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जलवायु परिवर्तन
थोड़ा सा आगे, पर आगे जाने की जरूरत!
Posted on 28 Jun, 2012 09:56 AMआर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय पक्षों के आपसी रिश्तों को समझते हुये टिकाऊ विकास की अवधारणा की समझ भी जरूरी है और
रियो का समापन : खानापूरी से ज्यादा कुछ नहीं
Posted on 26 Jun, 2012 04:30 PMजलवायु में हो रहे विनाशकारी बदलावों के मद्देनजर टिकाऊ वैश्विक विकास के लिए हरित कार्ययोजना तैयार करने के लिए ब्राजील के ‘रियो द जेनेरो’ शहर में दुनिया के सौ से भी ज्यादा देशों के तीन दिन तक सम्मेलन का आयोजन हुआ। सम्मेलन का कोई स्पष्ट संदेश है तो वह यह कि वायुमंडल में हो रहे विनाशकारी बदलाव से समूची पृथ्वी पर मंडरा रहे संकट के बावजूद खुदगर्ज इंसान आधुनिक विकास के अंधी दौड़ छोड़ने को राजी नहीं हैरियो के 20 साल बाद भी पृथ्वी को बचाने की चुनौती बाकी
Posted on 26 Jun, 2012 04:26 PMब्राजील की राजधानी रियो में फिर से पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। सैकड़ों देशों के नेता ग्रीन इकॉनमी, स्थाई विकास और पर्यावरण संबंधी चुनौतियों के साथ ही पृथ्वी पर बढ़ती पर्यावरणीय संकट से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा करेंगे। संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में होने वाला यह चौथा पृथ्वी सम्मेलन है। पहले पृथ्वी सम्मेलन में तय किये गये मुद्दे अभी तक कोई तार्किक परिणति नहीं पा सके, फिर उन्हीं को आधार बनाकररियो : जनसंगठनों के लोगों की अनदेखी
Posted on 26 Jun, 2012 01:24 PMब्राजील के रियो द जेनेरो में शुरू होने वाला रियो+20 पृथ्वी सम्मेलन विश्व पर्यावरण के चिंताओं से जुड़ा एक महासम्मेलन है। 1992 में पहला विश्व पृथ्वी सम्मेलन ब्राजील के रियो द जेनेरो से ही शुरू हुआ था। विश्व पर्यावरण के साथ-साथ यह जन-सम्मेलन ब्राजील और भारत जैसे देशों के बहाने सरकारों के दोहरे रवैये और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पक्ष में बन रही नीतियों पर सवाल खड़े कर रहा है।पहले पृथ्वी सम्मेलन से दूसरे पृथ्वी सम्मेलन तक का सफर
Posted on 26 Jun, 2012 10:16 AMपहला पृथ्वी सम्मेलन जून 1992 में हुआ था, और अब दुसरा पृथ्वी सम्मेलन जून 2012 में हुआ है। इन दोनों के बीच 20 साल का एक लंबा अंतराल रहा, पर जो मुद्दे पहले पृथ्वी सम्मेलन में उठाये गये थे वे बीस साल बाद और वयस्क होने के बजाय अभी शैश्वावस्था में ही हैं। 20 साल के सफर की व्याख्या कर रही हैं सुनीता नारायण।रियो में भारत की बुनियादी चिंताओं पर सहमति
Posted on 26 Jun, 2012 09:24 AMरियो +20 पृथ्वी सम्मेलन में भारत ने सफलतापूर्वक अपनी बातें रखीं। जिसको कई गरीब मुल्कों का समर्थन भी मिला। हर किसी देश को विकास के समान अवसर और सुलभ संसाधन मुहैया कराने के मुद्दे पर भारत ने काफी जोरदार ढंग से अपनी बात कही। रियो के जारी घोषणापत्र में भारत की चिंताओं को काफी जगह मिली है।रियो की राह
Posted on 25 Jun, 2012 05:23 PMइस बार यहां रियो में ओबामा नहीं आए। न यूरोपीय संघ की धुरी बनी जर्मनी की चांसलर, न ब्रिटेन के प्रधानमंत्री। सब कुछ ठंडे-ठंडे निपट गया। इसकी वजह यही है कि भारत-चीन जैसे विकासशील देश अब विपक्षी ताकत नहीं रहे। वे खुद विकास के उसी रास्ते पर हैं। कोई नया मॉडल उनके सामने नहीं है। विकसित देशों का ज्यादा विरोध करना एक अर्थ में खुद अपना विरोध करने जैसा ही हो सकता है। थोड़ा विरोध किया जाता है तो लोक-लाज करियो+20: प्रकृति बिकाऊ नहीं
Posted on 25 Jun, 2012 04:29 PMइस लेख के लिखे जाने और छपने तक रियो+20 के परिणाम आ चुके होंगे। 20-22 जून को हो रहे आधिकारिक रियो+20 सम्मेलन का समापन हो चुका होगा। पर अभी से रियो+20 पृथ्वी सम्मेलन पर कुछ खतरे मंडराते दिख रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा, ब्रिटिश प्रधानमंत्री कैमरुन का पृथ्वी सम्मेलन में भाग न लेना, कंपनी प्रतिनिधियों की प्रमुखता और अधिकृत भागीदारी लोगों की उम्मीदों पर पानी फेरता सा नजर आ रहा है।
1992 में पहला पृथ्वी सम्मेलन ब्राजील के रियो द जेनेरो में हुआ था। उसके ठीक 20 साल बाद रियो में दोबारा पृथ्वी सम्मेलन आयोजित हो रहा है। इस पृथ्वी सम्मेलन को ‘रियो+20’ कहा जा रहा है। रियो+ 20 संयुक्तराष्ट्र की वस्तुत: वैश्विक पर्यावरणीय कांफ्रेंस है। इस वार्ता से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया की सरकारें आने वाले इस रियो+ 20 में जो दस्तावेज प्रस्तुत करने जा रही हैं वह वैश्विक पर्यावरणीय विफलताओं के कारणों को जानने और दूर करने के लिए नाकाफी है। इन दस्तावेजों में इस बात का जिक्र तक नहीं है कि हम आज जिस वैश्विक पर्यावरणीय संकट से गुजर रहे हैं उसे दूर कैसे किया जाए। बल्कि कई बार तो ये दस्तावेज इस बात की मुखालफत करते ज्यादा नजर आ रहे हैं कि धरती मां को बचाने के लिए, उनके (गरीब देशों के) जल, जंगल, जमीन, हवा, जलीय जीवन आदि सभी संसाधनों के रखरखाव के लिए एक निश्चित दान तय करना होगा, विकसित देशों को अपनी आय से एक हिस्सा गरीब देशों को देना होगा। अब ये नए दस्तावेज प्रकृति को बिकाऊ बनाने की वकालत ज्यादा कर रहे हैं, उनका मानना है कि जो ज्यादा दान देगा प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा उसका होगा और वही कहलाएगा धरती मां का रखवाला।
रियो+20 : अटकी रहीं जलवायु नियंत्रण की पुरानी योजनाएं
Posted on 25 Jun, 2012 01:35 PMहरित कोष के मामले में अब तक यह साफ होना बाकी है कि कोष का धन कहां से आएगा। क्योतो करार के तहत राशि के संबंध में
रियो में रस्म अदायगी
Posted on 25 Jun, 2012 12:54 PMभारतीय प्रतिरोध में इस बार पहले जैसी धार नहीं थी। इसकी वजह यही है कि भारत भी अब विकास के प्रचलित रास्ते पर ही चल