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नदियां
कटि –मेखला, विंध्य-सतपुड़ा
Posted on 19 Feb, 2011 01:26 PMविंध्य और सतपुड़ा नर्मदा के बलवान् रक्षक है। इन दोनों ने मिलकर नर्मदा को उसका जल भी दिया है और उसका रक्षण भी किया है। ये दोनों पहाड़ नर्मदा के अति निकट होने के कारण नर्मदा को न अपना पात्र बदलने का मौका मिला है, न अपने पानी के आशीर्वाद से दूर-दूर तक खेती करने की जमीन उसे मिली है।सूर्य-दर्शन
Posted on 18 Feb, 2011 04:39 PMहमारे असंख्य पूर्वजों ने भारत भक्ति के लिए खास स्थान पसंद किये हैं और भारत दर्शन क्रम भी बांध दिया है। ‘चार धाम की यात्रा’ इस व्यवस्था का एक सर्वमान्य नमूना है। पश्चिम में द्वारका, उत्तर में बदरीनारायण अथवा अमरनाथ, पूर्व में जगन्नाथपुरी और दक्षिण में (शंकर आचार्य के भक्त कहेंगे श्रृंगेरी मेरे जैसा देवीभक्त कहेगा) कन्या कुमारी। इन चार धामों की यात्रा अगर की तो भारत के सारे प्रेक्षणीय पवित्र धाम उसकपहाड़ी नदियों का सांस्कृतिक संदेश
Posted on 18 Feb, 2011 04:36 PMमै पहाड़ी नदी-पुत्र हूं, इसलिए और संस्कृति-उपासक होने के कारण भी सारस्वत् हूं। आज हिमालय-कन्या कोसी, तीस्ता और अन्य अनेक पर्वती नदियों का दर्शन कर उत्तेजित हुआ हूं। नदियां यहां के मनुष्यों को, पशु-पक्षियों को और मत्स्यों को जीवन देती हैं, यह तो है ही, परन्तु यहां के निवासियों का जीवन बनाने में भी इन नदियों का हिस्सा सबसे ज्यादा है। राजा और राज्य आते हैं और जाते हैं उनके सैन्य और कानून राज्य चलातेपर्वत और उनकी नदियां
Posted on 18 Feb, 2011 01:51 PM(1) हिमालय पर्वत में से उद्गम पाने वाली नदियां- गंगा, सरस्वती, चंद्रभागा, (चिनाब), यमुना, शुतुद्री (सतलुज), वितस्ता (झेलम), इरावती (रावी), कुहू (काबूल), गोमती, धूतपापा (शारदा), बाहुदा (राप्ती), दृषद्वती (चितंग), विपाशा (बियास), देविका (दीग), सरयू (घाघरा), रंक्षू (रामगंगा), गंडकी (गंडक), कौशिकी (कोसी), त्रित्या और लोहित्या (ब्रह्मपुत्र)।दिमाग साफ तो नदी भी साफ
Posted on 01 Feb, 2011 01:28 PMमुझे लगता है कि असली देशप्रेम अपने घर, अपने मोहल्ले और शहर भूगोल को समझने से शुरू होता है। हम जिस शहर में रहते हैं, उसमें कौन-सा पहाड़ या कौन-सी छोटी या बड़ी नदी है, कितने तालाब हैं? हमारे घर का पानी कहाँ से, कितनी दूर से आता है? क्या यह किसी और का हिस्सा छीनकर हमको दिया जा रहा है, क्या हमने अपने हिस्से का पानी पिछले दौर में खो दिया है, बरबाद हो जाने दिया है- ये सब प्रश्न हमारे मन में आज नहीं तो कल जरूर आने चाहिए। हम लोग अपने स्कूलों में अक्सर किताबों में देशप्रेम, संविधान, भूगोल जैसे विषय पढ़ते हैं। कुछ समझते हैं और कुछ-कुछ रटते भी हैं, क्योंकि हमें परीक्षा में इन बातों के बारे में कुछ लिखना ही होता है।
लेकिन, मुझे लगता है कि असली देशप्रेम अपने घर, अपने मोहल्ले और शहर भूगोल को समझने से शुरू होता है। हम जिस शहर में रहते हैं, उसमें कौन-सा पहाड़ या कौन-सी छोटी या बड़ी नदी है, कितने तालाब हैं? हमारे घर का पानी कहाँ से, कितनी दूर से आता है? क्या यह किसी और का हिस्सा छीनकर हमको दिया जा रहा है, क्या हमने अपने हिस्से का पानी पिछले दौर में खो दिया है, बरबाद हो जाने दिया है- ये सब प्रश्न हमारे मन में आज नहीं तो कल जरूर आने चाहिए।
कन्याकुमारी से कश्मीर तक, भुज से लेकर त्रिपुरा तक
नदी जोड़ से घाटे में होगा बुंदेलखंड
Posted on 01 Feb, 2011 10:01 AMखबर है कि नदी जोड़ की पहली परियोजना जल्दी शुरू हो सकती है।जिस इलाके के जन प्रतिनिधि जनता के प्रति कुछ कम जवाबदेह हों, जहां जन जागरूकता कम हो, जो पहले से ही शोषित व पिछड़े हों, सरकार में बैठे लोग उस इलाके को नए-नए खतरनाक व चुनौतीपूर्ण प्रयोगों के लिए चुन लेते हैं। सामाजिक-आर्थिक नीति का यह मूल मंत्र है। बुंदेलखंड का पिछड़ापन जग-जाहिर है। भूकंप प्रभावित यह क्षेत्र हर तीन साल में सूखा झेलता है।
जीवकोपार्जन का मूल माध्यम खेती है लेकिन आधी जमीन सिंचाई के अभाव में कराह रही है। नदी जोड़ के प्रयोग के लिए इससे बेहतर इलाका कहां मिलता? सो देश के पहले नदी-जोड़ो अभियान का समझौता इसी क्षेत्र के लिए कर दिया गया।
यमुना को साफ करो
Posted on 03 Jan, 2011 01:28 PM
हिमालय की कोख से प्रवाहमान यमुना को 'आक्सीजन' के लिए संघर्ष करना पड़े... यह कम शर्म की बात नहीं है।
यमुना को आक्सीजन के लिए देश की राजधानी दिल्ली में सर्वाधिक संघर्ष करना पड़ रहा है। उत्तराचंल के शिखरखंड हिमालय से उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तक करीब 1,370 किलो मीटर की यात्रा तय करने वाली यमुना को ज्यादा संकट दिल्ली के करीब 22 किलोमीटर क्षेत्र में है, लेकिन बेदर्द दिल्ली को यमुना के आंसुओं पर कोई तरस नहीं आया। यही कारण है कि अभी तक यमुना की निर्मलता वापस नहीं लौट सकी।
खनन माफियाओं की चांदी
Posted on 01 Jan, 2011 09:25 AMउत्तराखण्ड के ऊधमसिंह नगर की तहसील किच्छा के खमिया नम्बर ५ शान्तिपुरी क्षेत्र की गौला नदी से रेते का अवैध खनन लगातार जारी है। रोजाना सैकड़ों की संख्या में ट्रक, ट्रैक्टर, ट्रॉली तथा डनलप धड़ल्ले से बिना किसी रोक -टोक के इस काम में लगे हुए हैं। खनन में लगे वाहनों को अतिरिक्त पैसा लेकर बिना धर्मकांटा पर तौले रॉयल्टी की पर्चियां जारी की जा रही हैं। जो वाहन में लदे वजन से आधे से भी कम की होती हैं।