कुल्लू घाटी में ट्राउट मछली का अवैध शिकार

ट्राउट मछली का वंश संकट में
ट्राउट मछली का वंश संकट में

इस समय ट्राउट के सबसे बडे़ दुश्मन अवैध शिकार करने वाले हैं, जो जाल, बिजली का करंट और कहीं ब्लीचिंग पाउडर पानी में डाल कर इनका वंश खत्म करने लगे हैं। पहले कहा जाता था कि कुल्लू घाटी ब्राउन ट्राउट मछली का स्वर्ग है, परंतु अब यह मछली इस घाटी में अपना वजूद खोने के कगार पर खड़ी है। बंजार घाटी की तीर्थन खड्ड तो इस मछली का एक आदर्श ठिकाना है। यह वही ट्राउट मछली है, जिसे 1909 में एक ब्रिटिश अधिकारी ने अंडों की शक्ल में ब्रिटेन से समुद्री जहाज में महीनों का सफर करके और फिर मीलों पैदल चलकर कुल्लू घाटी के नदी-नालों के साफ सुथरे, चांदी जैसे चमकते बहते पानी में डलवाया था। यहां की जलवायु इस अंग्रेजी मछली को इतनी रास आई कि यहां यह खूब फलने फूलने लगी। इस तरह कुल्लू घाटी इस ट्राउट मछली के कारण सारी दुनिया में प्रसिद्ध हो गई। इसका नाम सुनकर पश्चिमी देशों से एंग्लर इसके आखेट के लिए यहां आने लगे, जिसके कारण इस घाटी की सुंदरता की कहानियां इन देशों तक पहुंच गईं और इसकी तुलना स्विट्जरलैंड से की जाने लगी।

इस मछली का आखेट बड़ा मनोरंजक कार्य है और इसे पकड़ने वाला खूब आनंद उठाता है। यह इसलिए संभव है, क्योंकि इसको पकड़ने के लिए एक खास तरह की बंसी (रॉड) होती है, जिसमें एक तरफ पक्के धागे के साथ स्पिन्नर (कांटा) बांधा जाता है। जब इसे पानी में फेंका जाता है और वापस खींचा जाता है, तो इस स्पिन्नर में लगी हुई एक चमकदार पतरी पानी के जोर से घूमने लगती है, जिसे देखकर यह मछली इसे पानी में गिरी कोई तितली समझ कर इस पर झपट पड़ती है और कांटे में फंस जाती है। इस तरह एंग्लर को बार-बार कांटा पानी में फेंकना और वापस खींचना पड़ता है, जिसमें कभी मछली फंस जाती है और कभी नहीं। इससे मनोरंजन के साथ-साथ खूब कसरत भी होती है, क्योंकि मछली पकड़ने के लालच में कभी ऊपर तो कभी नीचे उतरना और चलना पड़ता है। पर अब इस मछली के वजूद पर पूरी तरह से संकट के बादल छाने लगे हैं।

इस समय ट्राउट के सबसे बडे़ दुश्मन अवैध शिकार करने वाले हैं, जो जाल, बिजली का करंट और कहीं ब्लीचिंग पाउडर पानी में डाल कर इनका वंश खत्म करने लगे हैं। अब जरा उस अंग्रेज की हिम्मत और लगन के बारे में सोचें, जिसने इतनी दूर से इस मछली का बीज भारत में पहुंचाया, परंतु हम में से ही कुछ लोग इसका वजूद ही खत्म करने में लगे हैं। ऐसे में इसके अवैध शिकार को रोकने में प्रदेश का मछली विभाग कर्मचारियों की कमी के कारण पूरी तरह नाकाम हो चुका है। इसके साथ ही इनकी सबसे बड़ी एक और दुश्मन, कुल्लू घाटी में बनने वाली बिजली परियोजनाएं सिद्ध हो रही हैं। इन परियोजनाओं के निर्माण में जमकर पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है और लाखों घन मीटर मलबा नदी-नालों में बहाया जा रहा है, जिसके कारण नदी नालों में तालाबों की शक्ल में बने इनके रहने के ठिकाने मिट्टी व पत्थर से भर चुके हैं और इस तरह इन्हें इनके घर से बेदखल करके मरने को मजबूर किया जा रहा है।

ऐसे में यदि इस कीमती जीव को बचाने की मुहिम नहीं छेड़ी गई तो इसका नामलेवा कुल्लू घाटी में शायद ही कोई बचेगा। अतः इसका वजूद बचाने के लिए कुल्लू में कुल्लू एंग्लर एसोसिएशन नामक संस्था बनाई गई है, जो इसका वजूद बचाने के साथ-साथ इसके आखेट को भी बढ़ावा देने की कोशिश करेगी। यदि इस मछली के अवैध शिकार पर लगाम लगाकर इसकी तादाद कुल्लू व बंजार घाटी के नदी नालों में बढ़ जाए तो इससे यहां के पर्यटन को एक बहुत बड़ा उछाल मिलेगा, जिससे यहां पर इसके आखेट के शौकीन लोगों का जमावड़ा लगेगा व यहां के पर्यटन से जुडे़ लोगों की आमदनी में वृद्धि होगी, रोजगार मिलेगा और होगा आर्थिक विकास।

(लेखक, कुल्लू एंग्लर एसोसिएशन के सदस्य हैं)
 

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