये अलग मुद्दा है कि इसी बीच नेपाल-बिहार सीमा पर कहीं कोई कोसी बांध दरकता है और पचासों हजार लोग एक
सिवनी का दलसागर
Posted on 08 Nov, 2009 11:13 AM

कभी सिवनी नगर के सौन्दर्य का प्रतीक दलसागर तालाब माना जाता था। जिले की संदर्भ ग्रंथ माने जाने वाली पुस्तक “सिवनी अर्वाचीन एवं प्राचीन” में यह उल्लेख किया गया है कि शहर के मध्य में दलसागर तालाब है जिसे दलसा नामक गौली ने बनवाया था। इसके चारों ओर पक्के घाट बने हैं जिससे तालाब बहुत ही सुन्दर लगता है। घंसौर से पुरानी मूर्तियां लाकर किनारे पर रखवायीं गयीं हैं जो देखने योग्य है।

दलसागर तालाब
मर रही हैं नदियां
Posted on 06 Nov, 2009 06:01 PM

‘विकास अप्सरा’ के चाहत में नर्मदा जल भोपाल पहुंचाने के लिए लंबी पाईपलाइन योजना और बिजली उत्पादन के नाम पर 183 बांधों की योजना पर काम चल रहा है। यह सब हो रहा है, प्रदेश की चंद बड़ी नदियों के दम पर। लेकिन क्या इन नदियों का पानी बचा रह पायेगा?

क्षिप्रा : सिमट रही आस्था
बुंदेलखंड: अकाल को निमंत्रण
Posted on 14 Mar, 2009 08:58 PM
पिछले पांच वर्षों से वर्षा में अत्यधिक कमी के कारण समूचा बुंदेलखंड अकाल की चपेट में है। नदी, तालाब, नलकूप सभी सूख चुके हैं। भुखमरी से मौतें हो रही हैं। लोग खेत-खलिहान, पशु-पक्षी छोड़कर रोजी-रोटी की तलाश में महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं। बुंदेलखंड में पहले भी स्थितियां जीवन के अनुकूल नहीं थी लेकिन स्थानीय लोग इन विपरीत परिस्थितियों को अपने जज्बे के बल पर अनुकूल बना लेते थे, और घर-द्वार, खेत-खलिह
परशुराम कुण्ड पर कुण्डली
Posted on 06 Nov, 2009 10:41 AM
संस्कृति, विरासत और परंपरा बलिदान करिए, द्रुत गति से विकास मार्ग पर चलिए। हमारे विकासवादियों का ये मंत्र अपना असर बखूबी दिखाने लगा है। अब बारी परशुराम कुण्ड की है। अरूणाचल प्रदेश में लोहित नदी पर बन रहे एक बांध के चलते परशुराम कुण्ड अस्तित्वविहीन होने जा रहा है।
परशुराम कुण्ड
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