खनन माफियाओं की चांदी


उत्तराखण्ड के ऊधमसिंह नगर की तहसील किच्छा के खमिया नम्बर ५ शान्तिपुरी क्षेत्र की गौला नदी से रेते का अवैध खनन लगातार जारी है। रोजाना सैकड़ों की संख्या में ट्रक, ट्रैक्टर, ट्रॉली तथा डनलप धड़ल्ले से बिना किसी रोक -टोक के इस काम में लगे हुए हैं। खनन में लगे वाहनों को अतिरिक्त पैसा लेकर बिना धर्मकांटा पर तौले रॉयल्टी की पर्चियां जारी की जा रही हैं। जो वाहन में लदे वजन से आधे से भी कम की होती हैं। इनमें दर्जनों वाहन ऐसे भी हैं जो बिना रॉयल्टी कटाये एक ही दिन में कई -कई चक्कर लगा रहे हैं। इस तरह के खनन से सरकार को लाखों रुपये प्रतिदिन का द्घाटा हो रहा है। अवैध खनन में लिप्त ठेकेदार सिर्फ सरकार को ही चूना नहीं लगा रहे बल्कि नदी क्षेत्र से सटे किसानों की जमीन को भी नहीं बचा रहे हैं। खनन के लिए विभाग से २५० एकड़ का निजी भूमि का पट्टा होने के बावजूद ठेकेदार वन भूमि, राजस्व भूमि तथा गांव के कास्तकारों की नदी से सटी हुई भूमि से लगातार खनन कर रहे हैं।

इस अवैध खनन से क्षेत्र में आपराधिक गतिविधियां भी बढ़ रही हैं। हत्याएं हो रही हैं। ये खनन माफिया नदी पर अपना प्रभुत्व बनाये रखने के लिए खूनी संद्घर्ष करने से भी बाज नहीं आते हैं। वर्चस्व की इस जंग में २००१ से अब तक ४ हत्याएं हो चुकी हैं। इन्हीं हत्याओं के चलते प्रशासन ने वर्ष २००३ के बाद ३ वर्ष तक इस क्षेत्र में रेता खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था। देवरिया निवासी खनन ठेकेदार रोहित तिवारी ने इस गेट पर पुनः रेते की निकासी खुलवाई और ८ जनवरी २००९ को वह भी वर्चस्व की इसी जंग की भेंट चढ़ गया। रोहित तिवारी की भी हत्या कर दी गई। इसके बाद शांतिपुरी निवासी नवीन चौहान ने खमिया नम्बर ४ के नाम से सूर्यनगर सामूहिक सहकारी समिति की भूमि पर रेते की निकासी करवायी। सूत्रों के मुताबिक रोहित तिवारी ने गांव के पांच कास्तकारों को खनन के लिए निर्धारित क्षेत्र से अलग खनन कराने के लिए ५०-५० हजार रुपये दिये थे। उसकी हत्या के बाद शांतिपुरी निवासी नवीन चौहान ने गांव के १४ कास्तकारों को २०० रुपये प्रति ट्रॉली/ट्रक के हिसाब से देकर खनन कराया।

इस अवैध खनन के चलते पड़ोस के गांवों के आने जाने के रास्ते पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके हैं। रास्तों पर आधे से लेकर एक फुट तक धूल भरी रहती हैं।

बरसात में ये सड़कें दलदल बन जाती हैं। गांव के पास से निकलने वाले भुतहा नाले पर बना पुल क्षतिग्रस्त हो चुका है। लोक निर्माण विभाग ने पुल के निकट एक बोर्ड लगाकर उस पर लिखवा भी दिया है कि इधर से भारी वाहनों का प्रवेश वर्जित है, परन्तु अवैध खनन में लगे लोगों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। ये लोग धड़ल्ले से इस पुल से रेता-बजरी से भरे भारी वाहन निकालने में लगे हैं। जिससे पुल की दशा और खराब हो गई है। इतना ही नहीं खनन माफियाओं ने खनन में लगे वाहनों के गुजरने के लिए अवैध रूप से रेलवे ट्रैक के ऊपर से रास्ता बना लिया है। रेलवे प्रशासन कई बार इस रास्ते को बंद कर चुका है। अभी कुछ दिन पूर्व ही रेलवे ने ट्रैक के ऊपर से गुजरने वाले इस रास्ते को बन्द करवाया था। पटरियों की दोनों ओर रेल प्रशासन ने लोहे के मजबूत चैनल तथा ऐंगल लगवा दिये थे और गड्ढे खुदवा दिये थे। लेकिन इन खनन माफियाओं ने दबंगई दिखाते हुए ऐंगल तथा चैनल काटकर दोनों ओर खुदे हुए गड्ढे पटवा दिये और फिर वहां से निकलने का रास्ता बना लिया।

नदी से सटी वन भूमि पर अवैध रूप से खनन कर छोड़े गये गहरे गड्ढों के कारण समीप के गांवों के लिए बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है, सरकार को लाखों रुपये प्रतिदिन राजस्व की हानि हो रही है। माफियाओं की दबंगई के चलते लोग भय तथा दहशत के माहौल में जीवन जीने को मजबूर हैं। इस पूरे मामले में शासन-प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है। माफियाओं के लिए तो नियम कानून कोई मायने नहीं रखते पर यहां तैनात अधिकारियों के रवैये से ऐसा लगता है कि वे भी नियम-कानून और कर्तव्य सब कुछ भूल चुके हैं।

