पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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कवित्व जगमगाता है!
Posted on 28 Jun, 2011 10:05 AM मैं निषेध हूँ
एक शिला का
(दरअसल जो कि समय है!)

जितना बह जाता हूँ
उतना रह जाता हूँ
पत्थर होने से

अवाक प्रार्थना में
मेरा भी मौन है

बड़ी झील! तुम्हारी पानी-धुली
आवाज़ में
मेरी भी जुबान का
अँजोर है
(मद्धम ही सही)

मेरे ख़याल में
पानी का
कवित्व जगमगाता है!

पंक्तिबद्ध
Posted on 25 Jun, 2011 09:41 AM झील की झलमल देह
आसमान की आत्मा राँजती है

झील को देखते-देखते
हमारी खुरदुरी आँखें
हो जाती हैं नम्र और मुलायम

झील को विहंगम निहारते
हम सुंदरता का एक पूरा कैनवास
हृदयंगम कर लेते हैं

झील के पास आ-आ कर
झील को सुनते हुए
मैं अपना खो गया संगीत
खोजता हूँ

बहना निहारते-निहारते मैं
पानी का सस्वर पाठ करता हूँ
विरासत
Posted on 25 Jun, 2011 09:35 AM ये माना कि घर में रोटी नहीं थी
पहाड़ ये जमी तोड़ी फोड़ी नहीं थी।

विद-बिद चला, जमी बिकती नहीं थी
महफूज जंगल, गाड़ा भीड़ा छी
धारे थे नौले थे, बहती नदी थी
हरयाली खेतों से, गौ का चमन छी।
ये माना कि........................।

स्कूल में मास्टर, हांग में हलिया
ठांगर में लकदक, लगुली चढी थी
हिसालु-किलमोड़ी, स्योंते गुदा कैं
पानी पर बतख
Posted on 25 Jun, 2011 09:12 AM पानी पर बतख
सुन्दरता
तैर रहे हैं

पार नहीं होना है
अपने कुटुम्ब के साथ घूमना-फिरना है
रोजी-रोटी जुटाना है
और झील का मन बहलाना है

मादा नर को रिझा रही है
और नर मादा पर प्यार बरसा रहा है

पानी पर बतख सुन्दरता तैर रहे हैं

झील लहरों की रस्सी से
आसमान झूल रही है
पानी तरलता के रियाज़ में है!

नदियों का सौदा
Posted on 24 Jun, 2011 10:10 AM नदियों का किसने ये सौदा किया है
मेरे घरों में छापा पड़ा है।
दो कट्टा बजरी, रेता मिला है
टूटे दरख्तों का पट्टा मिला है।

वी.पी.एल चावल, आटा, रूपया
अणतीस का चैक-सूखा राहत मिला है,
उँचे डैमौ ने रूलाया बहुत जो
पूरा शहर यूँ, डूबा पड़ा है
बेड़ी बॅधे हैं, झोपड़ी वाले,
भेडि़या सारे खुले पड़े हैं।
नदियों का किसने ये - -।
बड़ी झील: तुम्हारी लहरों की ललक
Posted on 24 Jun, 2011 09:38 AM बड़ी झील: तुम्हारी लहरों की ललकदिन भर का थका-हारा सूरज
तुम्हारे पश्चिमांचल में आकर डूब गया बड़ी झील
खूबसूरत सनसेट देखने के लिए उमड़े लोग
लौटने लगे हैं अपने-अपने घर
इतनी दूर से भी कितना सुन्दर दिख रहा है
तुम्हारा कुंकुम-किलकित-भाल

सन्ध्या-सुन्दरी
तुम्हारे जल का आचमन कर
धीरे-धीरे शहर पर
उतर रही है

बड़ी झील!
पानी के साथ
Posted on 23 Jun, 2011 09:25 AM पानी के साथ
हम पनघट के किस्से पीते हैं
घाट की कथाएँ
कमण्डल में आ
करती हैं जलाभिषेक

कलष के पानी में
खनकती है
गूजरी की हँसी

झील ही देती है
मेरे भीतर के पानी को
लहर

मेरी आँखें आईना हैं
जिसमें झील अपना चेहरा निहारती है

कानों में झील का एकान्त
बजता है
और प्यास
कण्ठ से निकलकर
बड़ी झील
Posted on 22 Jun, 2011 08:59 AM बड़ी झील: पानी को रहना सिखाती हुई
और प्यास को जीना

बड़ी झीलः कभी नर्मदा के
बहते आलाप को सुनती हुई मगनमन
कभी अपनी चुप्पी में अथाह
कभी अपने आवेग में
सम्पूर्णतः वाचाल

बड़ी झीलः जिसका पानी दिखता है
भोपाल के चेहरे पर खिला-खिला
और रहता है
हिन्दी-उर्दू की तरह मिला-जुला
जैसे काया में मन
Posted on 21 Jun, 2011 09:18 AM जैसे काया में मन रहता है
वैसे ही धरती में रहती है झील

लड़ती हुई फूहड़ता-विद्रूपता के खिलाफ़
दरअसल जो सुन्दरता की तरफ़दारी है

जैसे काया में मन रहता है
वैसे ही धरती में
झील रहती है
हर पहर जो पृथ्वी पर प्रेम की
कथा रचती है

झील में दूरदुनिया से पाखी आते हैं
अच्छे विचार की तरह
झील के आदर-सत्कार की उन्हें बड़ी तलब
झील भरी है
Posted on 20 Jun, 2011 01:23 PM झील भरी है
चलती है डोलती हुई
पानी का दोलन
झील को प्रिय है

हमारे मन से कितनी मिलती-जुलती
नाव है झील

प्यास बुझाती
लहराती चल रही है
कितनी तो चिन्ता-फिकर है
फिर भी झील चल रही है लहराती
पार लगाती
सांगोपांग जिउ

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