सागर मंथन और जीवों की गणना


इनसानों के लिए पहेली रही समुद्री दुनिया अब खंगाल ली गई है। पिछले एक दशक के दौरान उसमें रहने वाले जीवों की न सिर्फ गिनती पूरी की गई है, बल्कि उनकी गतिविधियां भी दर्ज कर ली गई हैं। द अलफ्रेड पी. स्लॉन संस्था के नेतृत्व में हुई इस गणना के दौरान वैज्ञानिकों ने इस बात का भी पता लगा लिया कि मानव जीवन किस तरह समुद्री जीवों पर आश्रित है।

समुद्री जीवों की गणना का काम 2000 में शुरू हुआ था। इस वृहद परियोजना में दुनिया के 80 देशों की 670 संस्थाओं ने भाग लिया। इस गिनती को अंजाम देने के लिए 2,700 वैज्ञानिकों की टीम तैयार की गई, जिन्होंने धरती के 25 प्रमुख सागरों का मंथन किया। इस शोध में लगे वैज्ञानिकों को तीन सवाल के जवाब ढूंढने को कहा गया- समुद्र में क्या रहता था, समुद्र में क्या रहता है और समुद्र में क्या रह सकता है? इसके हल तलाशने के लिए वैज्ञानिकों ने 9,000 दिन समुद्र के अंदर भी गुजारे। इस पूरी कवायद को अंजाम तक पहुंचाने के लिए एक कार्य समिति भी बनाई गई, जिसके अध्यक्ष ऑयन पायनर बने।

अपने तरह की इस पहली और अनोखी जनगणना में कई रोचक जानकारियां सामने आई हैं। मसलन, न्यूजीलैंड और अंटार्कटिका के समुद्र में मिलने वाले जीवों की प्रजातियों में आधी ऐसी हैं, जो दुनिया में और कहीं नहीं मिलती। समुद्री जीवों में सबसे सामाजिक प्राणी वाइपरफिश होता है और समुद्र में मछलियों की अपेक्षा केंकड़े, झींगा, क्रेफिश आदि की संख्या ज्यादा होती है। इस बात का भी पता लगा है कि समुद्र में करीब दो लाख तीस हजार जीवों का बसेरा है, जबकि यह आंकड़ा पहले मात्र दस लाख का था। हालांकि समुद्री जीवों की गिनती का काम पूरा हो गया है, पर इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि अब कई नई चुनौतियां भी सामने आ गई हैं। मसलन, अब उन जीवों का अस्तित्व बचाना पहली प्राथमिकता है, जो मानवीय गतिविधियों के कारण खतरे में आ गई हैं।
 
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