/topics/rivers
नदियां
सागर-सरिता का संगम
Posted on 19 Oct, 2010 11:11 AM प्याज या कैबेज (पत्तागोभी) हाथ में आने पर फौरन उसकी सब पत्तियां खोलकर देखने की जैसे इच्छा होती है, वैसे ही नदी को देखने पर उसके उद्गम की ओर चलने की इच्छा मनुष्य को होती ही है। उद्गम की खोज सनातन खोज है। गंगोत्री, जमनोत्री और महाबलेश्वर या त्र्यंबक की खोज इसी तरह हुई है।छुटपन में भोज और कालिदास की कहानियां पढ़ने को मिलती थीं। भोज राजा पूछते हैं, “यह नदी इतनी क्यों रोती है?” नदी का पानी पत्थरों को पार करते हुए आवाज करता होगा। राजा को सूझा, कवि के सामने एक कल्पना फेंक दे; इसलिए उसने ऊपर का सवाल पूछा। लोककथाओं का कालिदास लोकमानस को जंचे ऐसा ही जवाब देगा न? उसने कहा, “रोने का कारण क्यों पूछते हैं, महाराज? यह बाला पीहर से ससुराल जा रही है। फिर रोयेगी नहीं तो क्या करेगी?” इस समय मेरे मन में आया, “ससुराल जाना अगर पसन्द नहीं है तो भला जाती क्यों है?” किसी ने जवाब दिया, “लड़की का जीवन ससुराल जाने के लिए ही है।”लोहारी नागपाला शुभ शुरुआत
Posted on 22 Sep, 2010 11:10 AM विकास की अंधी दौड़ में हमारी सरकारें नदियों का गला घोंटने में लगी हैं। उनकी कुदृष्टि से महान गंगा भी बची नहीं है। आज गंगा का नैसर्गिक जल प्रवाह खतरे में है। बिजली पैदा करने के नाम पर गंगा नदी सुरंगों में डाली जा रही है। इससे अविरल प्रवाह अवरुद्ध हो गया है।नदियों का प्रवाह शुद्ध रहे, इसके लिए जरूरी है कि उनका नैसर्गिक जल प्रवाह बना रहे। नदियों का वेग ही उनकी शुद्धि के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक तत्व है। ‘रजसा शुद्धते नारी, नदी वेगेन शुद्धते।’ अर्थात जैसे रजस्वला होकर नारी शुद्ध हो जाती है उसी प्रकार नदियां अपने वेग से शुद्ध होती है । यह भारतीय संस्कृति की अनुभव सिद्ध मान्यता है। इसलिए अविरल नैसर्गिक प्रवाह नदी की निर्मलता के लिए अनिवार्य शर्त है। लेकिन विकास की अंधी दौड़ में हमारी सरकारें नदियों का गला घोंटने में लगी हैं। उनकी कुदृष्टि से महान गंगा भी बची नहीं है। आज गंगा का नैसर्गिक जल प्रवाह खतरे में है। बिजली पैदा करने के नाम पर गंगा नदी सुरंगों में डाली जा रही है। इससे अविरल प्रवाह अवरुद्ध हो गया है।पहाड़ को खोखला करती परियोजनाएं
Posted on 13 Sep, 2010 02:19 PMआखिरकार केंद्र सरकार ने लोहारी नागपाला जलविद्युत परियोजना को रोकने का फैसला कर लिया है लेकिन खतरा अभी टला नहीं है।
श्रीनगर के लिये अभिशाप बन कर आई है जल विद्युत परियोजना
Posted on 07 Sep, 2010 10:50 AMकुछ समय पहले तक श्रीनगर से आगे बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाते हुए नदी का विहंगम दृश्य एक अलग तरह का आनंद देता था। लेकिन अब इस पूरे इलाके में सतर्कता बढ़ गई है और शुरू हो गया है हमारे प्राकृतिक संसाधनों को हड़पने का एक घिनौना खेल। जहाँ कभी हरियाली होती थी वहाँ पर मिट्टी के ढेर और इन ढेरों से झाँकते हुए परियोजना के दौरान उखाड़ फेंके गए पेड़-पौंधे ही दिखाई देते हैं। अब भी लोग अपनी गाड़ियों
सहज चलना सीखें
Posted on 25 Aug, 2010 01:05 PM देश में जहां भी कहीं उद्योग के लिए जमीन ली जा रही है या जल-संसाधनों का दोहन किया जा रहा है, वहां के किसान, गांव वाले जान तक देने पर उतारू हैं। कई ऐसी घटनाएं घट चुकी है जहां आंदोलनकारियों के खिलाफ हिंसक कार्रवाइयां की गईं। कई लोग घायल हो चुके हैं, आंदोलकारियों के मन में निराशा है। स्थिति इस दिशा की ओर बढ़ चली है कि आज लाखों लोगों का राज्य शासन से और राजकर्ताओं से भरोसा उठ चला है।सिक्किम में पन-बिजली की ग्यारह योजनाओं पर काम चल रहा था। लेकिन लोगों के विरोध के आगे झुकते हुए सरकार ने इन सब पर काम रोक दिया है। इसी तरह अरुणाचल प्रदेश में भी बन रहे बांधों के खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं। पिछले दिनों उत्तराखंड में गंगा पर बनाई जा रही दो जल विद्युत परियोजनाओं को भी स्थगित कर दिया गया है। हिमाचल प्रदेश में तो बांध इतने बदनाम हो चुके हैं कि वहां पिछले विधान सभा चुनाव में पहली बार प्रत्याशियों को ये वादे करने पड़े कि वे जीत गए तो इन बांधों को नहीं बनने देंगे। इस तरह वहां सचमुच इन्हीं वादों के बल पर चुनाव जीता गया।देश के और भी कई
गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति! नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
Posted on 25 Aug, 2010 10:42 AMनदी, पहाड़, पर्वत श्रेणी और उसके उत्तुंग शिखरों से तथा इन सबसे ऊपर चमकने वाले तारों से परिचय बढ़ाकर हमें भारत-भक्ति में अपने पूर्वजों के साथ होड़ चलानी चाहिए। हमारे पूर्वजों की साधना के कारण गंगा के समान नदियां, हिमालय के समान पहाड़, जगह-जगह फैले हुए हमारे धर्म क्षेत्र, पीपल या बड़ के समान महावृक्ष, तुलसी के समान पौधे, गाय जैसे जानवर, गरुड़ या मोर के जैसे पक्षी, गोपीचंदन या गेरू के जैसी मिट्टी के प्रकार- सब जिस देश में भक्ति और आदर के विषय बन गये हैं, उस देश में संस्कारों की भावनाओं की समृद्धि को बढ़ाना हमारे जमाने का कर्तव्य है। हम अपने प्रिय-पूज्य देश को साहित्य द्वारा और दूसरे अनेक रचनात्मक कामों से सजाएंगे और नयी पीढ़ी को भारत-भक्ति की दीक्षा देंगे” (काका कालेलकर)
जीवन और मृत्यु दोनों में आर्यों का जीवन नदी के साथ जुड़ा है। उनकी मुख्य नदी तो है गंगा। यह केवल पृथ्वी पर ही नहीं, बल्कि स्वर्ग में भी बहती है और पाताल में भी बहती है। इसीलिए वे गंगा को त्रिपथगा कहते हैं।जो भूमि केवल वर्षा के पानी से ही सींची जाती है
भविष्यवाणी जो सुनी नहीं गई
Posted on 12 Aug, 2010 09:02 AMश्री कपिल भट्टाचार्य एक विलक्षण अभियंता थे। उन्होंने फरक्का बैराज और दामोदर घाटी परियोजना का विरोध उस समय किया, जब ज्यादातर वैज्ञानिक, इंजीनियर और बुद्धिजीवी इसके पक्ष में जुटे थे। इसी विरोध के कारण उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। नवंबर 1989 में उपेक्षा और एकांत की पीड़ा झेलते हुए उनका निधन हुआ। यह लेख उन्होंने आज से कोई 40 बरस पहले लिखा था।दामोदर घाटी परियोजना को बने हुए अनेक वर्ष बीत चुके हैं। जिस समय यह परियोजना बन रही थी, उसी समय मैंने इसके दोषों और इससे होने वाले भयंकर परिणाम की जानकारी सबके सामने रखी थीः इसके कारण पश्चिम बंगाल के पानी को निकालने वाली मुख्य नदी हुगली भी जाएगी और फिर देश में भयानक बाढ़ आएगी। हुगली नदी भरने से कलकत्ता बंदरगाह में आने वाले बड़े समुद्री जहाजों का आना भी संभव नहीं हो सकेगा। मेरे दृढ़ प्रतिवाद और चेतावनी के बावजूद केन्द्र की तत्कालीन कांग्रेसी और राज्य सरकारों ने मिलजुल कर दामोदर घाटी परियोजना को लागू किया।
दामोदर नदी में साल भर छोटी-छोटी बाढ़ों के कारण जो उपजाऊ मिट्टी जमा होती है, उसे आषाढ़ में आने वाली बड़ी बाढ़ बहाकर समुद्र में पहुंचा देती है। सावन, भादों और अश्विन महीने में
सतलुज की कहानी
Posted on 07 Mar, 2010 03:49 PMसतलुज का उद्गम राक्षस ताल से हुआ है। राक्षस ताल तिब्बत के पश्चिमी पठार में है। यह सुविख्यात मानसरोवर से कोई दो कि.मी. की दूरी पर है। सतलुज शिप्कीला से भारत के किन्नर लोक में प्रवेश करती है। किन्नर देश में सतलुज को लाने का श्रेय वाणासुर को दिया जाता है जैसे गंगा को लाने का श्रेय भगीरथ को है और इसी कारण गंगा का नाम भागीरथी भी है। किंतु सतलुज का नाम वाणशिवरी नहीं हैं। एक कथा के अनुसार पहले किन्नर दो राज्यों में विभक्त था। एक की राजधानी शोणितपुर (सराहन) थी और दूसरे की कामरू। इन राज्यों में बड़ा बैर था और अक्सर युद्द हुआ करते थे। वाणासुर शोणितपुर में तीन भाई राजकाज करते थे। वाणासुर और उसकी प्रजा को मार डालने के लिए उन तीनों भाइयों ने किन्नर देश में बहने वाली एक नदी में हज़ारों मन ज़हर घोल दिया। इससे हज़ारों लोग, पशु-पक्षी मर गए। भयंकर अकाल पड़ गया।