बड़ी झील: तुम्हारी लहरों की ललक

बड़ी झील: तुम्हारी लहरों की ललकदिन भर का थका-हारा सूरज
तुम्हारे पश्चिमांचल में आकर डूब गया बड़ी झील
खूबसूरत सनसेट देखने के लिए उमड़े लोग
लौटने लगे हैं अपने-अपने घर
इतनी दूर से भी कितना सुन्दर दिख रहा है
तुम्हारा कुंकुम-किलकित-भाल

सन्ध्या-सुन्दरी
तुम्हारे जल का आचमन कर
धीरे-धीरे शहर पर
उतर रही है

बड़ी झील!
तुम तो हमारे भोपाल की दर्पण हो
तुम्हारी झिलमिल में इस शहर की
हलचल है

जब तुम सूखने लगती हो बड़ी झील
हमारा प्रांजल मन झूर पड़ने लगता है
तुम्हारी सागर-मुद्रा को देख
मेरा मन डगमगाता है बड़ी झील
कहीं तुम बह न जाओ
हाड़ तोड़ अपने तट का!

तुम्हें गंदला किया जा रहा है बड़ी झील
जबकि तुम बेहद सफ़ाई पसन्द हो
जानती हो बड़ी झील!

धुर-दोपहर जब तुम अपने पानी में
सो जाती हो
तुम्हारे भीट पर मैं अपनी उदासी रख
चुपचाप घर लौट जाता हूँ
डालकर तुम्हारी मछलियों को
गूँथे हुए अपने दर्द की लोईयाँ

तुम्हारे तट से मैं
खाली हाथ नहीं लौटता बड़ी झील!
बाँध लाता हूँ अपने लहू में
तुम्हारी लहरों की ललक

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