फेंट कॉरीडोर बनाने की योजना वन विभाग ने बनाई है। लेकिन इसमें ग्रामीणों के हितों का ध्यान नहीं रखा गया। कॉरीडोर बिन्दुखत्ता गांव के एक हिस्से से गुजरेगा, जिससे कई ग्रामीण बेद्घर हो जाएंगे। इसके विरोध में लोग एकजुट होने लगे हैं।

तीस वर्षों से राजस्व ग्राम बनाने की मांग को लेकर संद्घर्ष कर रहे बिन्दुखत्ता की जनता को राजस्व गांव तो नहीं मिला, लेकिन ऐलिफेंट कॉरीडोर बनाने के नाम पर इन्हें उजाड़ने की तैयारी शुरू कर दी गयी है। ग्रामीणों ने जन कल्याण एवं संद्घर्ष समिति के नेतृत्व में इसका विरोध भी किया।

उल्लेखनीय है कि वन एवं पर्यावरण विभाग ने लालकुआं बिन्दुखत्ता एवं गौला से होते हुए एलिफेंट कॉरीडोर बनाने के लिए जगह चिह्नित किया है। जिसकी चौड़ाई ५०० मीटर होगी, जिसकी चपेट में बिन्दुखत्ता के सैकड़ों द्घर आ रहे हैैं। मेहनत मजदूरी कर लोगों ने जमीन खरीदी और मकान बनाया, जो एलिफेंट कॉरीडोर के कारण धराशायी होता दिखाई दे रहा है। इससे ग्रामीण हड़कंप हैं। लोगों की कमाई व मेहनत पर पानी फिरता नजर आ रहा है। इसका विरोध ग्रामीणों ने शुरू कर दिया है। अपने द्घरों को बचाने के लिए ग्रामीण आंदोलन की तैयारी में हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उत्तराखण्ड सरकार इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रही है। वहीं नेता ग्रामीणों को सिर्फ आश्वासन दे कर चले जाते हैं।

इधर यदि ऐलिफेंट कॉरीडोर का रास्ता बनता है तो इसके अन्दर यहां पर स्थापित इंडियन ऑयल और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस को भी हटाना पड़ सकता है। इसके मध्य में रेलवे लाइन भी है। ऐलिफेंट कॉरीडोर बने या न बने लेकिन लोगों में इसको लेकर दहशत का माहौल है। सभी सब कुछ छोड़ कर आंदोलन की राह पर चल पड़े हैं। मिली जानकारी के अनुसार एलिफेंट जोन में फंसे हाथियों को लेकर केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय चिन्तित बताये जाते हैं। कुछ महीने पहले गौला के इन्वायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट को लेकर कवायदें चल रही थीं। इसके कारण हाथी कॉरीडोर का मामला काफी चर्चा में आ गया। गौला चुगान को मिली अनुमति के बिन्दु संख्या २१ व २२ में हाथी कॉरीडोर के मैनेजमेंट का निर्देश वन विभाग को दिया गया। जब से डी जी दलीप कुमार ने कॉरीडोर सुधार के लिए टास्क फोर्स गठन की द्घोषणा की, उसके बाद से हाथी कॉरीडोर बनने की संभावना बढ़ गयी है। किन्तु सर्वे के मुताबिक हाथी कॉरीडोर के रास्ते में आबादी वाला भू भाग आ गया है। इस कार्ययोजना के दायरे में आनेवाले बिन्दुखत्ता के ग्रामीणों ने आंदोलन की राह पकड़ ली। इधर, पूर्व विधायक एवं काग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष हरीश चन्द्र दुर्गापाल ने भी ग्रामीणों के साथ मिल कर आन्दोलन के लिए कमर कस ली है।

जन कल्याण संद्घर्ष समिति के बैनर तले बिन्दुखत्ता में चल रहा ग्रामीणों का आंदोलन दिन पर दिन जोर पकड़ता जा रहा है। यदि बिन्दुखत्ता का एक हिस्सा ऐलिफेंट कॉरीडोर में आ गया तो राजस्व गांव बनने का सपना अधूरा ही रह जायेगा।

सूत्रों के अनुसार संबंधित क्षेत्र के अवर अभियंता ने इस अवैध निर्माण के विरुद्ध कार्रवाई की कोशिश की थी तथा इस निर्माण का चालान भी काटा। लेकिन उच्च अधिकारियों के दबाव में चालान निर्माणकर्ताओं को नहीं दिया गया। हरिद्वार विकास प्राधिकरण के अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कराने की जिम्मेदारी संबंधित जिलाधिकारी की होती है। पर इस प्रकरण में जिलाधिकारी हरिद्वार आर मीनाक्षी सुंदरम्‌ आश्चर्यजनक रूप से मौन धारण किए हुए हैं। अधिकारी अपनी जिम्मेदारी दूसरे विभाग पर डालकर पीछा छुड़ाते नजर आ रहे हैं। हरिद्वार विकास प्राधिकरण के सचिव एचसी सेमवाल से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने सिंचाई विभाग की जिम्मेदारी बता कर पल्ला झाड़ दिया। उन्हीं के विभाग के एक अपर अभियंता ने नोटिस पर सचिव के दस्तखत न होने की बात कही।
 
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