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पेयजल और अन्य घरेलू उपयोग
कुल्लू घाटी में ट्राउट मछली का अवैध शिकार
Posted on 14 Jul, 2011 04:36 PMइस समय ट्राउट के सबसे बडे़ दुश्मन अवैध शिकार करने वाले हैं, जो जाल, बिजली का करंट और कहीं ब्लीचिंग पाउडर पानी में डाल कर इनका वंश खत्म करने लगे हैं। पहले कहा जाता था कि कुल्लू घाटी ब्राउन ट्राउट मछली का स्वर्ग है, परंतु अब यह मछली इस घाटी में अपना वजूद खोने के कगार पर खड़ी है। बंजार घाटी की तीर्थन खड्ड तो इस मछली का एक आदर्श ठिकाना है। यह वही ट्राउट मछली है, जिसे 1909 में एक ब्रिटिश अधिकारी ने
जल जीव भी हैं खतरे में
Posted on 14 Jul, 2011 08:31 AMकभी बड़ी संख्या में पाए जाने वाले घड़ियाल, कछुआ, मछली और मेंढक जैसे जल-जीवों का अस्तित्व संकट में है। इनमें कुछ जीव संरक्षित घोषित हैं फिर भी इनका अवैध शिकार हो रहा है। कछुए को 1985 में संरक्षित घोषित किया गया था। कुछ माह पूर्व उत्तराखंड के शिकारगंज में चार लोगों के पास दुर्लभ जाति के 80 कछुए बरामद हुए। नवम्बर 2010 में बंगलुरू में शिकारियों के पास 128 कछुए पकड़े गये। देश में प्रतिवर्ष हजारों कछ
उड़ीसा के तट पर कराहते चमत्कारी कछुए
Posted on 09 May, 2011 11:44 AMओलिव रिडले कछुओं को सबसे बड़ा नुकसान मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों से होता है। वैसे तो ये कछुए समु
अब पानी में सुपरबग का हल्ला
Posted on 13 Apr, 2011 05:45 PMभारत में बढ़ती स्वास्थ पर्यटन की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए पश्चिमी मुल्क और वहां की स
मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य
Posted on 26 Feb, 2011 03:36 PMस्वास्थ्य भौतिक, सामाजिक एवं मानसिक रूप से पूर्ण कुशलता की अवस्था है। मात्र रोग की अनुपस्थिति ही स्वास्थ्य नहीं है। वर्ष 1979 में अल्मा् आटा के अंतराष्ट्रीय सम्मेलन ने स्वास्थ्य नीतियों के विकास में एक अहम् भूमिका निभाई है। इसी सम्मेलन में सभी लोगों तक स्वास्थ्य पहुंचाने की बात रखते हुये स्वास्थ्य को नई परिभाषा दी गई। यहीं से वर्ष 2000 तक 'सभी के लिए स्वास्थ्य उपलब्धता' पर पहल प्रारंभ की गई। आज
जल की स्वास्थ्य में भूमिका
Posted on 16 Feb, 2011 10:11 AMजल की स्वास्थ्य में भूमिका जल ही जीवन है, ऐसा बहुधा कहा-सुना जाता है, क्योंकि बिना भोजन के हम कई दिन तक स्वस्थ्य बने रह सकते हैं किन्तु बिना जल एक दिन भी नहीं व्यतीत किया जा सकता और इसके बिना तीन दिन रहना प्राण-घातक हो सकता है। जल के अभाव में रक्त गाढ़ा होने लगता है जिससे शरीर की पोषण क्रियाएँ ठप पड़ने लगती हैं। वैसे भी जीवन की प्रथम उत्पत्ति जल में ही हुई, और हमारे शरीर के प्रत्येक अंग में जल
शरीर में जलाभाव के दुष्प्रभाव
Posted on 15 Feb, 2011 01:19 PMप्रायः कहा जाता है, 'जल ही जीवन है'। यह कोई अतिशयोक्ति न होकर जीवन का यथार्थ है क्योंकि जीवन सञ्चालन के प्रत्येक चरण में जल का महत्व है। शरीर में इसके अल्पाभाव से अनेक जैविक क्रियाएँ मंद पड़ जाती हैं। आइये देखें कि जल का शरीर की किन क्रियाओं में योगदान होता है।
खतरे में राजहंसों की शरणस्थली
Posted on 29 Dec, 2010 08:58 AM
देश के सबसे महत्वपूर्ण सामरिक महत्व के स्थान श्रीहरिकोटा की पड़ोसी पुलीकट झील को दुर्लभ हंसावर या राजहंस का सबसे मुफीद आश्रय-स्थल माना जाता रहा है। विडंबना है कि इंसान की थोड़ी सी लापरवाही के चलते देश की दूसरी सबसे विशाल खारे पानी की झील का अस्तित्व खतरे में है। चेन्नई से कोई 60 किलोमीटर दूर स्थित यह झील महज पानी का दरिया नहीं है, लगातार सिकुड़ती जल-निधि पर कई किस्म की मछलियों, पक्षी और हजारों मछुआरे परिवारों का जीवन भी निर्भर है। यह दो राज्यों में फैली हुई है- आंध्र प्रदेश का नेल्लोर जिला और तमिलनाडु का तिरूवल्लूर जिला। यहां के पानी में विषैले रसायनों की मात्रा बढ़ रही है,
चौंकिए मत! जल की रानी को भी होता है दर्द
Posted on 22 Nov, 2010 08:11 AMक्या मछलियों को दर्द भी होता है? क्या वह भी आम इंसानों की भांति दर्द होने पर कराहती और चिल्लाती है....इन उलझनों को सुलझाने का दावा किया है पेन स्टेट ने। प्रोफेसर और पर्यावरणविद पेन स्टेट की किताब ‘डू फिश फील पेन?’ के मुताबिक मछलियों में खास किस्म का स्नायु फाइबर्स होता है जो उकसाने वाली गतिविधियों, उत्तकों के नुकसान और दर्द का अहसास कराता है। चौंकाने वाली बात यह है कि ऐसा ही स्नायु फाइबर्स स्तनपायी जीवों और चिड़ियों में भी पाया जाता है।
स्टेट ने बताया कि 2030 तक इंसान मछलियों की अधिकांश जरूरत फिश फार्म से पूरा करेगा। इसलिए मछलियों के देखभाल और स्वास्थ्य के प्रति जानना बेहद जरूरी है। प्रयोगों से पता चला है कि मछलियां किसी भी प्रतिकूल व्यवहार के प्रति सतर्क रहती है। यदि हम उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं तो वह ही प्रतिक्रिया
सागर मंथन और जीवों की गणना
Posted on 13 Oct, 2010 03:07 PMइनसानों के लिए पहेली रही समुद्री दुनिया अब खंगाल ली गई है। पिछले एक दशक के दौरान उसमें रहने वाले जीवों की न सिर्फ गिनती पूरी की गई है, बल्कि उनकी गतिविधियां भी दर्ज कर ली गई हैं। द अलफ्रेड पी. स्लॉन संस्था के नेतृत्व में हुई इस गणना के दौरान वैज्ञानिकों ने इस बात का भी पता लगा लिया कि मानव जीवन किस तरह समुद्री जीवों पर आश्रित है।