पानी के साथ

पानी के साथ
हम पनघट के किस्से पीते हैं
घाट की कथाएँ
कमण्डल में आ
करती हैं जलाभिषेक

कलष के पानी में
खनकती है
गूजरी की हँसी

झील ही देती है
मेरे भीतर के पानी को
लहर

मेरी आँखें आईना हैं
जिसमें झील अपना चेहरा निहारती है

कानों में झील का एकान्त
बजता है
और प्यास
कण्ठ से निकलकर
गीत बन जाती है!

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